हृदय परिवर्तन
जब से नारी अधिकारों की बात जोर -शोर पकड़नें लगी है रम्मों भी संवरिया से अक्सर झगड़ा कर बैठती है | झझर में बहादुरगढ़ को जोड़ने वाली सड़क अब छै लेन की सड़क बनायी जायेगी | ठेका मनफूल सिंह को मिला है | उनका एक साथी उड़ीसा में किसी कोयले की कम्पनी का मैनेजर है | वह वहां से 20 -25 मजदूर ,मजदूरनियों की टोली जैसा काम हो वैसी एक मुश्त बोली देकर बाँध लेता है | काम कितने मजदूर कितने दिन में कर लेंगें इसका अन्दाजा मनफूल सिंह को इन्जीनियरों से मिल जाता है | वह उड़ीसा में अपने दोस्त को फोन कर देता है और मजदूर ठेके पर आ जाते हैं | आप पूछेंगें कि रम्मो और संवरिया की लड़ाई का ठेके से क्या सम्बन्ध है | अरे भाई सम्बन्ध है तभी तो कहानी लिखी जा रही है | बात यह है कि खर्चे के लिये ठेकेदार हर हफ्ते मजदूरों को कुछ पैसे दे देता है अब चूंकि रम्मो संवरिया की घरवाली है इसलिये वह दोनों की मजदूरी हिसाब लगाकर संवरिया को दे देता है | ठेका लगभग साल भर का है | रम्मो की गोद में एक डेढ़ साल का बेटा भी है | बेटे को दूध पिलाकर वह गर्मी के दिनों में किसी पेंड के नीचे छाँह में एक पुराना कपड़ा बिछाकर सुला देती है | सर्दी के मौसम में बच्चे को धूप में लिटा देती है | जगने पर बच्चा कीचड़ ,मिट्टी और कंकणों से खेलता रहता है | घण्टे दो घण्टे बाद रम्मो उसे देख आती है | हप्ते दो हप्ते तो ऐसा चलता रहा पर तीसरे हप्ते ठेकेदार ने संवरिया को तो पूरी मजदूरी दी पर रम्मो की मजदूरी आधी कर दी ,पूछनें पर उसने बताया कि आधी इसलिये की गयी है कि रम्मो तो आधा समय दूध पिलाने और खेल खिलानें में लगा देती है | संवरिया ने उसकी इस बात को मान लिया और ठेकेदार से कोई बहस नहीं की पर जब संवरिया ने रम्मो को यह बात बतायी तो रम्मो संवरिया से झगड़ बैठी | संवरिया बोला -इसमें झगड़े की क्या बात है ? फैसला तो ठीक है | जब आधा काम किया तो आधे पैसे मिलेंगें |
रम्मो :- आधा काम कैसे ? बच्चे को दूध तो पिलाना ही पड़ेगा | सरकार भी बच्चा होने पर 6 महीनें की छुट्टी तनख्वाह के साथ देती है | अब अगर हम दोनों के पास छोटा बच्चा है और उसकी देख -रेख में कुछ समय लग जाय तो क्या कोई पगार काट लेता है ? तुम ठेकेदार से कहो कि वह पूरे पैसे दे नहीं तो हमें काम की कोई कमी नहीं है | और कहीं देख लेंगें |
संवरिया के आगे एक समस्या आ खड़ी हुयी वह ठेकेदार की बात मान गया था पर अब बहस करेगा तो ठेकेदार का दिमाग गरम हो जायेगा पर रम्मो की जिद्द के आगे उसकी एक न चली | रम्मो रात में रेडियो पर हर रोज ख़बरें सुनती थी || कई बार उसने सुना था किसी स्त्री को पुरुष के बराबर ही अधिकार हैं और दोनों में कोई भेद -भाव नहीं होना चाहिये और फिर वह संवरिया से कोई कम काम तो नहीं करती | कितनी बार संवरिया बीड़ी पीता है | और गपशप मेँ लगा रहता है | वह तो बच्चे के अलावा और कोई समय खराब ही नहीं करती | काम में लगी रहती है | संवरिया ने ठेकेदार मनफूल सिंह से यह बात कही |
मनफूल सिंह :- तू अजीब आदमी है | पहले पूरी रजामन्दी से बात मान ली , अब एक पंगा खड़ा कर रहा है |
संवरिया :- मैं तो मान गया पर वह तो नहीं मानती | कहती है सरकार आदमी औरत की मजदूरी में कोई फर्क डालना नहीं चाहती ,अगर मजदूरनी के पास छोटा बच्चा है और उसकी देख -रेख में थोड़ा -बहुत टाइम लग जाता है तो ठेकेदार उसके पैसे नहीं काट सकता है | तुम चाहो तो रम्मो से खुद बात कर लो मुझे कोई ऐतराज नहीं है |
