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                               बालि -सुग्रीव ( नये सन्दर्भों में )
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           रामायण के बालि सुग्रीव से सम्बन्धित कथा से कौन भारतीय परिचित नहीं है ? भारत से सुदूर दक्षिण पूर्व एशिया में बालि और सुग्रीव से सम्बन्धित कथायें वहां की चिरस्थायी सांस्कृतिक धरोहर बन चुकी हैं | रामायण की अन्य घटनाओं के विषय में व्यापक भिन्नता के दर्शन  होते हैं | उदाहरण के लिये वीरप्पा मौली की कन्नड़ रामायण में जब राम की लंका विजय के बाद जनक पुत्री सीता अपनी सतीत्व परीक्षा  के लिये अग्नि में प्रवेश करती हैं तो उन्हें मन्दोदरी के द्वारा अग्नि से बाहर निकाल लेनें की बात कही गयी है | लंकापति रावण की मृत्यु और विभीषण के तिलक के बाद मन्दोदरी साम्राज्यीय सम्बन्धों की किस धरातल पर स्थापित हुयी थी यह सुनिश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता | सीता की अग्नि परीक्षा भी सर्व शक्ति सम्पन्न पुरुषों के बीच नारी के स्वतन्त्र अस्तित्व की पहचान के रूप में ली जा सकती है पर हम जिस बालि और सुग्रीव की कथा पर आपका ध्यान आकर्षित कर रहे हैं उसको न तो किसी ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में ले रहे हैं और न ही किसी पौराणिक सन्दर्भ में ,हम सिर्फ यह कहना चाह रहे हैं कि दो नर आकृतियों की अदभुत शारीरिक एकरूपता बड़े से बड़े पारखी को भी भ्रमित कर देती है | तभी तो सुग्रीव जब बालि की मार खाकर राम की शरण में भागा और श्री राम से  जानना चाहा कि उन्होंने अपनें अमोघ शर का प्रयोग बालि पर क्यों नहीं किया ,तो श्री राम ने स्वीकार किया कि उन्हें पहचाननें में भूल हो गयी | 'एक रूप तुम भ्राता दोऊ 'यह कहकर श्री राम ने माना कि उन्होनें बाण इसलिये नहीँ चलाया कि कहीं भ्रम में बालि के स्थान पर सुग्रीव ही आहत न हो जाय | फिर उन्होंने सुग्रीव को पुष्पों की एक विशेष माला पहना कर बड़े भाई बालि को ललकारनें को कहा | अब सुग्रीव की एक अलग पहचान बन गयी थी | पुष्प माला नें सुग्रीव की विशिष्ट पहचान बना दी बस फिर क्या था बालि की छाती रघुपति शर से विदीर्ण तो होनी ही थी | जुड़ुवां भाई -बहनों की ऐसी ही न जानें कितनी कहानियां ,विश्व साहित्य में उपलब्ध हैं | हजारों वर्ष से जुड़ुवा भाई -बहनों की एक ही मां के पेट से आनें की प्रक्रिया चल रही थी | पर ऐसा क्यों होता है इस पर कोई तर्कसंगत द्रष्टि नहीं डाली गयी थी | यह मान लिया जाता था कि यह सब भगवान् का निराला खेल है ,और उसकी माया का कोई अन्त नहीं है | इसमें तो कोई शक नहीं कि श्रष्टि का जो भी खेल चल रहा है उस सबके पीछे प्रकृति का हाँथ है | ब्रम्हाण्ड के इन स्वयं निर्धारित नियमों का संचालन स्वयं होता है या किसी अबूझी अन्जानी शक्ति से | यह दर्शन का सबसे जटिल प्रश्न है | फिलहाल जिस विषय पर हम बात करने जा रहे हैं उससे इस दार्शनिक प्रश्न