छापा -रूप मंजूषा पर
कल मिली न कोई पंक्ति रात भर खोज खोज मैं हारा
क्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा मारा
फिर कूप कपोलों में घुस कविता सुधा कलश भर लायी
मांथे की बिंदिया से सहमी फिर तड़ित गणित शरमाई
फिर बालों की लहरों को लखकर कृष्ण मेंघ भरमाये
फिर चाल मांगनें दूर देश से हंस मचल कर आये
स्मिति में लिपटी सहम सकुचती अरुणोदय की लाली
आँखों के डोरों पर छलकी सुरभित द्राक्षासव प्याली
फिर निशा मिलन का इंगित ले चमका संध्या का तारा
क्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा मारा
कल मिली न कोई पंक्ति -----------------------------
कल आदि काव्य के पृष्ठों से सीता का रूप चुराया
कल तपः पूत गौरा का मन में चित्र उभर कर आया
कल उतर उर्वशी फिर धरती पर किरन मार्ग से आयी
कल मथुरा से लौटे फिर मिलनें राधा कृष्ण कन्हाई
फिर मिय माहुर मद पी गोरी काली ललौंछ लहराई
फिर अनस्तित्व से झगड़ अस्मिता झुकी पैंग भर लाई
फिर हृद -अनुकृति पर टली देह वीणां के तार संवारे
फिर मधुर गीत की लय लहरी अब जागो मोहन प्यारे
फिर अमिय हुआ पा अधर -परस जीवन समुद्र यह खारा
कल मिली न कोई पंक्ति -------------------------------
चुक जाये काल ,नक्षत्र न जब दे सके काव्य को भाषा
बूढ़ा निसर्ग संगीत छोड़ दे जब प्राणों को प्यासा
जब पटवीजन सा खुल खुल मन घन तमस्विनी में घूमें
अणु -फणधर जब गुंजलक मार मानव भविष्य पर झूमें
तब कौन मुक्त आकाश जहां लहरे, कविता का पांखी
पर नुचे पड़े दोहे , अछंद स्वछन्द रो रही साखी
मलवे के नीचे दबा झिलमिला रंग महल जब सारा
लीकों की फिर पहचान कहाँ से कवि कर सके विचारा
कल मिली न कोई पंक्ति -----------------------
कल मिली न कोई पंक्ति रात भर खोज खोज मैं हारा
क्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा मारा
फिर कूप कपोलों में घुस कविता सुधा कलश भर लायी
मांथे की बिंदिया से सहमी फिर तड़ित गणित शरमाई
फिर बालों की लहरों को लखकर कृष्ण मेंघ भरमाये
फिर चाल मांगनें दूर देश से हंस मचल कर आये
स्मिति में लिपटी सहम सकुचती अरुणोदय की लाली
आँखों के डोरों पर छलकी सुरभित द्राक्षासव प्याली
फिर निशा मिलन का इंगित ले चमका संध्या का तारा
क्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा मारा
कल मिली न कोई पंक्ति -----------------------------
कल आदि काव्य के पृष्ठों से सीता का रूप चुराया
कल तपः पूत गौरा का मन में चित्र उभर कर आया
कल उतर उर्वशी फिर धरती पर किरन मार्ग से आयी
कल मथुरा से लौटे फिर मिलनें राधा कृष्ण कन्हाई
फिर मिय माहुर मद पी गोरी काली ललौंछ लहराई
फिर अनस्तित्व से झगड़ अस्मिता झुकी पैंग भर लाई
फिर हृद -अनुकृति पर टली देह वीणां के तार संवारे
फिर मधुर गीत की लय लहरी अब जागो मोहन प्यारे
फिर अमिय हुआ पा अधर -परस जीवन समुद्र यह खारा
कल मिली न कोई पंक्ति -------------------------------
चुक जाये काल ,नक्षत्र न जब दे सके काव्य को भाषा
बूढ़ा निसर्ग संगीत छोड़ दे जब प्राणों को प्यासा
जब पटवीजन सा खुल खुल मन घन तमस्विनी में घूमें
अणु -फणधर जब गुंजलक मार मानव भविष्य पर झूमें
तब कौन मुक्त आकाश जहां लहरे, कविता का पांखी
पर नुचे पड़े दोहे , अछंद स्वछन्द रो रही साखी
मलवे के नीचे दबा झिलमिला रंग महल जब सारा
लीकों की फिर पहचान कहाँ से कवि कर सके विचारा
कल मिली न कोई पंक्ति -----------------------