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Mati Ke ..........

                               'माटी 'के आठ वर्ष पूरे हो गये  हैं । छपे शब्दों की नग्न बाजारी दौड़ में भारतीय तहजीब की सुसंस्कृत वेषभूषा पहन कर 'माटी 'ने दौड़ से बाहर करने वालों को एक चुनौती भरी ललकार...

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करो या मरो

हाँ तुम्हे मुझपर हँसने का पूरा हक़ हैचाहो तो मुझसे घृणा कर सकते हैया ..... या मुझपर तरस खा सकते होमैनें तुम्हें बुद्ध ,ईसा और गांधी केआदर्शों पर चलने के लिये कहामैनें तुम्हें सत्य ,त्याग और ईमानदारी के...

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विरक्ति का दौर

राह के हर मोड़ पर कुछ जुड़ रहे कुछ टूटते हैंदेह के सम्बन्ध सब क्या काल क्रम से छूटते हैं ?सत्य है तुम कल तलक मम् प्रेरणा की श्रोत थीं ।सत्य है तुम कल तलक पूजित सुवासित जोत थींकल तुम्हीं से सार्थक...

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भीड़ से हटकर

कालेज से घर आते उस दिन  सोच रहा थाविषय चुक गये सब कविता केशेष रह गया केवल अपने को दुहरानातभी द्रष्टि पड़ गयी पास वाली बगिया कोआरक्षित करने वाली उस सुद्रढ़ भित्ति परजहाँ गर्व से तनी देह लेरक्त -मुखी कपि...

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Article 1

प्रताप के आदशों के साथ वर्तमान पत्रकारों की उत्तरजीविता                                      मत ,जाति ,वर्ण, नस्ल ,भाषा ,खान -पान ,पहनावा ,जल -वायु ,और भूखण्डीय विभिन्नताओं के बीच भारत का जनतन्त्र...

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Article 0

श्रद्धेय गणेश शंकर यिद्यार्थी जी की स्मृति में . आत्मवादी विचारक उस रहस्यमयी साधना की वकालत करतें हैं जो मानव को जीवन -मरण के चक्र से मुक्ति दे सके। अनात्मवादी विचारक मुक्ति ,निर्माण ,मोक्ष ,कैवल्य या...

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गौरय्या स्मृति

उस दिन छत पर लेटे संध्या की द्वाभा मेंमैं सोच रहा था कुछ सुख दुःख की बात लिखूँस्वर दे दूँ किसी विरहनी की मन पीड़ा कोउसके जलते दिन और तड़फती रात लिखूँकाजल कोरों से छलक रही जल कणिका कामैं दर्द भरा इतिहास...

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अर्थ व्यवस्था नयी द्रष्टि से

                         मैंने कौटिल्य का अर्थशास्त्र तो नहीं पढ़ा पर भारत के इस समय के बड़े समझे जाने वाले अर्थशास्त्रियों के कथनों पर काफी सोचा विचारा है । महान सम्राट चन्द्रगुप्त के महामन्त्री ,अपार...

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अर्थव्यवस्था नयी द्रष्टि से

...................... अपने विद्यार्थी दिनों की कुछ कहानियाँ मेरे मष्तिष्क में घूम जाती हैं । लियो टालस्टाय की कालजयी कहानी " How Much Land Does A Man Need ."में मनुष्य के अनियन्त्रित लालच की करुण कथा...

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Article 2

...................... हम बीते कल को बोझ न बनावें पर बीते कल में   बहुत कुछ ऐसा है जो आज के लिये सहेजा जा सकता है । भारत के आर्थिक सूत्रधार भारत की सांस्कृतिक परम्परा से समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता...

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सांध्य -बेला

एक साँझ ढल गयी किसी का दुःख न बाँटा ।दीप्ति काल टल गया व्याप्त नीरव सन्नाटा ॥एक कदम उठ गया मौत की मंजिल पाने ।एक लहर उठ चली काल की प्यास बुझाने ॥एक पृष्ठ  बह् गया प्रलय की जलधारा में ।एक गीत घिर गया...

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प्रश्न उत्तर माँगते हैं

हजारों साल से फसलें उगाता जा रहा हूँभूख की डाईन निरन्तर बलि  अभी तक पा रही है ।काहिरा से सोन तट सब भर दिये वस्त्रा भरण सेश्रम रता धनिया चिता पर अर्ध नग्ना जा रही है । प्रश्न उत्तर माँगते हैं ।जूझते...

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सागर माथा से

कंचन जंगा के शिखर बैठ मैंने देखादायें बायेंधूसर विराटभारत माँ का भुज युग प्रसारहै शिरा जाल सी सींच रहीगिरिषुता जिसे हिम काट- काट । पग  तल घेरे योजन हजारकीर्तन रत सागर महाकार माँ के चरणों को चूम चूम...

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आदि पूर्वजों की ओर

                एवरेस्ट की चोटी को फ़तेह करने वाले प्रथम दो पर्वतारोही एडमण्ड हिलेरी (आस्ट्रेलिया )और तेनजिंग नार्वे (इण्डिया ) के नामों से भला कौन परिचित न होगा । और अब तो भारत से ही एवरेस्ट की चोटी पर...

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Article 5

.................................दुनिया के चिन्तकों ,विचारकों ,पैगम्बरों और धर्मगुरुओं ने इस विभिन्नता के कारणों की खोज की ,दार्शनिक कल्पनाओं को रूपायित किया है । हर धर्म ने यह प्रयास किया है कि कल्पना...

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Article 4

......................... पर हम बात कर रहे थे प्रकृति में पायी जाने वाली अपार विभिन्नता की और मानव जाति में पाने वाली क्षमताओं की अपार विभिन्नता के विकासवादी यह मानकर चलते थे कि करोड़ों वर्षों में भूगोल...

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Article 3

.........................मनुष्य के विकास की कहानी अपनी छाप मनुष्य के शरीर पर भी छोड़ चुकी है । हजारों वर्षों तक द्विपदीय नँगा मनुष्य वर्षा की भीषण बौछारों और उपलघातों से बचने के लिये यदि पास में गुफाएँ...

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एक मात्र सत्य

कल तकइन वाणों  की नोकों सेसहस्त्र -सहस्त्र शत्रु -सिरछेदे थेकल तकइस धनु  प्रत्यंचा सेखींच शरलाखों लक्ष्य भेदे थेकितना अभिमान थाअप्रतिम ,अपराजित होने कामिथ्या दंभ्भ ढोने का ।शरों की नोकें आज भोंडी...

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वास (न ) सुवास

जान सका यह सत्य अभी तक के जीवन मेंमर जाता है प्यार वासना मर -मर जीतीअमर वासने अमिट तुम्हारी राम कहानीभू कुंठित लुंठित नृप योगी -ज्ञानी मानीकालचक्र सी प्रबल शताधिक रूपों वालीदंश मधुर मारक फिर भी तू मधु...

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छापा -रूप मंजूषा पर

कल मिली न कोई पँक्ति रात भर खोज -खोज मैं हाराक्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा माराफिर कूप कपोलों में घुस कविता सुधा कलश भर लायीमाथे की बिन्दिया से सहमी फिर तड़ित गणित शरमाईफिर बालों की लहरों...

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