का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है | अब जब सब कुछ डिज़िटल हो गया है और जब नन्दन नीलकेनी हम सबको एक विशिष्ट नम्बर से छाप रहे हैं तो इस ओर भी विज्ञान सम्मत द्रष्टि डालनी होगी कि श्रष्टि में जुड़ुवां भाई -बहनों का खेल कैसे घटित होता है | लगभग सभी धर्म यह मानते हैं कि उनके महानतम पैगम्बर ईश्वरीय शक्तियों द्वारा जन्माये गये थे | यदि नारी से उनका जन्म हुआ भी है तो यह जन्म किसी पुरुष के सहवास के कारण नहीं हुआ बल्कि  दैवी कृपा से या रहस्यमयी अशरीरी मिलन प्रक्रिया से | पर अब सम्भवतः हर सभ्य नर -नारी यह जानता है कि नयी श्रष्टि के लिये नारी और नर का मिलन आवश्यक है | यह मिलन  चाहे शारीरिक हो चाहे प्रयोगशालाओं में यान्त्रिक क्रियाओं से सम्पन्न किया जाय | Egg और Spen के मिलन  के  बिना नयी श्रष्टि सम्भव नहीं है | आज विज्ञान ने हमें वह साधन दे दिये हैं कि मैथुन को प्रजनन से अलग कर एक स्वतन्त्र रूप पा जानें की क्षमता मिल गयी है | पर हम बात कर रहे थे Twins की | कई बार हम पाते हैं कि किसी मां -बाप के बच्चे अलग -अलग समय में जन्म लेकर भी काफी कुछ समानता रखते हैं | कई बार हम पाते हैं कि एक मां की गोद  से एक ही समय कुछ आगे -पीछे जन्में बच्चों में भी गहरी समानता होती है ,पर हम जिसे एकरूपता कहते हैं यानि शरीर की बनावट में किसी भी अन्तर का न होना यह एकरूपता Identical Twins में ही पायी जाती है | | प्रजनन विज्ञान इस विषय में क्या कहता है ,इसपर एक नजर डालनी होगी |
                                            जैसा के हम पहले कह चुके हैं प्रकृति के खेल निराले हैं | नर -नारी के सहवास के बाद एक Span जब किसी एक Egg को Fertilizer कर देता है यानि Egg जीवन्त  हो जाता है और एकाध दिन के बाद यह Egg टूट कर दो Eggs में बदल जाता है तो दोनों Eggs में एक जैसे शिशुओं की श्रष्टि होने लगती है | चूंकि अण्डा और जीवाणुं दोनों एक ही होते हैं और अण्डे के रहस्यमयी दुखण्डी विभाजन से उनके भीतर पलनें वाली जीवन की एक रूपता पर कोई अन्तर नहीं  पड़ता इसलिये इन दोनों अण्डों में पल रहे शिशु Identical Twins होते हैं | अब Span में मादा शिशु बनाने की गुणवत्ता है तो दोनों अण्डों से मादा शिशु जन्मेंगे और यदि Span में नर शिशु बनाने की गुणवत्ता है तो दोनों एक जैसे नर शिशु जन्मेंगे | हमें यहां यह ध्यान रखना होगा कि Identical Twins हमेशा एक ही sex के होंगें | यानि लड़के होंगें तो दोनों लड़के ,लड़कियां होंगीं तो दोनों लडकियां , क्योंकि इसमें क्षेत्र और बीज एक जैसा है इसलिये इनकी आकृति तो समान  होती ही  है इनकी मानसिक और आन्तरिक क्षमतायें भी लगभग समान  होती हैं | यहां हम लगभग शब्द का प्रयोग इसलिये कर रहे हैं क्योंकि Identical Twins को भी पलने  और बड़ा होने में अधिकतर एक जैसा परिवेश नहीं मिलता | जलवायु के प्रभाव को देखने के लिये Identical Twins  को लेकर यूरोप के  कई देशों और अमरीका में अनेक प्रयोग किये गये हैं | इन प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकाला गया है यद्यपि  जलवायु का प्रभाव पड़ता है पर यह प्रभाव सीमित ही होता है | | यानि क्षमतायें लगभग एक जैसी होती हैं | इस दिशा में कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं |
