गतांक से आगे -
आत्मज्ञानी कहते हैं अपनें को जानना ही सबसे बड़ा ज्ञान है | 'अहं ब्रम्हास्मि "में तो कुछ दंम्भ उमड़ता हुआ दिखायी पड़ता है पर ' know thy self 'में विनम्रता के साथ अन्तर निरीक्षण का भाव छिपा हुआ है | व्यक्ति कई बार स्वयं नहीं जान पाता है कि वह कोई काम क्यों कर रहा है | शायद मैं भी जब राजधानी क्षेत्र के उस कालेज में साक्षात्कार के लिये गया तो मैं अपनें अन्तरमन में छिपी उस अज्ञात प्रेरणा से परिचित नहीं था जो मुझे साक्षात्कार तक खींच कर ले गयी थी | आज मैं जानता हूँ कि शायद मैं जिस कालेज में था उसे छोड़ना नहीं चाहता था पर कहीं मेरे अन्तर मन में यह चाह छिपी थी कि मुझे औरों से बढ़कर एक विशेष पहचान मिले | यह चाह साक्षात्कार द्वारा नियुक्ति पत्र पाकर , रिजिगनेशन देकर और परिणाम स्वरूप मैनेजमेन्ट से मान्यता पाकर पूरी हुयी | मेरे सामान्य जीवन की यह एक लघु घटना है पर महानायक भी कई बार यह बात नहीं जानते कि उनके किसी महत कार्य के पीछे अन्तस चेतन में छिपी कौन सी मूल प्रेरणां काम कर रही है | मेरे एक साथी मनोविज्ञान की प्रोफ़ेसर डा ० प्रमिला पाल कई बार कह उठती थीं कि दशरथ पुत्र राम का लंका विजय का अभियान केवल सीता को अपनें पास लाने का ही अभियान नहीं था | उसमें कहीं एक प्रेरणां और काम कर रही थी | वह प्रेरणां थी जन समुदाय के समक्ष इस ठोस प्रमाण को प्रस्तुत करनें की कि उनके मन में राज्य के सिंहासन पर बैठनें की कोई इच्छा नहीं है | चित्रकूट में जावाल नें राम को राजी करने के लिये जो तर्क दिये थे वे तर्क जन सामान्य के समझ के अनुकूल ही थे | महापुरुष राम जानते थे कि सामान्य जन शायद अब भी यह सोचता हो कि श्री राम के भीतर हो सकता है सिंहासन पर बैठनें की कोई इच्छा दब -छिप कर बैठी हो | एक अत्यन्त वैभवशाली राज्य को विजित कर और उसे सम्पूर्ण तटस्थता के साथ अपनें मित्र को सौंप देना इस बात का सबसे ठोस प्रमाण था कि सत्ता सुख की लेश मात्र भावना भी मर्यादा पुरुषोत्तम के मन में नहीं है हाँ यदि समस्त मानव कल्याण के लिये सम्मिलित और सामूहिक जनभावना उन्हें कोई चुनौती भरा उत्तरदायित्व देती है तो उसको स्वीकार करना सच्चा पुरुषार्थ ही होगा | तो अध्ययन अध्यापन का कार्य साफ़ सुथरी पटरियों पर फिर से दौड़ पड़ा पर अब सबसे छोटे पुत्र को छोड़कर उनसे बड़े तीनों आत्म -अंश वयस्क हो गये थे | | बड़े राकेश की नाटकीय उपलब्धियां उसको घेर कर रहस्य भरी रोमांसों की श्रष्टि कर रही थीं पर इसी बीच पुत्री अपर्णां के संम्बन्ध में भी कुछ युवाओं से परिचय घनिष्ठता की बात सुननें में आयी | पुरुष होनें और पिता होनें का गौरव पा जानें के बाद मैं यह जानता हूँ कि यौवन के द्वार पर पहुँच जानें वाली आकर्षित युवतियां मनगढंत चर्चा का विषय बनाकर रोमान्टिक मनोविनोद की सृष्टि करती रहती हैं | कई बार मैनें न केवल पढ़ा है बल्कि अपनें