ढेर सारे काम हम इसलिये नहीं करते क्योंकि हमारे आस -पास एक समाज है | कई दार्शनिक और प्रगतिवादी विचारक यह मान कर चलते हैं कि मानव जन्म से ही श्रेष्ठतर मानसिक संस्कार लेकर आता है | और इसीलिये वह पशुओं से भिन्न है | ऊपरी द्रष्टि से यह तर्क ठीक दिखायी पड़ता है पर जब हम गहरायी से विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि मानव के श्रेष्ठतर मानसिक संस्कार विकासवाद की ही देन हैं | निम्न स्तर से लक्ष -लक्ष वर्षों में विकसित होने वाला आदि मानव पशु संस्कारो से सर्वथा मुक्त नहीं हुआ था पर फिर सामाजिक संगठन और जीवन यापन की अपेक्षाकृत सुविधाजनक स्थितियों नें उसकी सोच में काफी परिवर्तन ला दिया | सम्पत्ति का अधिकार प्रारम्भ में वैवाहिक सम्बन्धों का सशक्त कारक रहा होगा | धीरे -धीरे पृथ्वी के भिन्न -भिन्न भूखण्डों की भौगोलिक स्थिति ,तापमान , और क्षेत्रीय वनस्पतियों नें उसकी सोच को विशिष्टीकरण की ओर मोड़ दिया | जल की कमी या उसकी प्रचुरता ,ऊष्मा की प्रचुरता या शीतलता का असहनीय भार इन सभी बातों ने उसकी जीवन पद्धति को प्रभावित किया | इन सब नें मिलकर आदिम सभ्यता के प्रारम्भिक नैतिक मूल्यों की नींव डाली फिर आदिम विज्ञान का सूत्रपात हुआ | अग्नि आयी ,पहिया बना वस्त्र बनें और पदत्राण बनें | चावल और गेंहूं की खोज नें ग्राम्य संस्कृतियों की शुरुआत की | धीरे -धीरे मानव कुशलता ऊँची टेक्नालाजी की ओर मुड़ी | धातुयें मिलीं ,खेती के औजार बनें और साथ ही साथ अभिमान ,विरासत और अधिकार नें मिलकर नर संहार करनें वाले औजारों का युग शुरू कर दिया | मानव सभ्यता के पिछले 15000 वर्षों में जो प्रगति संम्भव नहीं हुयी थी उसे ईसा की उन्नीसवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति नें नें हासिल करवाया | पर औद्योगिक क्रान्ति भी अब पिछले युग की बात हो गयी है | सूचना प्रद्योगकीय नें विश्व में एक अनोखी क्रान्ति पैदा कर दी है और अब तो स्पेस टेक्नालॉजी नें मानव सभ्यता को आमूल -चूल परिवर्तित करनें का दमदार जोर दिखाया है | आज नैतिक और अनैतिक के बीच कोई निर्णायक रेखा खींचना एक असंम्भव सा कार्य हो गया है | नर -नारी के संम्बन्धों की पवित्रता गहरे प्रश्न चिन्ह से घिरी हुयी है | अर्जन की आकांक्षा और भोगनें की अतृप्त कामना पुरानें नैतिक मूल्यों का उपहास कर रही है | यदि हम अपनें आस -पास के समाज से कटकर विदेशी समाज में रहनें लगते हैं तो एकाध पीढ़ी के बाद ही हमारी सन्तानें विदेशी संस्कृति को अपना लेती हैं | अमेरिका ,ब्रिटेन मध्य एशिया या अरब देशों में जन्म लेने वाली हमारी सन्तानें गाय और गंगा को माता माननें में हिचकिचानें लगी हैं | स्वीडन और फ्रांस की खुली नैतिकता आज हमारे उच्च वर्गीय समाज का गलहार बन गयी है | कुछ पाश्चात्य देशों में तो किशोर वय की लड़कियों में यह होड़ लगनें लग गयी है कि उसके कितनें प्रेमी हैं और उसके शरीर का वासनात्मक प्रभाव कितना गहरा है | यह तो कहिये अभी भारत का ग्राम्य और शहरों का एक काफी बड़ा समाज पुरानी नैतिकता का समर्थक है और इसी कारण बहुत से नर -नारी खुलकर व्यभिचार में संलिप्त नहीं हो पाते | जब केरल में एक 71 वर्ष का संसद सदस्य अपनी पोती की उमर की सिने कलाकार श्वेता मेनन के अंग टटोलता है तो उसे इसीलिये माफी मांगनीं पड़ती है क्योंकि समाज का एक बड़ा वर्ग इसे अनैतिक मानता है पर अमरीका में राष्ट्रपति के द्वारा अपनी पुत्री से भी कम उमर की नवयुवती से शारीरिक संम्बन्ध बनानें पर राष्ट्रपति को तो माफी मांगनी पड़ती है पर नव युवती को गर्व भरकर राष्ट्रीय गौरव के रूप में अपनें को प्रस्तुत करनें का हक़ मिल जाता है | अमेरिकन नवयुवती की यह मानसिकता उसके आस -पास के समाज से जन्मी है | जहाँ नारी का शरीर भी बाजार की कीमतों पर या सत्ता की ऊँचाइयों पर तौला जाता है | चोरी ,जालसाजी और मिथ्या विवाद इन सभी को सन्तुलित करनें में सामाजिक व्यवस्था का सबसे बड़ा योगदान