मनफूल सिंह अधेड़ होकर बुजुर्गी की ओर बढ़ रहे थे | उन्होंने उन दिनों में ठेकेदारी शुरू की थी जब औरत की मजदूरी आदमी से आधी होती थी | फिर आधे से बढ़कर तीन चौथायी पर आ गयी और अब तीन चौथायी से बढ़कर बराबर हो गयी | अब एक नया सिर दर्द यह शुरू हो गया कि अगर छोटा बच्चा है तो उसके ऊपर देख -रेख में लगने वाला टाइम भी मजदूरी में शामिल किया जाय ,उनकी समझ में सरकार की सोच लंगड़ी दिखायी पड़ी | उन्होंने फैसला किया कि वह रम्मो से बातचीत करेंगें | इन्हीं दिनों वांशिंगटन D. G . के एक अनुसन्धान संस्थान ने जो अन्तर्राष्ट्रीय खाद्य उपलब्धता पर नजर रखता है एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी | रिपोर्ट यह थी कि पांच वर्ष के नीचे के बच्चों में भुखमरी की द्रष्टि से कौन देश कहाँ खड़ा है | रिपोर्ट में चार श्रेणियां रखी गयी थीं | भुखमरी किस स्तर की है | इसके लिये (1 ) Moderate, ( 2) Serious ( 3 ) Alarming (4 ) External Alarming| एशिया महाद्वीप में बँगला देश को छोड़कर और सभी देश भारत से ऊंचाई पर खड़े हैं | केवल बँगला देश भारत से एक श्रेणीं नीचे है | चीन न ० 9 पर है ,पकिस्तान 59 न ० पर है ,नेपाल 56 नम्बर पर ,है और भारत अफ्रीका के कितने ही लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था वाले देशों से नीचे के रैंक पर उदाहरण के लिये गिनी ,बिसाऊ ,टोंगो ,वुट्कीना ,फैसो ,सूडान ,खांडा और जिम्बाबे जैसे लड़खड़ाते देश उसके ऊपर खड़े हैं | यह रिसर्च इस बात को लेकर की गयी थी कि पांच वर्ष के कितनें बच्चे भुखमरी से मर जाते हैं या बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं या अपंग हो जाते है | अमरीका से की गयी इस सामाजिक रिसर्च के निष्कर्षों को भारत के रेडियो और टेलीविजन पर प्रसारित नहीं किया गया था और अखबारों में भी पीछे के पन्नों में दबी -दबी सूचना दे दी गयी थी ,पर कुछ अच्छे सोशल साइंसेज के स्कूलों में इस रिपोर्ट पर विस्तृत चर्चा हुयी थी और इस सम्बन्ध में केन्द्र की सरकार को कुछ सुझाव भेजे गये थे | मनफूल सिंह इन ख़बरों से सदैव दूर रहते थे पर उनकी छोटी बेटी जो सोशल साइंस में भारत की गरीबी पर रिसर्च कर रही थी इस प्रकार की ख़बरों से अपनी रिसर्च के लिये कोई न कोई सामग्री जुटाती रहती थी | उस शाम काम ख़त्म होनें के बाद जब रम्मो बच्चे को उठाकर संवरिया के साथ तम्बूनुमाँ घर में जानें को हुयी तो मनफूल सिंह नें उनको अपनें पास बुलाकर रम्मो से पूछा कि वह खाहमखाह की शिकायत क्यों कर रही है ? जितना काम करेगी उतना ही तो पैसा मिलेगा | रम्मो ने ठेकेदार से कहा कि वह पूरा काम करती है और उसे पूरा पैसा मिलना चाहिये | अगर कोई शक है तो सबका काम अलग -अलग कर दिया जाय | वह अपना काम करके दिखायेगी , फिर अपनें बच्चे की ओर देखकर कहा इसका पेट भी भरूँगीं और अपना काम भी करूँगीं ,फिर आसमान की ओर देख कर कहा हे भगवान कैसी आजादी है किसी का बच्चा भूखों मर जाय पर 5 -7 मिनट काम में हर्ज न हो और किसी के बच्चे इतना दूध पावें कि पोंकनें लगें | बच्चे तो भगवान की मूरत होते हैं | पूरा खाना ,खेलना और आराम तो मिलना चाहिये | मनफूल सिंह नें रम्मो की ओर ताज्जुब से देखा उन्हें लगा कि अब औरतों में कुछ फर्क आ गया है | मजदूरनी भी बड़े -बड़े सवाल खड़े