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                                    एंजल्स ने कहा है कि श्रष्टि में कहीं कुछ ऐसा नहीं होता जो सुनियोजित न हो और जिसका कोई अन्तिम लक्ष्य निर्धारित न हो पर सामान्य मनुष्य के जीवन में बहुत बार ऐसा होता है जब किसी घटना के पीछे न तो कोई योजना जान पड़ती है और न ही उस घटना के अन्तिम परिणाम को पूर्व निर्धारित माना जा सकता है । बुद्धि परक सारी व्याख्यायें घटना के आस -पास चक्कर लगाकर चुप होकर बैठ जाती हैं  और रहस्य का एक अभेद्य पर्दा उस घटना को अपने में ढँकें रहता है । भारतवर्ष के योगियों ,सिद्धियों और तान्त्रिकों का इतिहास तो चमत्कारों के आस पास ही घूमता रहता है । हाँ सनातन धर्मी साधू और महात्मा कई बार चमत्कारों से दूर हटकर परमतत्व की उपलब्धि पर जोर देते दिखायी देते हैं । मेरे मित्र नन्दकिशोर पाण्डेय एक गंभ्भीर प्रकृति के विद्वान हैं और एक प्रतिष्ठित माध्यमिक विद्यालय में भौतिकी के प्रवक्ता हैं । मानव जीवन में सभी कुछ पूर्व निर्धारित नियति के आधार पर घटित होता है । ऐसी मान्यता भारत की एक दार्शनिक विचारधारा में व्यापक रूप से स्वीकार की गयी है । भौतिकी के व्याख्याता होने के नाते वे इस विश्वास को कई प्रश्नचिंन्हों के साथ लगाकर तौलते थे । विश्वास और अविश्वास के बीच में वे उस दुविधावादी मनस्थिति में रहते थे जो प्रायः  सभी उच्च वर्गीय आस्तिक घरों की धरोहर है । बातों ही बातों में एक दिन वे कह बैठे कि उच्च आचारी सन्त पुरुष अपनी मृत्यु को और उसके निर्धारित  समय को पहले से ही जान जाता है । यही नहीं उसे मृत्यु ,बीमारी ,दुर्घटना या किसी प्रकृति जन्य आपदा के कारण उन पर आयेगी इस बात का भी उन्हें पहले से ही पता चल जाता है । स्वाभाविक है कि उनके कुछ साथी जिनमें मैं भी एक  था उनकी इस मान्यता को स्वीकार करने में हिचकिचा रहे थे । अपनी बात की पुष्टि करने के लिये उन्होंने जिस घटना का वर्णन किया उसे हम नीचे शब्द बद्ध कर रहे हैं ।
                              भौतिकी का व्याख्याता उस घटना के रहस्य को सुलझा नहीं पाया था । हमारे पाठकों में से  कोई यदि तर्कसंगत समाधान देना चाहे तो हम उसे माटी में प्रकाशित करने के लिये तैयार रहेंगें । नन्द किशोर जी का सबसे पहला एप्वाइन्टमेंट फर्रुखाबाद और कासगंज के बीच में स्थित पटियाली के इण्टर कालेज में हुआ था । हमारे प्रबुद्ध पाठक जानते ही हैं कि पटियाली प्रसिद्ध फारसी विद्वान और हिन्दी कवि अमीर खुसरो का जन्म स्थान है । हिन्दी के प्रारम्भिक काल में इतनी सरल और मनोरंजक पहेलियाँ लिखने वाला कोई दूसरा कवि या विद्वान हमें कहीं दिखायी नहीं पड़ता । अमीर खुसरो की पहेली की एक बानगी देखिये ।
                       "एक थाल मोती से भरा
                        सबके सिर पर औंधा धरा
                        थाल वह चारो ओर फिरे
                        मोती उससे एक न गिरे ।"