होता है | पूर्ण विकसित मनुष्य ही अपनें अन्तर के सयंम से संचालित होता है पर गांधी और बुद्ध होना ,तुलसी या कबीर होना ,शेख चिस्ती या जायसी होना विरल मनुष्यों का ही काम है | आधुनिक नारी जगत में सीता और सावित्री केवल कहानियों का विषय रह गयी हैं | आचरण के धरातल पर उनकी कोई छाप अत्याधुनिक नारियों में नहीं पायी जाती | प्रत्येक नारी महिला बनकर ,महल में रहकर अखबारी पत्रों में छपनें के लिये आतुर हैं | मॉडल बनकर ,सज बजकर टेलीविजन में एक झलक देनें के लिये उसे अपनी अस्मिता को दांव पर लगा देनें से कोई एतराज नहीं है | भ्रष्ट आचरण और वित्तीय घोटालों में देश के नामी -ग्रामी आदमी संलिप्त दिखायी पड़ते हैं | चाहे कॉमन वेल्थ गेम्स हों ,चाहे टू जी स्पेक्ट्रम ,चाहे कोल आवंटन ,चाहे लौह खानों का निर्धारण सभी में दिग्गज हस्तियां ही उलझी पड़ी हैं |
कोई नहीं जानता कि कौन किसकी जासूसी कर रहा है | सीमा क्षेत्रों की सच्ची ख़बरें कभी भी प्रकाश में नहीं आतीं | हर देश दूसरे देश को आतंकी और लुटेरा कहता है | संसार की महानतम सामरिक शक्ति से लैस अमरीका भी अपनी आकाशीय आँखों से हर राष्ट्र के सत्ताधीशों की गुप्तगू देखता रहता है | आज के इस माहौल में पुरानी नैतिकता का क्या अर्थ रह जाता है | भारत के प्रधान मन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी जब सत्ता में थे तो उनके भाषणों के संग्रह और कवितायें बाजार में छायी रहती थीं | वे स्वयं कहते थे कि मैं खूब बिक रहा हूँ | स्पष्ट है कि उनका बिकना सत्ता का प्रतिफल था और उसके पीछे राजनीतिक शक्ति निहित थी | आज भारत का हर तुक्कड़ पद्मश्री से उठकर पद्म भूषण और पद्म विभूषण बनना चाहता है | सत्ता नसीन सरकारें झुनझुने बजाकर यह लाली पाप बाटती रहती हैं | अब हम मध्यकालीन नैतिकता की ओर तो मुड़ नहीं सकते पर अत्याधुनिक अनैतिकता को तो कहीं न कहीं परिमार्जन का टीका लगाना ही होगा | बनावटी इत्रों की काम भावना उकसानें वाली नशीली सुगन्धें नर -नारियों को फिर से पशुत्व के खुले सम्भोग की ओर मोड़ रही हैं | हमें 'माटी 'की सुगन्ध को फिर से अपनें जीवन यापन की सच्ची सहचारिणी के रूप में स्वीकार करना होगा | 'माटी 'कृत संकल्पित है कि वह अपनी उर्वरता का संचयन ,संवर्धन ,प्राकृतिक साधनों के बल पर करती हुयी सस्कृति के अमरत्व की शाश्वत परिभाषाओं को विकृत नहीं होनें देगी | चल सकेंगें आप हमारे साथ !
कोई नहीं जानता कि कौन किसकी जासूसी कर रहा है | सीमा क्षेत्रों की सच्ची ख़बरें कभी भी प्रकाश में नहीं आतीं | हर देश दूसरे देश को आतंकी और लुटेरा कहता है | संसार की महानतम सामरिक शक्ति से लैस अमरीका भी अपनी आकाशीय आँखों से हर राष्ट्र के सत्ताधीशों की गुप्तगू देखता रहता है | आज के इस माहौल में पुरानी नैतिकता का क्या अर्थ रह जाता है | भारत के प्रधान मन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी जब सत्ता में थे तो उनके भाषणों के संग्रह और कवितायें बाजार में छायी रहती थीं | वे स्वयं कहते थे कि मैं खूब बिक रहा हूँ | स्पष्ट है कि उनका बिकना सत्ता का प्रतिफल था और उसके पीछे राजनीतिक शक्ति निहित थी | आज भारत का हर तुक्कड़ पद्मश्री से उठकर पद्म भूषण और पद्म विभूषण बनना चाहता है | सत्ता नसीन सरकारें झुनझुने बजाकर यह लाली पाप बाटती रहती हैं | अब हम मध्यकालीन नैतिकता की ओर तो मुड़ नहीं सकते पर अत्याधुनिक अनैतिकता को तो कहीं न कहीं परिमार्जन का टीका लगाना ही होगा | बनावटी इत्रों की काम भावना उकसानें वाली नशीली सुगन्धें नर -नारियों को फिर से पशुत्व के खुले सम्भोग की ओर मोड़ रही हैं | हमें 'माटी 'की सुगन्ध को फिर से अपनें जीवन यापन की सच्ची सहचारिणी के रूप में स्वीकार करना होगा | 'माटी 'कृत संकल्पित है कि वह अपनी उर्वरता का संचयन ,संवर्धन ,प्राकृतिक साधनों के बल पर करती हुयी सस्कृति के अमरत्व की शाश्वत परिभाषाओं को विकृत नहीं होनें देगी | चल सकेंगें आप हमारे साथ !