करनें लगी हैं | अरे भाई जिसके होगा उसके बच्चे खायेंगें ,जिसके नहीं होगा उसके बच्चे रोयेंगें | कोई क्या करे ? अब अगर कोई बच्चा बीमारी या कमजोरी से मर जाय तो हम इसमें क्या कर सकते हैं | मनफूल सिंह नें सोचा अगले हप्ते फिर से वह मजदूरी देते समय रम्मो की टीका टिप्पणीं पर ध्यान देंगें और यदि चुप न हुयी तो और कहीं काम देख ले | ठेकेदार साहब जब घर पहुंचें और खानें की मेज पर परिवार के सब लोग इकठ्ठे हुये तो उनकी छोटी बेटी नें उनको बताया कि सोशल साइंस की रिसर्च के काम में उसे एक चार्ट भरना है | इस चार्ट में सड़क बनानें के काम में लगे मजदूर परिवारों के पांच वर्ष से छोटे बच्चे के खान -पान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न तालिकायें भरनी हैं | इसके लिये उसे काम करती और बच्चे पालती मजदूरनियों से सम्पर्क साधना होगा | वह जानती थी कि उसके पिता के सड़क बनानें के ठेके में भी बीसों मजदूर परिवार हैं | उसनें पिता जी से कहा कि अगले दिन काम पर लगी मजदूरनियों के बीच वह स्वयं जायेगी और उनसे जो उत्तर मिलेंगें वह प्रश्न तालिका में भरकर प्रोजेक्ट को पूरा करेगी | रिसर्च के लिये फील्ड वर्क जरूरी है | छोटी बेटी सुधा की इस बात नें मनफूल सिंह को बेचैन कर दिया | सुधा से बातचीत के दौरान अगर रम्मो नें उसे बता दिया कि उसे आधी मजदूरी दी जा रही है क्योंकि वह अपनें बच्चे को दूध पिलानें के लिये सड़क के काम में से कुछ समय निकाल लेती है तो एक तरह से उनकी बदनामी हो जायेगी | उन्होनें सुधा से पूछा कि तुम जो पढ़ायी -लिखायी कर रही हो उससे क्या गरीब मजदूरनियो को क्या कोई फायदा हो सकेगा | सुधा नयी चेतना से सम्पन्न लड़की थी | उसनें अपनें माता -पिता को कई बार यह बात कही थी कि पैसा कमानें के लिये उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिये जो गरीबों के जीवन को और अधिक दुखदायी बना दे | पैसे की अधिकता तृष्णा बन जाती है और जब आदमी अपनी मानवीय संवेदना खो देता है तो उसे देश के भविष्य की चिन्ता नहीं रहती | सुधा नें अपनें पिता को बताया कि भारत की केन्द्रीय सरकार एक ऐसी योजना बना रही है उन सब माताओं को जिनके बच्चे पांच वर्ष से छोटे हैं सेवा केन्द्रों में निःशुल्क पौष्टिक आहार दिया जाय | यदि मातायें स्वस्थ्य होंगीं तो प्रारम्भ के दो तीन वर्ष उनके स्तन पान से भारत की सन्तान स्वस्थ बनकर निकलेगी और बच्चे के कुछ बड़ा होनें पर सरकार की अतिरिक्त सहायता से दूध के अतिरिक्त कुछ और पौष्टिक उपलब्ध कराया जायेगा | भारतवर्ष के लगभग 40 प्रतिशत बच्चे Under Weight होते हैं | पांच वर्ष से नीचे के बच्चों की मृत्यु दर भी भारत में सबसे अधिक है | स्वास्थ्य विज्ञान कहता है कि यदि पांच वर्ष तक बच्चों को सन्तुलित आहार मिल जाय तो भविष्य में उसके स्वास्थ्य की मजबूत नींव पड़ जाती है और यदि ऐसा नहीं होता तो आधे पेट रहनें वाले बच्चे जी जानें पर भी जीवन का आनन्द नहीं उठा पाते | हमारा देश इन दिनों 8 -9 प्रतिशत की सालाना आर्थिक विकास दर से बढ़ रहा है | विश्व में चीन के बाद यह सबसे बड़ी आर्थिक प्रगति है | अमरीका की आर्थिक प्रगति तो 2 -3 प्रतिशत ही है | और यही हाल योरोप के विकसित कहे जानें वाले देशों का है | भारतवर्ष के कितनें ही खरबपति अब संसार के सबसे धनी आदमियों में शामिल हो गये हैं | माना जानें लगा है कि मुकेश और अनिल