अनुभव के दायरे में भी यह पाया है कि कि पुरुष हंसमुख मिलनसार और आधुनिक जीवन मूल्यों से सम्पन्न युवतियों के सहज मित्र व्यवहार को भी रोमान्टिक चश्में से देखनें लगते हैं | प्रकृति नें नारी के माध्यम से सृष्टि विस्तार की जो योजना बनायी थी उसको हजारों वर्षों की मानव सभ्यता नें न जानें कितनी चमकदार और समाजोपयोगी परतें चढ़ाकर नारी जीवन की सहजता को नाटकीय विम्बों से भरपूर कर दिया है | सन्तानोत्पत्ति के लिये मिलन का प्यार भले ही उसकी सबसे उद्दाम प्रकृति हो पर भाई के प्रति उसका प्यार भी कम तीब्र नहीं कहा जा सकता पर पति के परिवार में देवर या अन्य संम्बन्धी जैसे नन्दोई आदि इनसे भी उसे गहरे रागात्मक संम्बन्ध जोड़ने होते हैं | भारतीय संस्कृति में सहस्त्रों वर्षों की अपनी गौरव पूर्ण यात्रा में प्यार को विविध स्तरों पर जीनें की यह कला भारतीय नारी को भलीभांति सिखा दी है | कहा जा सकता है कि दूध के पहले घूँट के साथ ही भारत में जन्मी कन्या बड़ी होकर नारी के रूप में विभिन्न स्तरों पर मर्यादित ढंग से जीकर नारी जीवन को एक अतिरिक्त सार्थकता प्रदान करती है | पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध हमें कुछ देर के लिये छलावे की दुनिया में भले ही ले जाये पर सत्य यह है कि भारतीय जीवन पद्धति में ढला नारी आचरण ही मानव सभ्यता को एक टिकाऊ नींव दे सकता है | यही कारण है कि अंग्रेजी के दैनिक अखबारों में निरन्तर यह खबरें छपती रहती हैं ,कि विदेश में बसे हुये भारतीय मूल के नागरिक अपनें बच्चों को विदेशी संस्कृति के असामाजिक यौनाचारों से दूर रखना चाहते हैं | और यह तो सर्वविदित ही है कि बड़े बूढ़े अपनें बच्चों के लिये बहुओं की तलाश में भारत की गलियों की ख़ाक छानते रहते हैं | तो मेरे हठ के कारण अपर्णां को एम. ए. अंग्रेजी में एडमीशन लेनें को राजी होना पड़ा | उसनें अपनी माँ से कहा था कि पहले वह बी. एड. करना चाहेगी | और फिर किसी सामाजिक विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट होनें की बात सोचेगी | उसकी माँ को भी अंग्रेजी से कभी कोई लगाव नहीं रहा था | यह दूसरी बात है सुनते -सुनते वह बातचीत में वह अंग्रेजी के कुछ उल्टे -सीधे शब्द प्रयोग करने लगी थी | प्रारंम्भ में अपर्णां ने बताया कि शैक्सपियर के नाटकों की अंग्रेजी उसे समझ में नहीं आ रही है | और तो और उनके ड्रामा ओथैलो में Moor का उच्चारण कोई मूर करता है और कोई मुअर | मैनें उसे कभी यह नहीं बताया कि कौन सा उच्चारण ठीक है | बाद में उसनें स्वयं ही जान लिया कि सही उच्चारण कौन होना चाहिये | मेरे घर पर बड़े पुत्र राकेश के कुछ मित्र भी कई बार आ जाया करते थे | इसी मित्र मण्डली में एक युवक डा. प्रशान्त शुक्ला भी शामिल था | उसके पिता या कोई निकट सम्बन्धी हरियाणा राज्य के पलवल नगर के एक कालेज में अध्यापक थे | प्रशान्त नें बी. ए. एम. एस. किया था पर उसकी अभिरुचि साहित्य में भी थी और नाटकों में भी वह थोड़ी बहुत पैठ रखता था | उसनें शायद एकाध हरियाणवी फिल्म में कोई छोटा -मोटा रोल भी किया था | बी. ए.