...................... पर जैसा कि मैं पहले लिख चुका हूँ क्या आप अपने 16 वर्ष के पुत्र को गाड़ी या स्कूटर ड्राइव करने से मना कर आयेंगें । 18 का न होने के कारण उसके पास पक्का ड्राइविंग लाइसेन्स नहीं है पर फिर भी वह मनमानी ड्राइविंग करना चाहता है । अब यदि वह ट्रैफिक पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है तो क्या आप उसे नोट देकर अपने को छुड़ा लेने की मानसिकता से मुक्त कर सकेंगें । इसी प्रकार दफ्तर भूमि सौदे या कचहरी के कामों में आपको कुछ समय तो देना ही होगा और कुछ तकलीफ तो उठानी ही होगी । क्या आप अपने समय और अपनी तकलीफ बचाने के लिये नोट देकर बचने की आदत छोड़ सकेंगें अब यदि आपका पुत्र या सम्बन्धी परिक्षा के लिये पूरी तैय्यारी नहीं करता तो क्या आप उसे नक़ल करवाने के लिये निरीक्षकों तक सिफारिश पहुँचाने का प्रलोभन रोक सकेंगें ।
इसी प्रकार आप जाति के झूठे प्रमाण- पत्र ,प्राप्तांकों की झूठी प्रतियाँ ,जन्म तिथियों की दोहरी प्रविष्टियाँ ,या हेराफेरी के द्वारा रिश्वत देकर अपने नजदीकियों को शिक्षा संस्थान में प्रवेश करने की प्रवृत्तियों आदि पर संयंम का अंकुश लगा सकेंगें । भ्रष्टाचार का मूल आधार तो जीवन के इन छोटे -मोटे किन्तु अनिवार्य उपादानों से ही बनता है । आज भी क्या चोरी रोकने के लिये पुलिस के पास क़ानून नहीं हैं ? आज भी क्या चेन छीनने ,बलात्कार करने ,और नारी अपमान रोकने के लिये कानून नहीं है ?आज भी क्या विदेशों के लिये जासूसी करने या ठेका देने के लिये रिश्वत देने या लेने के खिलाफ कोई क़ानून नहींहै । सारे कानूनों के बावजूद जब हमारी नियत में ही भ्रष्टाचार छुपा हुआ है तो उसे उखाड़ फेंकने के लिये कानूनों के साथ कुछ पवित्र परिशोधन भी करने होंगें । लाल -लाल जीभ पसारता हुआ लालच का भीषणाकार दानव एक -एक कर सबको लीलता जा रहा है इसको नियन्त्रित करने के लिये और वापस अमरीका या योरोप भेजने के लिये मूल्यों के नये वायुयान ढालने ही होंगें । और इन वायुयानों को तकनीकी विशारद ही ढाल सकते हैं हाँ इन्हें "माटी "जैसी पत्रिकाओं के सामान्य पाठक यदि प्रयास करें तो ढालने की क्षमता पा सकते हैं ।
तो बात चल रही थी भारत के संविधान की । सँविधान निर्माताओं ने जब शासन व्यवस्था के तीन अंगों क़ानून ,निर्माण ,प्रशासन और न्याय निर्माण की योजना बनायी तो उन्होंने न्याय पालिका को प्रशासन के दबाव से सर्वथा मुक्त रखा। क़ानून निर्मात्री सभायें क़ानून बनायेंगीं ,कार्यपालिका यानि प्रधान मन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रियों का दल उन कानूनों को प्रशासनिक तन्त्र द्वारा लागू करवायेगा पर यह क़ानून संविधान की धारणा के विपरीत तो नहीं जाते इस बात का निष्पक्ष फैसला न्याय पालिका ही करेगी । अतः न्याय पालिका को सर्वथा स्वतन्त्र होना चाहिये और स्वतन्त्र भारत में वह सर्वथा स्वतन्त्र रही भी है । कुछ न्यायाधीशों के नाम इस बात के लिये सदैव याद किये जायेंगें कि उन्होंने शासन व्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त और पक्ष मुक्त बनाने के लिये अत्यन्त सशक्त और चुटीले फैसले समाज को दिये हैं । पर एक एडवोकेट होने के नाते आज यह बात मैं पूरे विश्वास के साथ कह पा रहा हूँ कि प्रारम्भिक स्तर पर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का बड़ी मात्रा में प्रवेश हो चुका है । सब मिलाकर अब भी न्याय पालिका में भारत के सामान्य जन का विश्वास डटा हुआ है पर यह विश्वास यदि जो चल रहा है वही चलता रहा तो टूटने की कगार पर जा पहुँचेगा । आप शायद जानते ही हैं कि Judiciary के Appointment जुडीशियरी के द्वारा ही किये जाते हैं इस व्यवस्था को बदलकर एक राष्ट्रीय जुडीशियल कमीशन बनाना होगा जो हाई कोर्ट और उसके ऊपर के जजों का निष्पच्क्ष चयन कर सके । कभी एक अखबार में यह खबर पढ़ने में आयी थी कि लगभग 305 जज सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हैं यानि उनके कन्डक्ट की जाँच की जा रही है । 