अम्बानी मिलकर विश्व के किसी भी अमीर से आगे निकल जाते हैं | अकेले मुकेश की ही सम्पत्ति अमरीका के बिल गेट्स को पछाड़ रही है | मध्यम वर्ग में भी काफी सम्पन्नता आ गयी है | सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाहें इतनी बढ़ गयी हैं कि वे आराम का जीवन बिता सकें | इतना धन होते हुये भी गरीबी रेखा से नीचे रहनें वाले लोग भारत के विकास का लाभ नहीं पा रहे हैं और करोड़ों तो ऐसे हैं कि जो अपनें बच्चों को दूध तक नहीं दे सकते | ऐसा इसलिये है कि इनकी माताओं के स्तन में खुराक के अभाव में पूरा दूध बन ही नहीं पाता फिर उसनें अपनें पिता जी से कहा कि भारत वासी अपनें छोटे से स्वार्थ के लिये देश के भविष्य को दांव पर लगा देते हैं | अगर हमारी नयी पीढ़ी स्वस्थ बनकर नहीं उभरती तो आर्थिक प्रगति से आनें वाली अपार सम्पदा कुछ प्रतिशत लोगों में सिमट कर सारे राष्ट्र के लिये कैंसर बन जायेगी | पिताजी अब मेरी यह रिसर्च पूरी होनें जा रही है | न जानें मेरे मन में हो रहा है कि वैभव का यह जीवन मेरी आत्मा को यानि मेरे अन्तरसुख को धीमा करता जाता है | हमें जो लोग वंचित हैं उनके विषय में भी कुछ सोचना चाहिये | आप यदि सहमत हों तो मैं कुछ ठेकेदार परिवारों से सम्पर्क करके एक ऐसे सेवा केन्द्र की स्थापना करना चाहूँगीं जिसमें शिशुओं और बालकों को दूध ,फलों का जूस ,पतला दलिया ,खिचड़ी और इसी प्रकार के अन्य हजम होनें वाले पुष्ट भोजनों की मुफ्त व्यवस्था हो सके | चलिये इस विषय पर और इस दिशा में मेरे रिसर्च पूरी हो जानें पर सोचा जायेगा | मैं जानती हूँ कि आप मना नहीं करेंगें | कल लगभग 11 बजे मैं अपनी दो लेडी प्रोफ़ेसर के साथ जहां पर अपना काम चल रहा है गाड़ी में आ जाऊंगीं | हमारी प्रोफेसर्स अमरीका के एक विश्वविद्यालय में अपनें कुछ पेपर्स प्रिजेन्ट करेंगीं | वे चाहती हैं कि वे स्वयं अपनी आँखों से ईंट और गारा ढोती मजदूरनियों का जीवन देंखें और अपनें कानों से उनकी परेशानी ,उनके दुःख और उनके नारी स्वभाव सुलभ सहयोगिता के विचार सुनें | मजदूरनियों का भी अपना स्वप्न संसार होता है और उनके छोटे बच्चे उनके लिये राजकुमार से कम नहीं होते | मनफूल सिंह जी यह सब सुननें के बाद न जानें क्या सोचते हुये अपनें कमरे में चले गये | सुधा काफी देर तक बैठी माता जी से बातचीत करती रही |
अगले दिन 10 बजे के आस -पास ठेकेदार मनफूल सिंह नें काम करते संवरिया को अपनें पास बुलाया | दो हप्तों से रम्मो की आधी कटी हुयी मजदूरी के पूरे पैसे संवरिया को दे दिये फिर कहा कि वह रम्मो को बुला लावे | रम्मो अपनें बच्चे को दूध पिलानें में लगी थी जल्दी में अपनें वक्ष आँचल को ढांकते हुये ठेकेदार के पास आयी बोली बाबू जी क्या बात है ? मनफूल सिंह नें उसकी ओर करुणापूर्ण द्रष्टि डालते हुये कहा बेटी !मैनें तुम्हारी पूरी मजदूरी यानि पिछले दो महीनों की कटी हुयी रकम संवरिया को दे दी है | तुम्हें अब संवरिया के बराबर मजदूरी तो मिलेगी ही साथ ही तुम दोनों के बच्चे को मैं अपना पोता मानकर पांच वर्ष तक उसके लालन -पालन का सारा खर्च वहन करूँगां | मेरी बेटी सुधा अभी तुम लोगों के बीच आनें वाली है उसे मजदूरी काट लेनें वाली बात मत बताना | रम्मो और संवरिया अवाक रह गये | मनुष्य का हृदय भी परिवर्तन के कितनें दौरों से गुजरता है | इसे संवेदना सम्पन्न प्रबुद्ध नर -नारी ही समझ सकते हैं |