                            ब्रिटेन में 1972 में एक अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि Identical Twins की शारीरिक क्षमतायें लगभग एक सामान होती हैं | David और Robert Hold दोनों ही Twins थे और तीव्र धावक के रूप में ख्याति पा गये थे | 10 ,000 मीटर की दौड़ में इन दोनों ने इंग्लैण्ड में टाइम का लगभग एक जैसा रिकार्ड कायम किया | डेविड नें 28 . 48 का समय लिया जबकि रोबर्ट होल्ड ने 28 . 398 का | इसीप्रकार फिनलैण्ड में दो जुड़ुवा बहनें कैसा और क्रिस्टी नें एक जैसी दूरी पर जैवलिंग को फेंक कर यह माननें पर विवश कर दिया कि Identical Twins की शारीरिक क्षमतायें एक जैसी होती हैं | पश्चिमी जर्मनी में फ़ुटबाल के दो मशहूर खिलाड़ी हेल्मुट और एरविन लगभग एक जैसे टाइम और एक जैसी चालें फ़ुटबाल के खेल में ले पाते हैं | इसी प्रकार फ्रांस में पैस्कल और पैट्रिक 100 और 200 मीटर की दौड़ में लगभग एक जैसा समय लेते हैं | योरोप के एक छोटे से देश आस्ट्रीया में पौधों ,पशुओं और पक्षियों को लेकर Greger  Mandel नें हैरीडिटी और एन्वायरेंनमेन्ट से पायी गयी समानताओ और विषमताओं पर ठोस वैज्ञानिक शोधें प्रस्तुत की थीं | इसी कारण मेंडेल को Genetic का महापुरुष माना जाता है | उन्हीं के नाम पर 1953 में रोम में प्रोफ़ेसर लुविगी गेड्डा ने एक संस्थान कायम किया है | जो Twins पर विश्वव्यापी रिसर्च में लगा है | अब हम उन Twins की बात करें जो एक ही अण्डे और एक ही जीवाणुं से नहीं जन्मते पर फिर भी मां के पेट से साथ -साथ जन्म लेते हैं | इनकी संख्या एक रूपीय Twins से लगभग 2 -2 . 5 गुना होती है | इनमें काफी विभिन्नता पायी जाती है | इस विभिन्नता का कारण यह है कि इनका जन्म एक ही समय में दो अलग -अलग अण्डों में दो अलग -अलग जीवाणुओं के प्रवेश के कारण होता है | आप जानते ही होंगें कि लिंग यानि सेक्स के निर्माण में अण्डे का कोई हाँथ नहीं होता | Egg या अण्डा तो एक क्षेत्र या भूमि है जहां भोजन उपस्थित है और बीज की  प्रतीक्षा कर रहा है | Egg में भी अर्धचेतना है और Spern में भी अर्धचेतना ,जब दोनों का मिलन होता है तो एक चेतन सेल बन जाता है और एक से दो और दो से चार की गति से बढ़ता जाता है | अब यदि Spern  में नर शिशु बनानें की गुणवत्ता होगी तो नर शिशु बनेगा और यदि मादा शिशु बनाने की गुणवत्ता होगी तो मादा शिशु बनेगा | चूंकि दो अलग -अलग अण्डे हैं और दो अलग -अलग Spern  इसलिये एक नर शिशु हो सकता है और दूसरा मादा शिशु पर यदि दो Spern एक जैसे हैं तो दोनों नर शिशु हो सकते हैं या दोनों मादा शिशु हो सकते हैं | इस प्रकार के Twins चूंकि एक ही  समय में गर्भ में आ जाते हैं इसलिये साथ -साथ जन्मते हैं | पर उनमें भिन्नतायेँ ठीक उसी प्रकार पायी जाती हैं जैसे अलग -अलग समय में जन्म लेनें वाले भाई -बहनों में एक ही माता -पिता की कई संतानें जो अलग -अलग समय में जन्म लेती हैं | कर बार अदभुत समानता रखती हैं | ऐसा वंश परम्परा के कारण होता है | | अंग्रेजी की एक कहावत सभी जानते हैं ' Like father like son .'