38 जजों पर जुर्माना लगाया गया है । 17 जजों को सेवा मुक्त कर दिया गया है और 77 जजों को समय से पहले ही रिटायर कर दिया गया है । कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ राज्य सभा में महा अभियोग का प्रस्ताव पास ही हो चुका था ।और अब यदि लोकसभा भी उपस्थित सदस्यों के दो तिहायी बहुमत से इसे पास कर देती है तो इतिहास का एक नया अध्याय लिखा जायेगा दो उच्च स्तरीय जज पी ० डी ० दिनकरन ,और निर्मल यादव भी सन्देह के कटघरे में खड़े थे । और सौमित्र सेन ने तो भारत के पूर्व उच्च्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बी ० जी ० बालकृष्णन की ओर भी उँगली उठा दी थी औरों को छोड़िये आज स्वयं उच्च्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस ० एच ० कपाड़िया यह कह रहे थे कि एक जज के लिये संवैधानिक नैतिकता ही काफी नहीं है उसे सभ्य मानव के उच्च्तम आचरण नैतिकता के तराजू पर खरा उतरना होगा । । (For a judge ,ethic, not only constitutional morality,but ethical morality ,should be the base ."
सर्व सम्मति लोकपाल बिल में जुडीशियरी शामिल होगी या नहीं यह अभी तक माटी नहें जानती है । पर हम यह अवश्य चाहते है कि जजों के चुनाव के लिये एक इन्डिपेन्डेन्ट कमीशन का प्राविधान प्रारम्भ किया जाय ।
इसी प्रकार संसद के भीतर चुने हुये संसद सदस्यों द्वारा जो धींगा -मुस्ती ,गाली -गलौज ,और नोट के बण्डलों का प्रदर्शन होता है वह भी भारतीय जनतन्त्र के लिये शर्म की बात है । करोड़पति या अरबपति होना यदि वह सम्पत्ति वैध मार्गों से अर्जित है कोई अपराध नहीं है पर पैसे के बल पर सत्ता में बने रहने के लिये संसद सदस्यों की खरीद -फरोख्त निश्चय ही अनैतिक है और अपराधी मनोवृत्ति से जन्मती है इस पर तो रोक लगानी ही होगी । यह कितना हास्यास्पद है कि पार्लियामेन्ट की अलमारियों में नोटों की ढेरियाँ बन्द हों पर संसद की बनायी हुयी कमेटी यह नहीं जान पायी थी कि नोट कहाँ से आये थे । (क्रमशः )
इसी प्रकार आप जाति के झूठे प्रमाण- पत्र ,प्राप्तांकों की झूठी प्रतियाँ ,जन्म तिथियों की दोहरी प्रविष्टियाँ ,या हेराफेरी के द्वारा रिश्वत देकर अपने नजदीकियों को शिक्षा संस्थान में प्रवेश करने की प्रवृत्तियों आदि पर संयंम का अंकुश लगा सकेंगें । भ्रष्टाचार का मूल आधार तो जीवन के इन छोटे -मोटे किन्तु अनिवार्य उपादानों से ही बनता है । आज भी क्या चोरी रोकने के लिये पुलिस के पास क़ानून नहीं हैं ? आज भी क्या चेन छीनने ,बलात्कार करने ,और नारी अपमान रोकने के लिये कानून नहीं है ?आज भी क्या विदेशों के लिये जासूसी करने या ठेका देने के लिये रिश्वत देने या लेने के खिलाफ कोई क़ानून नहींहै । सारे कानूनों के बावजूद जब हमारी नियत में ही भ्रष्टाचार छुपा हुआ है तो उसे उखाड़ फेंकने के लिये कानूनों के साथ कुछ पवित्र परिशोधन भी करने होंगें । लाल -लाल जीभ पसारता हुआ लालच का भीषणाकार दानव एक -एक कर सबको लीलता जा रहा है इसको नियन्त्रित करने के लिये और वापस अमरीका या योरोप भेजने के लिये मूल्यों के नये वायुयान ढालने ही होंगें । और इन वायुयानों को तकनीकी विशारद ही ढाल सकते हैं हाँ इन्हें "माटी "जैसी पत्रिकाओं के सामान्य पाठक यदि प्रयास करें तो ढालने की क्षमता पा सकते हैं ।