जब से नारी अधिकारों की बात जोर -शोर पकड़नें लगी है रम्मों भी संवरिया से अक्सर झगड़ा कर बैठती है | झझर में बहादुरगढ़ को जोड़ने वाली सड़क अब छै लेन की सड़क बनायी जायेगी | ठेका मनफूल सिंह को मिला है | उनका एक साथी उड़ीसा में किसी कोयले की कम्पनी का मैनेजर है | वह वहां से 20 -25 मजदूर ,मजदूरनियों की टोली जैसा काम हो वैसी एक मुश्त बोली देकर बाँध लेता है | काम कितने मजदूर कितने दिन में कर लेंगें इसका अन्दाजा मनफूल सिंह को इन्जीनियरों से मिल जाता है | वह उड़ीसा में अपने दोस्त को फोन कर देता है और मजदूर ठेके पर आ जाते हैं | आप पूछेंगें कि रम्मो और संवरिया की लड़ाई का ठेके से क्या सम्बन्ध है | अरे भाई सम्बन्ध है तभी तो कहानी लिखी जा रही है | बात यह है कि खर्चे के लिये ठेकेदार हर हफ्ते मजदूरों को कुछ पैसे दे देता है अब चूंकि रम्मो संवरिया की घरवाली है इसलिये वह दोनों की मजदूरी हिसाब लगाकर संवरिया को दे देता है | ठेका लगभग साल भर का है | रम्मो की गोद में एक डेढ़ साल का बेटा भी है | बेटे को दूध पिलाकर वह गर्मी के दिनों में किसी पेंड के नीचे छाँह में एक पुराना कपड़ा बिछाकर सुला देती है | सर्दी के मौसम में बच्चे को धूप में लिटा देती है | जगने पर बच्चा कीचड़ ,मिट्टी और कंकणों से खेलता रहता है | घण्टे दो घण्टे बाद रम्मो उसे देख आती है | हप्ते दो हप्ते तो ऐसा चलता रहा पर तीसरे हप्ते ठेकेदार ने संवरिया को तो पूरी मजदूरी दी पर रम्मो की मजदूरी आधी कर दी ,पूछनें पर उसने बताया कि आधी इसलिये की गयी है कि रम्मो तो आधा समय दूध पिलाने और खेल खिलानें में लगा देती है | संवरिया ने उसकी इस बात को मान लिया और ठेकेदार से कोई बहस नहीं की पर जब संवरिया ने रम्मो को यह बात बतायी तो रम्मो संवरिया से झगड़ बैठी | संवरिया बोला -इसमें झगड़े की क्या बात है ? फैसला तो ठीक है | जब आधा काम किया तो आधे पैसे मिलेंगें |
रम्मो :- आधा काम कैसे ? बच्चे को दूध तो पिलाना ही पड़ेगा | सरकार भी बच्चा होने पर 6 महीनें की छुट्टी तनख्वाह के साथ देती है | अब अगर हम दोनों के पास छोटा बच्चा है और उसकी देख -रेख में कुछ समय लग जाय तो क्या कोई पगार काट लेता है ? तुम ठेकेदार से कहो कि वह पूरे पैसे दे नहीं तो हमें काम की कोई कमी नहीं है | और कहीं देख लेंगें |
संवरिया के आगे एक समस्या आ खड़ी हुयी वह ठेकेदार की बात मान गया था पर अब बहस करेगा तो ठेकेदार का दिमाग गरम हो जायेगा पर रम्मो की जिद्द के आगे उसकी एक न चली | रम्मो रात में रेडियो पर हर रोज ख़बरें सुनती थी || कई बार उसने सुना था किसी स्त्री को पुरुष के बराबर ही अधिकार हैं और दोनों में कोई भेद -भाव नहीं होना चाहिये और फिर वह संवरिया से कोई कम काम तो नहीं करती | कितनी बार संवरिया बीड़ी पीता है | और गपशप मेँ लगा रहता है | वह तो बच्चे के अलावा और कोई समय खराब ही नहीं करती | काम में लगी रहती है | संवरिया ने ठेकेदार मनफूल सिंह से यह बात कही |
मनफूल सिंह :- तू अजीब आदमी है | पहले पूरी रजामन्दी से बात मान ली , अब एक पंगा खड़ा कर रहा है |
संवरिया :- मैं तो मान गया पर वह तो नहीं मानती | कहती है सरकार आदमी औरत की मजदूरी में कोई फर्क डालना नहीं चाहती ,अगर मजदूरनी के पास छोटा बच्चा है और उसकी देख -रेख में थोड़ा -बहुत टाइम लग जाता है तो ठेकेदार उसके पैसे नहीं काट सकता है | तुम चाहो तो रम्मो से खुद बात कर लो मुझे कोई ऐतराज नहीं है |