एम. एस. के कुछ और विद्यार्थी भी मेरे यहाँ आनें जानें लगे थे क्योंकि उन्हें पढानें वाले दो डाक्टर जो पति -पत्नी थे हमारे घर के सामनें एक अच्छा मकान किराये पर लेकर रह रहे थे | प्रशान्त शुक्ला की मित्र मण्डली में एक और पंजाबी नवयुवक शामिल हो गया था | जिसनें कुछ ही दिन पहले अपनी Internship पूरी करके बी. ए. एम. एस. की डिग्री ली थी | यह एक मेधावी और स्वरूपवान छात्र था पर संम्भवतः उचित Parental Supervision न पानें के कारण नर -नारी के प्यार के गहरे अर्थों से अपरिचित था |इस नवयुवक का नाम था रमेश अलवाधी | डा ० अलवाधी की एक चचेरी बहिन अपर्णां के साथ एम. ए. अंग्रेजी के प्रथम वर्ष में सहपाठिनी थी | वह भी कभी -कभी अपर्णां के साथ घर पर आ जाती थी | डा. प्रशान्त शुक्ला नें एक दिन मुझसे नवयुवक डा. रमेश अलवाधी की मदद करनें को कहा | मैनें पूछा कि उसे किस मदद की आवश्यकता है तो उसनें बताया कि वो आपके इस मुहल्ले के आसपास ही किसी अच्छी सिचवेशन में दो कमरे लेकर अपना क्लीनिक खोलना चाहता है | वह मेरा मित्र है और मैं जानता हूँ कि वह चरित्रवान लड़का है | यहीं मेन सड़क पर देवेन्द्र सिंह चौहान का मकान है उनके आगे के दोनों कमरों में पहले डा. अत्री अपना क्लीनिक चलाते थे पर उन्हें अब सरकारी नौकरी मिल गयी और वे दोनों कमरे खाली पड़े हैं | चौहान साहब कहते हैं कि वे कमरे तो किराये पर दे देंगें पर किसी प्रतिष्ठित आदमी से जो डा. यहां आयेगा उसके चरित्र की गारन्टी दिला दें मैनें चौहान जी से पूछा था वे कहते थे कि अवस्थी जी यदि कह दें तो मैं दोनों कमरे किराये पर दे दूंगा | बड़े मौके की जगह है साथ ही आप पास में हैं कोई जरूरत पड़ जाये तो रमेश अलवाधी सदैव आपकी सेवा को तत्पर रहेगा | रमेश और उसकी चचेरी बहन को मैनें बड़े बेटे और अपर्णां के साथ एकाध बार देखा था | मुझे लगा कि जिस नवयुवक नें अच्छे अंकों में बी. ए. एम. एस. पास किया है उसका आचरण तो ठीक होगा ही और मैनें चौहान साहब से कहकर वे कमरे डा. रमेश अलवाधी को दिलवा दिये | उसका काम चल निकला उसनें अपनें साथ एक सहायक भी जोड़ लिया | मुहल्ले भर में उसकी तारीफ़ होनें लगी | शहर के अन्य भागों से भी मरीज उसके पास इलाज के लिये आनें लगे | इधर रमेश की चचेरी बहन कामना और अपर्णां काफी घुलमिल गयीं | कामना शायद बड़े बेटे राकेश की नाटक मण्डली में सम्मिलित यूनिवर्सिटी की छात्राओं को भी जानती थी और उनसे मिलती -जुलती रहती थी | अपर्णां कई बार कामना के साथ रमेश की क्लीनिक में भी हो आती थी घर में यदि अपर्णा की माँ को कोई छोटी -मोटी तकलीफ हो जाती थी तो सूचना पाकर रमेश तुरन्त हाजिर हो जाता था और उपचार में लग जाता था