                                                                  पहेली का हल  तो आप सब जानते ही हैं । दरअसल पटियाली कस्बे की महत्ता को उजागर करने के लिये अमीर खुसरो को इस प्रसंग से जोड़ दिया गया है अन्यथा वर्णित घटना से उनका और कोई सम्बन्ध नहीं है ।  पाण्डेय जी कस्बे में किराये के लिये कमरे की तलाश कर रहे थे । प्राचार्य लीलाधर ने उन्हें कस्बे के उत्तरी कोने पर रहने वाले जोगी बाबा से सम्पर्क करने को कहा और बताया कि जोगी बाबा के पास एक 30 x20 का एक पक्का कमरा है । उसमें कई लेक्चरर यदि वे शादीशुदा नहीं हैं रह सकते हैं । खाने के लिये इण्टर कालेज के पास एक होटल की व्यवस्था थी ही, दूध और चाय के लिये स्टोब का इन्तजाम किया जा सकता था । ये बातें उन दिनों की हैं जब भारतवर्ष में गैस का प्रवेश नहीं हुआ था और चूल्हे ,अँगीठी से ऊपर उठकर स्टोब तक की ऊँचाई छुई जा सकी थी । आज के सन्दर्भ में गैस के चूल्हे के बिना रिहाइश की कल्पना भी नहीं की जा सकती है पर मुझे ख्याल है कि सन् 85 के आस पास जब गैस का चूल्हा चला तो न जाने कितने मध्यम घरों की हिन्दुस्तानी नारियाँ सिलिण्डर फट जाने के डर से गैस बुक नहीं कराती थीं । कुछ वर्षों  के बाद गैस का होना भी मध्य वर्ग के लिये एक स्टेटस सिम्बल बन गया । खैर तो नन्दकिशोर जी ने जोगी बाबा जी से सम्पर्क किया और रसायन शास्त्र के प्रवक्ता नरेन्द्र पाल तथा जैवकीय के प्रवक्ता अरविन्द शुक्ल के साथ जोगी बाबा के कमरे में डट गये । तीनों ही तरुण थे ,अविवाहित थे और  अपने अध्यापन कैरियर के शुरुआती दौर से गुजर रहे थे । जोगी बाबा का पुराना मकान कमरे से सटा हुआ था । जिसमें उनके दो पुत्र अपनी पत्नियों के साथ और लगभग आधा दर्जन सन्तानों के साथ रह रहे थे । जोगी बाबा के पास काफी जमीन थी और उनके दोनो पुत्र सम्पन्न जमींदारों में माने जाते थे । गन्ने और आलू की फसलें उन्हें जीवन यापन की पर्याप्त सुख सुविधायें प्रदान कर रही थीं । जोगी बाबा ने भगवा वस्त्र धारण कर लिया था ,शुभ्र दाढ़ी और खड़ाऊँ में वे एक भब्य वृद्ध सन्यासी दिखायी पड़ते थे । हम लोगों के लिये कमरे से थोड़ी दूर हटकर शोचालय का प्रावधान था और जोगी बाबा की बहुओं और बच्चों के लिये पुराने घर के भीतर शौच इत्यादि का प्रबन्ध किया गया था । पुराना मकान भी काफी लम्बे चौड़े क्षेत्र में फैला था । जोगी बाबा ने अपने लिये घर से बाहर झाड़ियों भरे एक खण्डहर में शौचालय का प्रबन्ध कर रखा था । प्रत्येक सुबह चार बजे के आस पास उनकी खड़ाऊओं की चटक हमें बता देती थी कि प्रभात का आगमन होने वाला है । कुछ महीनों के बाद एक दिन हम लोगों को सुनने में आया कि जोगी बाबा के सामने उनके  अन्तिम प्रयाण का सन्देश आ गया है । वे अस्सी से ऊपर हो रहे थे । पर फिर भी हम सब चाहते थे कि वे एक डेढ़ दशक और जीकर नयी पीढ़ी को उत्साहित करते रहते ।  क्या हुआ यह जानने के लिये पाण्डेय जी ने जोगी बाबा को आदर पूर्वक तीनों के बीच बुलाया । (क्रमशः )

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