मनफूल सिंह अधेड़ होकर बुजुर्गी की ओर बढ़ रहे थे | उन्होंने उन दिनों में ठेकेदारी शुरू की थी जब औरत की मजदूरी आदमी से आधी होती थी | फिर आधे से बढ़कर तीन चौथायी पर आ गयी और अब तीन चौथायी से बढ़कर बराबर हो गयी | अब एक नया सिर दर्द यह शुरू हो गया कि अगर छोटा बच्चा है तो उसके ऊपर देख -रेख में लगने वाला टाइम भी मजदूरी में शामिल किया जाय ,उनकी समझ में सरकार की सोच लंगड़ी दिखायी पड़ी | उन्होंने फैसला किया कि वह रम्मो से बातचीत करेंगें | इन्हीं दिनों वांशिंगटन D. G . के एक अनुसन्धान संस्थान ने जो अन्तर्राष्ट्रीय खाद्य उपलब्धता पर नजर रखता है एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी | रिपोर्ट यह थी कि पांच वर्ष के नीचे के बच्चों में भुखमरी की द्रष्टि से कौन देश कहाँ खड़ा है | रिपोर्ट में चार श्रेणियां रखी गयी थीं | भुखमरी किस स्तर की है | इसके लिये (1 ) Moderate, ( 2) Serious ( 3 ) Alarming (4 ) External Alarming| एशिया महाद्वीप में बँगला देश को छोड़कर और सभी देश भारत से ऊंचाई पर खड़े हैं | केवल बँगला देश भारत से एक श्रेणीं नीचे है | चीन न ० 9 पर है ,पकिस्तान 59 न ० पर है ,नेपाल 56 नम्बर पर ,है और भारत अफ्रीका के कितने ही लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था वाले देशों से नीचे के रैंक पर उदाहरण के लिये गिनी ,बिसाऊ ,टोंगो ,वुट्कीना ,फैसो ,सूडान ,खांडा और जिम्बाबे जैसे लड़खड़ाते देश उसके ऊपर खड़े हैं | यह रिसर्च इस बात को लेकर की गयी थी कि पांच वर्ष के कितनें बच्चे भुखमरी से मर जाते हैं या बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं या अपंग हो जाते है | अमरीका से की गयी इस सामाजिक रिसर्च के निष्कर्षों को भारत के रेडियो और टेलीविजन पर प्रसारित नहीं किया गया था और अखबारों में भी पीछे के पन्नों में दबी -दबी सूचना दे दी गयी थी ,पर कुछ अच्छे सोशल साइंसेज के स्कूलों में इस रिपोर्ट पर विस्तृत चर्चा हुयी थी और इस सम्बन्ध में केन्द्र की सरकार को कुछ सुझाव भेजे गये थे | मनफूल सिंह इन ख़बरों से सदैव दूर रहते थे पर उनकी छोटी बेटी जो सोशल साइंस में भारत की गरीबी पर रिसर्च कर रही थी इस प्रकार की ख़बरों से अपनी रिसर्च के लिये कोई न कोई सामग्री जुटाती रहती थी | उस शाम काम ख़त्म होनें के बाद जब रम्मो बच्चे को उठाकर संवरिया के साथ तम्बूनुमाँ घर में जानें को हुयी तो मनफूल सिंह नें उनको अपनें पास बुलाकर रम्मो से पूछा कि वह खाहमखाह की शिकायत क्यों कर रही है ? जितना काम करेगी उतना ही तो पैसा मिलेगा | रम्मो ने ठेकेदार से कहा कि वह पूरा काम करती है और उसे पूरा पैसा मिलना चाहिये | अगर कोई शक है तो सबका काम अलग -अलग कर दिया जाय | वह अपना काम करके दिखायेगी , फिर अपनें बच्चे की ओर देखकर कहा इसका पेट भी भरूँगीं और अपना काम भी करूँगीं ,फिर आसमान की ओर देख कर कहा हे भगवान कैसी आजादी है किसी का बच्चा भूखों मर जाय पर 5 -7 मिनट काम में हर्ज न हो और किसी के बच्चे इतना दूध पावें कि पोंकनें लगें | बच्चे तो भगवान की मूरत होते हैं | पूरा खाना ,खेलना और आराम तो मिलना चाहिये | मनफूल सिंह नें रम्मो की ओर ताज्जुब से देखा उन्हें लगा कि अब औरतों में कुछ फर्क आ गया है | मजदूरनी भी बड़े -बड़े सवाल खड़े करनें