और इसप्रकार वह धीरे -धीरे घर का ही सदस्य माना जानें लगा | राकेश से छोटे मेरे पुत्र नें ग्रेजुएशन के बाद ला करनें का मन लिया था और वह अब एल. एल. बी. के दूसरे वर्ष में था | वह वेट लिफ्टिंग और बॉक्सिंग में कई इनाम हासिल कर चुका था | मैनें सोचा कि ला करने के बाद वह Judiciryमें जानें की बात सोचेगा | पर जिन मित्रों में वह रहता था वे सब भारतीय सेना में कमीशन के इच्छुक थे | इसलिये धीरे -धीरे उसनें भी शार्ट सर्विस कमीशन में जानें का मन बना लिया था | मैनें उससे यह कह रखा था कि एल. एल. बी.का कोर्स पूरा होनें के बाद ही कमीशन की लिखित परीक्षा दे | मैं सोचता था कि ला ग्रेजुएट होनें के बाद आगे बढ़ने के कुछ और रास्ते भी खुल सकते हैं | रमेश मनीषा के इस बाक्सर भाई की बड़ी तारीफ़ करता था और कहता था कि उसके आगे बढनें की बहुत संम्भावनायें है | लगभग एक वर्ष पूरा होनें को आ गया | मनीषा नें इम्तहान दे दिया पर उसनें बताया कि उसका एक पेपर अच्छा नहीं हुआ है पर क्या पता उसमें री एपियर आ जाये | शायद मई या जून में यह इम्तहान समाप्त हुये होंगें | इम्तहान समाप्त होनें के दिन रमेश की बहन कल्पना भी अपर्णां के साथ घर पर आयी | वह काफी देर घर पर रही और शाम को दोनों शापिंग के लिये बाजार में निकल गयी हों , हो सकता है वहां उन्होंने जीभ स्वाद के लिये कडुआ -मीठा खाया पिया हो क्योंकि उसी रात को अपर्णां को ज्वर हो आया |
(क्रमशः )
आत्मज्ञानी कहते हैं अपनें को जानना ही सबसे बड़ा ज्ञान है | 'अहं ब्रम्हास्मि "में तो कुछ दंम्भ उमड़ता हुआ दिखायी पड़ता है पर ' know thy self 'में विनम्रता के साथ अन्तर निरीक्षण का भाव छिपा हुआ है | व्यक्ति कई बार स्वयं नहीं जान पाता है कि वह कोई काम क्यों कर रहा है | शायद मैं भी जब राजधानी क्षेत्र के उस कालेज में साक्षात्कार के लिये गया तो मैं अपनें अन्तरमन में छिपी उस अज्ञात प्रेरणा से परिचित नहीं था जो मुझे साक्षात्कार तक खींच कर ले गयी थी | आज मैं जानता हूँ कि शायद मैं जिस कालेज में था उसे छोड़ना नहीं चाहता था पर कहीं मेरे अन्तर मन में यह चाह छिपी थी कि मुझे औरों से बढ़कर एक विशेष पहचान मिले | यह चाह साक्षात्कार द्वारा नियुक्ति पत्र पाकर , रिजिगनेशन देकर और परिणाम स्वरूप मैनेजमेन्ट से मान्यता पाकर पूरी हुयी | मेरे सामान्य जीवन की यह एक लघु घटना है पर महानायक भी कई बार यह बात नहीं जानते कि उनके किसी महत कार्य के पीछे अन्तस चेतन में छिपी कौन सी मूल प्रेरणां काम कर रही है | मेरे एक साथी मनोविज्ञान की प्रोफ़ेसर डा ० प्रमिला पाल कई बार कह उठती थीं कि दशरथ पुत्र राम का लंका विजय का अभियान केवल सीता को अपनें पास लाने का ही अभियान नहीं था | उसमें कहीं एक प्रेरणां और काम कर रही थी | वह प्रेरणां थी जन समुदाय के समक्ष इस ठोस प्रमाण को प्रस्तुत करनें की कि उनके मन में राज्य के सिंहासन