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कालजयी नर श्रष्टि

तुलते रहे इतिहास में सदा ही
 क्रान्ति द्रष्टा जन नायक
माप तौल श्रष्टि की सनातन परिपाटी है
मूल्यों की तुला पर तुलते रहे हैं शीश
तिल -तिल कर कटती रही अत्याचार माटी है ।
मनुजता के मापदंड मूल्यों की तुला
अब विगत की बात है
चाॅंदी के सिक्कों से तुलनें की
अनुबन्धित मूल्य -हीन खुलने की
नयी शुरुआत है ।
मैनें भी तौला है कई बार अपनें को
पाया है औरों से भारी हूँ
विस्मित हुआ देख हल्कापन
अपनें आस -पास का
सहज अभिमान हो आया है
 अपनें गुरुत्व अहसास से ।
रंट ग्रोथ ,बौनी नस्ल
लिलीपुटन ,अंगुल नर
उद्ग्रीव में ,इनकी तुलना में
कितना महान हूँ
तारों की सीमा में उगती
नव संस्कृति का गतिमान
पारदर्शी प्रखर शब्द यान हूँ ।
किन्तु तब अन्तर से एक शब्द उभरा है
गान्धी ,अरविन्द ,मण्डेला भी मानव हैं ।
चरणो में इनके बैठ निज को माप
अपनें को लिज -लिजा सरीसृप सा ।
माप तौल सिक्कों की वंचना मात्र है
 कालजयी नर -श्रष्टि नभ कुसुम होते हैं ।
कृमि ,कीट ,गोबरैले ,विषखांपर पर वृथा- श्रष्टि
नीति नर जाते जब तारे स्वयं रोते हैं ।


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