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                       .........................अब आजादी के इतने वर्षों बाद ऐसा लगता है कि हमारी तरुण पीढ़ी अपना खोया हुआ स्वाभिमान वापस पा चुकी है । विश्व के हर देश में जहाँ कहीं भी भारतीय है यह देखा जाता है कि भारतीय छात्र -छात्रायें वहाँ के स्थानीय बच्चों से अधिक प्रतिभाशाली हैं । चाहे आक्सफोर्ड हो चाहे हारवर्ड चाहे मेलबोर्न और चाहे मांट्रेयल हर स्थान पर भारतीय छात्र -छात्रायें अपनी प्रतिभा और उपलब्धि के खरे सिक्के चला रहे हैं । इसी प्रकार भारतीय व्यापारी और उद्योगपति संसार के सबसे समृद्ध पुरुषों की श्रेणी में पहुंचने लगे हैं । निश्चय ही सैकड़ों वर्षों की दासता से उपजी हींन  ग्रन्थि अब सदा के लिये समाप्त हो गयी है । और आने वाले वर्षों में प्रत्येक भारतीय संसार के अन्य देशोंके समक्ष सिर ऊँचा करके चलने में अपने को सहज रूप से ढाल लेगा ।
                               एक और  रोमांचक प्रसंग जो मुझे जैकब साहब के Memories में पढ़ने को मिला उसकी चर्चा करके  मैं अपनी बात को समाप्त करना चाहूँगा । अंग्रेज जज ने लिखा है कि उनके सामने क़त्ल का एक केस आया था । इस मामले में दोनों ओर से बड़े -बड़े वकील पेश हुये थे । काफी लम्बे अरसे तक यह केस खिचता रहा।  अंग्रेज जज ने कई बार यह कहा कि मर्डर का यदि कोई साक्षी गवाह हो तो उसे कोर्ट में हाजिर किया जाये  । वकील ने उन्हें बताया कि जब क़त्ल हुआ तो वहाँ और कोई नहीं था सिर्फ बाजरा खड़ा था । जैकब साहब ने वकील से कहा कि मि ० बाजरा को मेरे कोर्ट में हाजिर किया जाय । जब वह वहाँ खड़ा था तो वह घटना का चश्म दीद गवाह है उसे  हाजिर किये बिना क़त्ल का केस पूरी तरह साबित नहीं होता । वकील ने अंग्रेज जज को बताया कि बाजरा को हाजिर नहीं किया जा सकता क्योंकि वह चल -फिर नहीं सकता । वह तो सिर्फ खड़ा ही रहता है । मि ० जैकब ने तुरन्त हुक्म दिया कि उसे पकड़ कर चारपायी पर बांधा जाये और मेरे कोर्ट में हाजिर किया जाये । वकील ने कहा कि बाजरा तो एक प्लांट है तो जैकब साहब ने कहा कि यह सारा केस प्लान्टेड लगता है । उन्होंने जैसा कि हमारे विज्ञ पाठक जानते ही होंगें उन्होंने प्लांट का अर्थ पौधे के रूप में न लेकर एक सुनियोजित षड़यंत्र के रूप में लिया, अंग्रेजी भाषा में प्लांट क्रिया के रूप में कई अर्थ प्रतिध्वनित करता है । नतीजा यह हुआ कि अंग्रेज जज ने क़त्ल करने वाले को मि ० बाजरा जो एक चश्मदीद गवाह थे ,कि कोर्ट में अनुपस्थित होने के कारण कातिल को रिहा कर दिया । विदेशी भाषा में पले बढे और विदेशी संस्कृति में संस्कारित अंग्रेज न्यायाधीश न तो भारत के जलवायु न ही भारतीय संस्कृति न ही भारतीय परम्पराओं और भारतीय खान -पान में प्रयोग होने वाले खाद्य पदार्थ ,मसालों से परिचित थे । छोटे स्तर के हिन्दुस्तानी वकील टूटी -फूटी अंग्रेजी सीख लेते थे पर पौधे और जन्तुओं के लिये उनके पास इतने सार्थक शब्द नहीं होते थे कि वे उन्हें पूरी चित्रमकता के साथ अंग्रेज जजों के सामने रख सकें । हम पौधे ,पशुओं और वनस्पति प्रेमियों को इस बात से कुछ राहत मिल सकती है कि हमारी आँखों से तिरस्कृत बाजरा मि ० जैकब के लिये मि ० बाजरा बन गया और मि ० बाजरा को इस बात का श्रेय जाना चाहिये कि उन्होंने अपने को न्याय की एक ऊंची अदालत में कई पुकारों  के बाद भी हाजिर न होने की जुर्रत जुटायी । तो पाठक बन्धुओं हमारा प्रयास होना चाहिये कि गोरी जाति के आस -पास किस्सा कहानियों द्वारा घेरा हुआ बड़प्पन का जाल हम सच्चायी के तकुओं से छिन्न -भिन्न कर दें । प्राचीन भारत की न्याय पद्धति तो विश्व में अद्वितीय  थी ही । मुग़ल काल में भी जहांगीरी न्याय का घंटा अपने सम्पूर्ण निष्पक्षता के लिये स्वीकारा  और माना जाता था । गोरी जातियों का आगमन और उनके द्वारा भारत का पददलन भारतीय इतिहास की सबसे दुःखद घटना है । अब समय आ गया है कि अहंकार में पली -पुसी मूल्य हींन संस्कृति में जीने वाले तथा तथा धनान्ध गोर राष्ट्रों को हम उनका सही स्थान दिखा दें । 

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