पर बैठनें की कोई इच्छा नहीं है | चित्रकूट में जावाल नें राम को राजी करने के लिये जो तर्क दिये थे वे तर्क जन सामान्य के समझ के अनुकूल ही थे | महापुरुष राम जानते थे कि सामान्य जन शायद अब भी यह सोचता हो कि श्री राम के भीतर हो सकता है सिंहासन पर बैठनें की कोई इच्छा दब -छिप कर बैठी हो | एक अत्यन्त वैभवशाली राज्य को विजित कर और उसे सम्पूर्ण तटस्थता के साथ अपनें मित्र को सौंप देना इस बात का सबसे ठोस प्रमाण था कि सत्ता सुख की लेश मात्र भावना भी मर्यादा पुरुषोत्तम के मन में नहीं है हाँ यदि समस्त मानव कल्याण के लिये सम्मिलित और सामूहिक जनभावना उन्हें कोई चुनौती भरा उत्तरदायित्व देती है तो उसको स्वीकार करना सच्चा पुरुषार्थ ही होगा | तो अध्ययन अध्यापन का कार्य साफ़ सुथरी पटरियों पर फिर से दौड़ पड़ा पर अब सबसे छोटे पुत्र को छोड़कर उनसे बड़े तीनों आत्म -अंश वयस्क हो गये थे | | बड़े राकेश की नाटकीय उपलब्धियां उसको घेर कर रहस्य भरी रोमांसों की श्रष्टि कर रही थीं पर इसी बीच पुत्री अपर्णां के संम्बन्ध में भी कुछ युवाओं से परिचय घनिष्ठता की बात सुननें में आयी | पुरुष होनें और पिता होनें का गौरव पा जानें के बाद मैं यह जानता हूँ कि यौवन के द्वार पर पहुँच जानें वाली आकर्षित युवतियां मनगढंत चर्चा का विषय बनाकर रोमान्टिक मनोविनोद की सृष्टि करती रहती हैं | कई बार मैनें न केवल पढ़ा है बल्कि अपनें अनुभव के दायरे में भी यह पाया है कि कि पुरुष हंसमुख मिलनसार और आधुनिक जीवन मूल्यों से सम्पन्न युवतियों के सहज मित्र व्यवहार को भी रोमान्टिक चश्में से देखनें लगते हैं | प्रकृति नें नारी के माध्यम से सृष्टि विस्तार की जो योजना बनायी थी उसको हजारों वर्षों की मानव सभ्यता नें न जानें कितनी चमकदार और समाजोपयोगी परतें चढ़ाकर नारी जीवन की सहजता को नाटकीय विम्बों से भरपूर कर दिया है | सन्तानोत्पत्ति के लिये मिलन का प्यार भले ही उसकी सबसे उद्दाम प्रकृति हो पर भाई के प्रति उसका प्यार भी कम तीब्र नहीं कहा जा सकता पर पति के परिवार में देवर या अन्य संम्बन्धी जैसे नन्दोई आदि इनसे भी उसे गहरे रागात्मक संम्बन्ध जोड़ने होते हैं | भारतीय संस्कृति में सहस्त्रों वर्षों की अपनी गौरव पूर्ण यात्रा में प्यार को विविध स्तरों पर जीनें की यह कला भारतीय नारी को भलीभांति सिखा दी है | कहा जा सकता है कि दूध के पहले घूँट के साथ ही भारत में जन्मी कन्या बड़ी होकर नारी के रूप में विभिन्न स्तरों पर मर्यादित ढंग से जीकर नारी जीवन को एक अतिरिक्त सार्थकता प्रदान करती है | पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध हमें कुछ देर के लिये छलावे की दुनिया में भले ही ले जाये पर सत्य यह है कि भारतीय जीवन पद्धति में ढला नारी आचरण ही मानव सभ्यता को एक टिकाऊ नींव दे सकता है | यही कारण है कि अंग्रेजी के दैनिक अखबारों में