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सरीसृप जीवन जिन्दगीजन्म मृत्यु खूँटों पर लटकी हुयी डोरी हैआशा है पिपाशा हैअर्थहीन भाषा हैतार -तार हो रही सड़ी हुयी बोरी हैतार जो कटकर स्वतन्त्र हैमुक्त लहरानें कोकिन्तु जोअपनी निरन्तरता में विवश है...
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स्वप्न सोपान पण्डित जी का प्रवचन चल रहा था ,"जीवन एक सपना है | हम सपनें में न जानें क्या -क्या देखते हैं | कहीं आकाश की सैर करते हैं...
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प्राणों की महावर अर्चना की सुरभि प्राणों की महावर बन गयी जब ,देह की आराधना का अर्थ ही क्या ?सांस का सरगम विसर्जन गीत का ही साज है ,मृत्तिका के घेर में क्या बंध सका आकाश है ,चाह पंख पसार जब पहुंचीं...
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समता का जयघोष शाम का धुंधलकाखण्डित चेतन प्रवाहउतरी है शीत लहरसिकुड़े तन, सिकुड़े मनकार्य ठप्प ,रुद्ध द्वारजड़ता जगी ,थकित प्यारबोला एक नारी स्वरयह आकाशवाणीं हैपूर्व कम्बोडिया मेंफिर से हुयी राज्य...
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युधिष्ठिर -यक्ष संवाद नेपथ्य ध्वनि : अंजुल में भरा हुआ जल सरोवर में छोड़ दो | जल की बूँदें ओष्ठों से लगते ही तुम भी अपनें छोटे भाइयों की...
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छापा -रूप मंजूषा पर कल मिली न कोई पंक्ति रात भर खोज खोज मैं हाराक्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा माराफिर कूप कपोलों में घुस कविता सुधा कलश भर लायीमांथे की बिंदिया से सहमी फिर तड़ित गणित...
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आत्मवादी विचारक उस रहस्यमयी साधना की वकालत करते हैं जो मानव को जीवन मरण के चक्र से मुक्ति दे सके | अनात्मवादी विचारक मुक्ति ,निर्वाण ,मोक्ष ,कैवल्य या स्वर्गारोहण जैसी...
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बालि -सुग्रीव ( नये सन्दर्भों में ) ------------------------------------ रामायण के बालि सुग्रीव से सम्बन्धित कथा से कौन भारतीय...
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क्या सार्थक ? क्या निरर्थक ? ललित साहित्य के सभी सुधी पाठक इन दिनों साहित्य रचना की जिन विधाओं को अधिक संरक्षण प्रदान कर रहे हैं उनमें...
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हृदय परिवर्तन जब से नारी अधिकारों की बात जोर -शोर पकड़नें लगी है रम्मों भी संवरिया से अक्सर झगड़ा कर...
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काम से राम तक अर्ध रात्रि का गहन अन्धकार | मेघाच्छादित गगन ,हल्की फुहारों की अविरल वृष्टि | एक दुमंजिले मकान की...
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नया प्रबन्धन आयाम दिल्ली जाना हुआ तो मन में आया कि गुड़गांव जाकर गुरुवर को प्रणाम कर आऊँ | दिल्ली...
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'रुलाई क्यों रह -रह कर आती है ?'क्या कहा मर्द हूँ मैं , फौलादी छाती है ,फिर मुझे रुलाई क्यों रह -रह कर आती है ?इसलिये कि मैनें साथ सत्य का लिया सदा ,पर पाया जग का सत्य सबल की माया है |नैतिकता ताकत के...
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कुंम्भकरणक्या सचमुच चाह रहे साथी ?हर भेद -भाव हर ऊँच -नीचउठ जाय देश की धरती सेसोनें की फसलें उमग उठेंहर बंजर से हर परती सेजो जाति- पांति शोषक -शोषितकी भेद भरी दीवारें हैंभाई -भाई को मिटा रहींजो जहर भरी...
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सांध्य -बेला एक सांझ ढल गयी किसी का दुःख न बांटा |दीप्ति घड़ी टल गयी व्याप्त नीरव सन्नाटा ||एक कदम उठ गया मौत की मंजिल पानें |एक लहार उठ चली काल की प्यास बुझानें ||एक पृष्ठ बह गया प्रलय की जलधारा में...
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विकट संघर्ष चार पंक्तियाँ लिखूं याकि दो पौदे रोपूँमन का यह संघर्ष विकट हैपरवाना आ गया निकट हैमूल्यों की पहचान अभी तक रही अधूरीसदा पकड़नें को दौड़ा मैं झूठी कायाआत्म केन्द्रित दर्शन की वर्तुल राहों...
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सागर माथा से कंचन जंगा के शिखर बैठ मैनें देखादायें बायेंधूसर विराटभारत माँ का भुज युग प्रसारहै शिरा जाल सी सींच रहीगिरिषुता जिसे हिम काट -काट |पग तल घेरे योजन हजारकीर्तन रत सागर महाकारमाँ के चरणों को...
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हुन्डोमान , उनडोमान ,अण्डमान आज लगभग सभी पढ़े -लिखे लोग ऐसा माननें लगे हैं कि जमीनी दूरियाँ छोटी...
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प्रश्न उत्तर मांगते हैं हजारों साल से फसलें उगाता जा रहा हूँभूख की डाईन निरन्तर बलि अभी तक पा रही है |काहिरा से सोन तट सब भर दिये वस्त्रा भरण सेश्रम रता धनिया चिता पर अर्ध नग्ना जा रही है |प्रश्न उत्तर...
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मातृ आँचल स्नेहमयी माँ के आँचल का है पुनीत हर छोरखण्ड द्रष्टि से बचकर रहना मेरे तरुण किशोरउत्तर के रजत कंगूरों के निः सृत पय सेमुस्करा उठी मरुथल की धरती भूखीपूरब के पुरवैय्या झोंकों से मिलकरलहलहा उठी...
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