लगी हैं | अरे भाई जिसके होगा उसके बच्चे खायेंगें ,जिसके नहीं होगा उसके बच्चे रोयेंगें | कोई क्या करे ? अब अगर कोई बच्चा बीमारी या कमजोरी से मर जाय तो हम इसमें क्या कर सकते हैं | मनफूल सिंह नें सोचा अगले हप्ते फिर से वह मजदूरी देते समय रम्मो की टीका टिप्पणीं पर ध्यान देंगें और यदि चुप न हुयी तो और कहीं काम देख ले | ठेकेदार साहब जब घर पहुंचें और खानें की मेज पर परिवार के सब लोग इकठ्ठे हुये तो उनकी छोटी बेटी नें उनको बताया कि सोशल साइंस की रिसर्च के काम में उसे एक चार्ट भरना है | इस चार्ट में सड़क बनानें के काम में लगे मजदूर परिवारों के पांच वर्ष से छोटे बच्चे के खान -पान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न तालिकायें भरनी हैं | इसके लिये उसे काम करती और बच्चे पालती मजदूरनियों से सम्पर्क साधना होगा | वह जानती थी कि उसके पिता के सड़क बनानें के ठेके में भी बीसों मजदूर परिवार हैं | उसनें पिता जी से कहा कि अगले दिन काम पर लगी मजदूरनियों के बीच वह स्वयं जायेगी और उनसे जो उत्तर मिलेंगें वह प्रश्न तालिका में भरकर प्रोजेक्ट को पूरा करेगी | रिसर्च के लिये फील्ड वर्क जरूरी है | छोटी बेटी सुधा की इस बात नें मनफूल सिंह को बेचैन कर दिया | सुधा से बातचीत के दौरान अगर रम्मो नें उसे बता दिया कि उसे आधी मजदूरी दी जा रही है क्योंकि वह अपनें बच्चे को दूध पिलानें के लिये सड़क के काम में से कुछ समय निकाल लेती है तो एक तरह से उनकी बदनामी हो जायेगी | उन्होनें सुधा से पूछा कि तुम जो पढ़ायी -लिखायी कर रही हो उससे क्या गरीब मजदूरनियो को क्या कोई फायदा हो सकेगा | सुधा नयी चेतना से सम्पन्न लड़की थी | उसनें अपनें माता -पिता को कई बार यह बात कही थी कि पैसा कमानें के लिये उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिये जो गरीबों के जीवन को और अधिक दुखदायी बना दे | पैसे की अधिकता तृष्णा बन जाती है और जब आदमी अपनी मानवीय संवेदना खो देता है तो उसे देश के भविष्य की चिन्ता नहीं रहती | सुधा नें अपनें पिता को बताया कि भारत की केन्द्रीय सरकार एक ऐसी योजना बना रही है उन सब माताओं को जिनके बच्चे पांच वर्ष से छोटे हैं सेवा केन्द्रों में निःशुल्क पौष्टिक आहार दिया जाय | यदि मातायें स्वस्थ्य होंगीं तो प्रारम्भ के दो तीन वर्ष उनके स्तन पान से भारत की सन्तान स्वस्थ बनकर निकलेगी और बच्चे के कुछ बड़ा होनें पर सरकार की अतिरिक्त सहायता से दूध के अतिरिक्त कुछ और पौष्टिक उपलब्ध कराया जायेगा | भारतवर्ष के लगभग 40 प्रतिशत बच्चे Under Weight होते हैं | पांच वर्ष से नीचे के बच्चों की मृत्यु दर भी भारत में सबसे अधिक है | स्वास्थ्य विज्ञान कहता है कि यदि पांच वर्ष तक बच्चों को सन्तुलित आहार मिल जाय तो भविष्य में उसके स्वास्थ्य की मजबूत नींव पड़ जाती है और यदि ऐसा नहीं होता तो आधे पेट रहनें वाले बच्चे जी जानें पर भी जीवन का आनन्द नहीं उठा पाते | हमारा देश इन दिनों 8 -9 प्रतिशत की सालाना आर्थिक विकास दर से बढ़ रहा है | विश्व में चीन के बाद यह सबसे बड़ी आर्थिक प्रगति है | अमरीका की आर्थिक प्रगति तो 2 -3 प्रतिशत ही है | और यही हाल योरोप के विकसित कहे जानें वाले देशों का है | भारतवर्ष के कितनें ही खरबपति अब संसार के सबसे धनी आदमियों में शामिल हो गये हैं | माना जानें लगा है कि मुकेश और अनिल अम्बानी