निरन्तर यह खबरें छपती रहती हैं ,कि विदेश में बसे हुये भारतीय मूल के नागरिक अपनें बच्चों को विदेशी संस्कृति के असामाजिक यौनाचारों से दूर रखना चाहते हैं | और यह तो सर्वविदित ही है कि बड़े बूढ़े अपनें बच्चों के लिये बहुओं की तलाश में भारत की गलियों की ख़ाक छानते रहते हैं | तो मेरे हठ के कारण अपर्णां को एम. ए. अंग्रेजी में एडमीशन लेनें को राजी होना पड़ा | उसनें अपनी माँ से कहा था कि पहले वह बी. एड. करना चाहेगी | और फिर किसी सामाजिक विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट होनें की बात सोचेगी | उसकी माँ को भी अंग्रेजी से कभी कोई लगाव नहीं रहा था | यह दूसरी बात है सुनते -सुनते वह बातचीत में वह अंग्रेजी के कुछ उल्टे -सीधे शब्द प्रयोग करने लगी थी | प्रारंम्भ में अपर्णां ने बताया कि शैक्सपियर के नाटकों की अंग्रेजी उसे समझ में नहीं आ रही है | और तो और उनके ड्रामा ओथैलो में Moor का उच्चारण कोई मूर करता है और कोई मुअर | मैनें उसे कभी यह नहीं बताया कि कौन सा उच्चारण ठीक है | बाद में उसनें स्वयं ही जान लिया कि सही उच्चारण कौन होना चाहिये | मेरे घर पर बड़े पुत्र राकेश के कुछ मित्र भी कई बार आ जाया करते थे | इसी मित्र मण्डली में एक युवक डा. प्रशान्त शुक्ला भी शामिल था | उसके पिता या कोई निकट सम्बन्धी हरियाणा राज्य के पलवल नगर के एक कालेज में अध्यापक थे | प्रशान्त नें बी. ए. एम. एस. किया था पर उसकी अभिरुचि साहित्य में भी थी और नाटकों में भी वह थोड़ी बहुत पैठ रखता था | उसनें शायद एकाध हरियाणवी फिल्म में कोई छोटा -मोटा रोल भी किया था | बी. ए.एम. एस. के कुछ और विद्यार्थी भी मेरे यहाँ आनें जानें लगे थे क्योंकि उन्हें पढानें वाले दो डाक्टर जो पति -पत्नी थे हमारे घर के सामनें एक अच्छा मकान किराये पर लेकर रह रहे थे | प्रशान्त शुक्ला की मित्र मण्डली में एक और पंजाबी नवयुवक शामिल हो गया था | जिसनें कुछ ही दिन पहले अपनी Internship पूरी करके बी. ए. एम. एस. की डिग्री ली थी | यह एक मेधावी और स्वरूपवान छात्र था पर संम्भवतः उचित Parental Supervision न पानें के कारण नर -नारी के प्यार के गहरे अर्थों से अपरिचित था |इस नवयुवक का नाम था रमेश अलवाधी | डा ० अलवाधी की एक चचेरी बहिन अपर्णां के साथ एम. ए. अंग्रेजी के प्रथम वर्ष में सहपाठिनी थी | वह भी कभी -कभी अपर्णां के साथ घर पर आ जाती थी | डा. प्रशान्त शुक्ला नें एक दिन मुझसे नवयुवक डा. रमेश अलवाधी की मदद करनें को कहा | मैनें पूछा कि उसे किस मदद की आवश्यकता है तो उसनें बताया कि वो आपके इस मुहल्ले के आसपास ही किसी अच्छी सिचवेशन में दो कमरे लेकर अपना क्लीनिक खोलना चाहता है | वह मेरा मित्र है और मैं जानता हूँ कि वह चरित्रवान लड़का है | यहीं मेन सड़क पर देवेन्द्र सिंह चौहान का मकान है उनके आगे के दोनों कमरों में पहले डा. अत्री अपना