बेटा बाप पर थोड़ा -बहुत पड़ता ही है | क्या कभी आपनें सोचा है कि आप अधिक लम्बे क्यों नहीं हो सके या आप की आँखें भूरी क्यों हैं ? या आपके बाल किशोरावस्था से ही सफ़ेद से क्यों दिखते हैं या आपकी दन्तावलियाँ उबड़ -खाबड़ क्यों बनीं हैं ? आदि आदि | इन सबके पीछे बहुत कुछ वंश परम्परा का हाँथ है | अब चूंकि वंश परम्परा में भी सैकड़ों- हजारों वर्ष के काल में अनेक बदलाव आते रहते हैं | मां  कहीं से ,पिता कहीं से ,दादी कहीं  से आती है ,दादा कहीं से ,कोई लंबा है, कोई ठिगना | कोई किसी बीमारी को अपने में छिपाये है तो कोई स्वस्थ्य लम्बे जीवन की परम्परा को | इन सब कारणों से परम्परा में सतत परिवर्तन चलता रहता है | पर हमें यह नहीं भूल जाना चाहिये कि परम्परा ही अन्तिम निष्कर्ष तक पहुंचा सकती है| | परम्परा की पीठिका पर हमारे आस- पास का सामाजिक ,भूगौलिक और प्राकृतिक वातावरण गहरा प्रभाव डालता रहता है | हजारों हजार वर्ष के काल में बुद्धि के विकास ने वंश परम्परा को असंख्य बार चुनौती दी है |  अब मष्तिष्क के विकास के सम्बन्ध में यह माना जानें लगा है कि इसमें वंश परम्परा का कोई अधिक महत्वपूर्ण भाग नहीं है | अंग्रेजी में जिसे Nature और Nurture कहते हैं उसमें कम से कम मष्तिष्क के विकास के सम्बन्ध में नर्चर की भूमिका नेचर की भूमिका से कहीं अधिक अहम है | | अंत में चलते -चलते आइये फिर से एक बार बालि और सुग्रीव का जिकर  कर लें | अब बालि और सुग्रीव  identical Twins ही थे या एक ही समय में जन्में या अलग -अलग भ्रूणों के विकास इस सम्बन्ध में हमें  कोई स्पष्ट निर्णय नहीं दे सकते क्योंकि शारीरिक एकरूपता होने पर भी बालि की शारीरिक क्षमता सुग्रीव से कहीं बहुत अधिक थी | महाकाव्यीय काल में पैठनें से हम एक एक रहस्य से दूसरे  रहस्य में फंसते चले जाते हैं | उन गहरे रहस्यों से दूर मध्यकाल के साहित्य में भी  अनेक ऐसे प्रसंग पाये जाते हैं जहां रूप की समानता अत्यन्त रोचक नाटकीयता को जन्म देती है | शैक्सपियर के कई नाटकों में भाई -बहन की आकृति की समानता को लेकर रोमांचक संयोग के अनेक द्रश्य प्रस्तुत किये गये हैं | हिन्दी के पाठकों ने यदि वृन्दावन लाल वर्मा  द्वारा लिखित उपन्यास गढ़ -कुंढार पढ़ा है तो वे जानते ही होंगें कि अग्निदत्त और उसकी बहन तारा की रूप समानता को लेकर उपन्यास के कथानक को किस तरह चित्र -विचित्रमय बनाया गया है | और विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में ऐसा देखने में आता है कि यदि Identical Twins ब्रदर्स