तो बात चल रही थी भारत के संविधान की । सँविधान निर्माताओं ने जब शासन व्यवस्था के तीन अंगों क़ानून ,निर्माण ,प्रशासन और न्याय निर्माण की योजना बनायी तो उन्होंने न्याय पालिका को प्रशासन के दबाव से सर्वथा मुक्त रखा। क़ानून निर्मात्री सभायें क़ानून बनायेंगीं ,कार्यपालिका यानि प्रधान मन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रियों का दल उन कानूनों को प्रशासनिक तन्त्र द्वारा लागू करवायेगा पर यह क़ानून संविधान की धारणा के विपरीत तो नहीं जाते इस बात का निष्पक्ष फैसला न्याय पालिका ही करेगी । अतः न्याय पालिका को सर्वथा स्वतन्त्र होना चाहिये और स्वतन्त्र भारत में वह सर्वथा स्वतन्त्र रही भी है । कुछ न्यायाधीशों के नाम इस बात के लिये सदैव याद किये जायेंगें कि उन्होंने शासन व्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त और पक्ष मुक्त बनाने के लिये अत्यन्त सशक्त और चुटीले फैसले समाज को दिये हैं । पर एक एडवोकेट होने के नाते आज यह बात मैं पूरे विश्वास के साथ कह पा रहा हूँ कि प्रारम्भिक स्तर पर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का बड़ी मात्रा में प्रवेश हो चुका है । सब मिलाकर अब भी न्याय पालिका में भारत के सामान्य जन का विश्वास डटा हुआ है पर यह विश्वास यदि जो चल रहा है वही चलता रहा तो टूटने की कगार पर जा पहुँचेगा । आप शायद जानते ही हैं कि Judiciary के Appointment जुडीशियरी के द्वारा ही किये जाते हैं इस व्यवस्था को बदलकर एक राष्ट्रीय जुडीशियल कमीशन बनाना होगा जो हाई कोर्ट और उसके ऊपर के जजों का निष्पच्क्ष चयन कर सके । कभी एक अखबार में यह खबर पढ़ने में आयी थी कि लगभग 305 जज सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हैं यानि उनके कन्डक्ट की जाँच की जा रही है । 38 जजों पर जुर्माना लगाया गया है । 17 जजों को सेवा मुक्त कर दिया गया है और 77 जजों को समय से पहले ही रिटायर कर दिया गया है । कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ राज्य सभा में महा अभियोग का प्रस्ताव पास ही हो चुका था ।और अब यदि लोकसभा भी उपस्थित सदस्यों के दो तिहायी बहुमत से इसे पास कर देती है तो इतिहास का एक नया अध्याय लिखा जायेगा दो उच्च स्तरीय जज पी ० डी ० दिनकरन ,और निर्मल यादव भी सन्देह के कटघरे में खड़े थे । और सौमित्र सेन ने तो भारत के पूर्व उच्च्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बी ० जी ० बालकृष्णन की ओर भी उँगली उठा दी थी औरों को छोड़िये आज स्वयं उच्च्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस ० एच ० कपाड़िया यह कह रहे थे कि एक जज के लिये संवैधानिक नैतिकता ही काफी नहीं है उसे सभ्य मानव के उच्च्तम आचरण नैतिकता के तराजू पर खरा उतरना होगा । । (For a judge ,ethic, not only constitutional morality,but ethical morality ,should be the base ."
सर्व सम्मति लोकपाल बिल में जुडीशियरी शामिल होगी या नहीं यह अभी तक माटी नहें जानती है । पर हम यह अवश्य चाहते है कि जजों के चुनाव के लिये एक इन्डिपेन्डेन्ट कमीशन का प्राविधान प्रारम्भ किया जाय ।
इसी प्रकार संसद के भीतर चुने हुये संसद सदस्यों द्वारा जो धींगा -मुस्ती ,गाली -गलौज ,और नोट के बण्डलों का प्रदर्शन होता है वह भी भारतीय जनतन्त्र के लिये शर्म की बात है । करोड़पति या अरबपति होना यदि वह सम्पत्ति वैध मार्गों से अर्जित है कोई अपराध नहीं है पर पैसे के बल पर सत्ता में बने रहने के लिये संसद सदस्यों की खरीद -फरोख्त निश्चय ही अनैतिक है और अपराधी मनोवृत्ति से जन्मती है इस पर तो रोक लगानी ही होगी । यह कितना हास्यास्पद है कि पार्लियामेन्ट की अलमारियों में नोटों की ढेरियाँ बन्द हों पर संसद की बनायी हुयी कमेटी यह नहीं जान पायी थी कि नोट कहाँ से आये थे । (क्रमशः )