क्लीनिक चलाते थे पर उन्हें अब सरकारी नौकरी मिल गयी और वे दोनों कमरे खाली पड़े हैं | चौहान साहब कहते हैं कि वे कमरे तो किराये पर दे देंगें पर किसी प्रतिष्ठित आदमी से जो डा. यहां आयेगा उसके चरित्र की गारन्टी दिला दें मैनें चौहान जी से पूछा था वे कहते थे कि अवस्थी जी यदि कह दें तो मैं दोनों कमरे किराये पर दे दूंगा | बड़े मौके की जगह है साथ ही आप पास में हैं कोई जरूरत पड़ जाये तो रमेश अलवाधी सदैव आपकी सेवा को तत्पर रहेगा | रमेश और उसकी चचेरी बहन को मैनें बड़े बेटे और अपर्णां के साथ एकाध बार देखा था | मुझे लगा कि जिस नवयुवक नें अच्छे अंकों में बी. ए. एम. एस. पास किया है उसका आचरण तो ठीक होगा ही और मैनें चौहान साहब से कहकर वे कमरे डा. रमेश अलवाधी को दिलवा दिये | उसका काम चल निकला उसनें अपनें साथ एक सहायक भी जोड़ लिया | मुहल्ले भर में उसकी तारीफ़ होनें लगी | शहर के अन्य भागों से भी मरीज उसके पास इलाज के लिये आनें लगे | इधर रमेश की चचेरी बहन कामना और अपर्णां काफी घुलमिल गयीं | कामना शायद बड़े बेटे राकेश की नाटक मण्डली में सम्मिलित यूनिवर्सिटी की छात्राओं को भी जानती थी और उनसे मिलती -जुलती रहती थी | अपर्णां कई बार कामना के साथ रमेश की क्लीनिक में भी हो आती थी घर में यदि अपर्णा की माँ को कोई छोटी -मोटी तकलीफ हो जाती थी तो सूचना पाकर रमेश तुरन्त हाजिर हो जाता था और उपचार में लग जाता था और इसप्रकार वह धीरे -धीरे घर का ही सदस्य माना जानें लगा | राकेश से छोटे मेरे पुत्र नें ग्रेजुएशन के बाद ला करनें का मन लिया था और वह अब एल. एल. बी. के दूसरे वर्ष में था | वह वेट लिफ्टिंग और बॉक्सिंग में कई इनाम हासिल कर चुका था | मैनें सोचा कि ला करने के बाद वह Judiciryमें जानें की बात सोचेगा | पर जिन मित्रों में वह रहता था वे सब भारतीय सेना में कमीशन के इच्छुक थे | इसलिये धीरे -धीरे उसनें भी शार्ट सर्विस कमीशन में जानें का मन बना लिया था | मैनें उससे यह कह रखा था कि एल. एल. बी.का कोर्स पूरा होनें के बाद ही कमीशन की लिखित परीक्षा दे | मैं सोचता था कि ला ग्रेजुएट होनें के बाद आगे बढ़ने के कुछ और रास्ते भी खुल सकते हैं | रमेश मनीषा के इस बाक्सर भाई की बड़ी तारीफ़ करता था और कहता था कि उसके आगे बढनें की बहुत संम्भावनायें है | लगभग एक वर्ष पूरा होनें को आ गया | मनीषा नें इम्तहान दे दिया पर उसनें बताया कि उसका एक पेपर अच्छा नहीं हुआ है पर क्या पता उसमें री एपियर आ जाये | शायद मई या जून में यह इम्तहान समाप्त हुये होंगें | इम्तहान समाप्त होनें के दिन रमेश की बहन कल्पना भी अपर्णां के साथ घर पर आयी | वह काफी देर घर पर रही और शाम को दोनों शापिंग के लिये बाजार में निकल गयी हों , हो सकता है वहां उन्होंने जीभ स्वाद के लिये कडुआ -मीठा खाया पिया हो क्योंकि उसी रात को अपर्णां को ज्वर हो आया |
(क्रमशः )