एक ही क्लास के भिन्न -भिन्न सेक्शनों में हो जांय तब वे जब चाहें जिस किसी सेक्शन को अटेण्ड कर लें | पता ही नहीं लग पाता कि कौन राम है और कौन श्याम | राम और श्याम  नाम का ध्यान आते ही मुझे उस फिल्म की याद आ जाती है जिसमें दिलीप कुमार ने राम और श्याम के रूप में Identical Twins के रोल अदा किये थे | उनके व्यक्तित्व का अन्तर उनकी इन्वारेंनमेन्ट के प्रभाव से हुआ था | पर मूलतः वे दोनों भाई नैतिक और शारीरिक शक्ति से सम्पन्न थे | और न जानें कितने ऐसे किस्से हैं जहां हम शक्ल भाई या हमशक्ल बहनें विपुल जन  साहित्य को श्रष्टि देती रहती हैं |
                                       प्रोफ़ेसर गेड्डा ने इटली में दो एक रूपीय भाइयों के असमंजस को एक पुलक भरी उत्सुकता जगानें वाली कहानी बना कर पेश किया है | एक भाई पादरी था और एक भाई माना हुआ सर्जन | कई लोग चर्च में पादरी को मिलने के बाद सर्जन  से फीस देकर यह पूछने आते थे कि वह अपनी पहचान को छिपानें के लिये पादरी क्यों बनते रहते हैं | इसी प्रकार कई बार जब सर्जन के यहां से परामर्श के बाद कुछ लोग चर्च जाते तो पादरी साहब से अपनी बीमारी की बातें करने लगते | डा ० गेड्डा ने सुझाव दिया है कि ऐसी घटनायें छलरहित कहकहा लगवा देने का पूरा सरोजान तैय्यार रखती हैं | इधर हाल ही में वंश परम्परा से पायी हुयी बीमारियों को लेकर Twins के माध्यम से गहरी खोजें की गयी हैं | लन्दन के एक मनो वैज्ञानिक संस्थान में कार्यरत डा ० जेम्स शील्ड ने Identical Twins में से एक को इनमें से कोई एक बीमारी होती है | तो दूसरे  में भी वही बीमारी पायी  जाते है | पर कुछ वीमारियों जैसे निमोनियां ,जिगर या किडनी की बीमारियां या उच्च रक्तचाप वंशानुगत न होकर ( Environment )Identical Twins से ज्यादा सम्बन्धित है | कैन्सर भी परम्परागत श्रेणीं में नहीं आता और हार्ट अटैक को लेकर रिसर्चेस किसी अन्तिम निर्णय पर नहीं पहुँची हैं | बीते कल में हम जिसे भगवान् की लीला कहते थे उसे आज हम मानव बुद्धि विकास की बौद्धिक सम्भावनाओं में घेर रहे हैं | सच तो यह है कि हर बीज और हर क्षेत्र की अपनी अलग -अलग परिस्थितियां और आन्तरिक शक्तियां हैं | गहरा अन्वेषण कई बार थकान के कारण किनारे पर बैठ जाता है जिस प्रकार आध्यात्म की प्राप्ति सम्पूर्ण डूबने पर ही होती है | वैसे ही वैज्ञानिक शक्ति की प्राप्ति भी पूर्ण तन्मयतः और स्वार्थ रहित समर्पण के बिना नहीं हो सकती | भारतवर्ष में भी विज्ञान की कुछ प्रयोगशालायें और कुछ विश्वविद्यालय प्रशिक्षण केन्द्र Twins के माध्यम से Heredity वंश परम्परा से प्राप्त वीमारियों के अध्ययन में जुटे हैं | Twins को उत्पन्न कर प्रकृति हमारे शरीर विज्ञान के नये -नये अनुसन्धानों का अवसर प्रदान कर रही है | आइये हम सब सत्य के खोजी बनें |
"जिन खोजा तीन पाइयाँ
गहरे पानी पैठ
मैं बैरी खोजन गयी
गयी किनारे बैठ | "

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