मिलकर विश्व के किसी भी अमीर से आगे निकल जाते हैं | अकेले मुकेश की ही सम्पत्ति अमरीका के बिल गेट्स को पछाड़ रही है | मध्यम वर्ग में भी काफी सम्पन्नता आ गयी है | सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाहें इतनी बढ़ गयी हैं कि वे आराम का जीवन बिता सकें | इतना धन होते हुये भी गरीबी रेखा से नीचे रहनें वाले लोग भारत के विकास का लाभ नहीं पा रहे हैं और करोड़ों तो ऐसे हैं कि जो अपनें बच्चों को दूध तक नहीं दे सकते | ऐसा इसलिये है कि इनकी माताओं के स्तन में खुराक के अभाव में पूरा दूध बन ही नहीं पाता फिर उसनें अपनें पिता जी से कहा कि भारत वासी अपनें छोटे से स्वार्थ के लिये देश के भविष्य को दांव पर लगा देते हैं | अगर हमारी नयी पीढ़ी स्वस्थ बनकर नहीं उभरती तो आर्थिक प्रगति से आनें वाली अपार सम्पदा कुछ प्रतिशत लोगों में सिमट कर सारे राष्ट्र के लिये कैंसर बन जायेगी | पिताजी अब मेरी यह रिसर्च पूरी होनें जा रही है | न जानें मेरे मन में हो रहा है कि वैभव का यह जीवन मेरी आत्मा को यानि मेरे अन्तरसुख को धीमा करता जाता है | हमें जो लोग वंचित हैं उनके विषय में भी कुछ सोचना चाहिये | आप यदि सहमत हों तो मैं कुछ ठेकेदार परिवारों से सम्पर्क करके एक ऐसे सेवा केन्द्र की स्थापना करना चाहूँगीं जिसमें शिशुओं और बालकों को दूध ,फलों का जूस ,पतला दलिया ,खिचड़ी और इसी प्रकार के अन्य हजम होनें वाले पुष्ट भोजनों की मुफ्त व्यवस्था हो सके | चलिये इस विषय पर और इस दिशा में मेरे रिसर्च पूरी हो जानें पर सोचा जायेगा | मैं जानती हूँ कि आप मना नहीं करेंगें | कल लगभग 11 बजे मैं अपनी दो लेडी प्रोफ़ेसर के साथ जहां पर अपना काम चल रहा है गाड़ी में आ जाऊंगीं | हमारी प्रोफेसर्स अमरीका के एक विश्वविद्यालय में अपनें कुछ पेपर्स प्रिजेन्ट करेंगीं | वे चाहती हैं कि वे स्वयं अपनी आँखों से ईंट और गारा ढोती मजदूरनियों का जीवन देंखें और अपनें कानों से उनकी परेशानी ,उनके दुःख और उनके नारी स्वभाव सुलभ सहयोगिता के विचार सुनें | मजदूरनियों का भी अपना स्वप्न संसार होता है और उनके छोटे बच्चे उनके लिये राजकुमार से कम नहीं होते | मनफूल सिंह जी यह सब सुननें के बाद न जानें क्या सोचते हुये अपनें कमरे में चले गये | सुधा काफी देर तक बैठी माता जी से बातचीत करती रही |
अगले दिन 10 बजे के आस -पास ठेकेदार मनफूल सिंह नें काम करते संवरिया को अपनें पास बुलाया | दो हप्तों से रम्मो की आधी कटी हुयी मजदूरी के पूरे पैसे संवरिया को दे दिये फिर कहा कि वह रम्मो को बुला लावे | रम्मो अपनें बच्चे को दूध पिलानें में लगी थी जल्दी में अपनें वक्ष आँचल को ढांकते हुये ठेकेदार के पास आयी बोली बाबू जी क्या बात है ? मनफूल सिंह नें उसकी ओर करुणापूर्ण द्रष्टि डालते हुये कहा बेटी !मैनें तुम्हारी पूरी मजदूरी यानि पिछले दो महीनों की कटी हुयी रकम संवरिया को दे दी है | तुम्हें अब संवरिया के बराबर मजदूरी तो मिलेगी ही साथ ही तुम दोनों के बच्चे को मैं अपना पोता मानकर पांच वर्ष तक उसके लालन -पालन का सारा खर्च वहन करूँगां | मेरी बेटी सुधा अभी तुम लोगों के बीच आनें वाली है उसे मजदूरी काट लेनें वाली बात मत बताना | रम्मो और संवरिया अवाक रह गये | मनुष्य का हृदय भी परिवर्तन के कितनें दौरों से गुजरता है | इसे संवेदना सम्पन्न प्रबुद्ध नर -नारी ही समझ सकते हैं |