आस्तिक दर्शन ( शेष …… )
ऐसा उसनें इस लिए कहा क्योंकि कितनें ही सांसद चुनाव हार जाने के बाद भी सरकारी बंगले और निवास स्थान नहीं छोड़ते और क़ानून उन्हें ऐसा करने में अपने को लचर पाता है । जिस जनतन्त्र में सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश भी व्यवहारिक रूप न ले सके जन -तन्त्र की गौरव गाथा को मात्र शब्द आडम्बर ही कहा जायेगा तो सोचिये क्या आत्म पवित्रता का भारत की आज की राजनीति में कोई अर्थ रह गया है ?"हम्माम में हम सब नंगे हैं " यह कहकर राजनीतिक पार्टियां सच्चायी से दूर भागनें की कोशिश कर रहीं है । पर काल का अहेरी अपनी कमान पर तीर चढ़ाये ठीक समय का इन्तजार कर रहा है शर विद्ध पक्षी की भाँति अपनी काल्पनिक ऊँचाई में उड़ते हुए अधिकाँश भ्रष्ट और भ्रमित जन -प्रतिनिधि लुंज -पुंज होकर माटी में लोटते दिखाई पड़ेगें ।
गहन चिन्तन करनें के बाद हम यह पाते हैं कि आज के भारत में सदाचार ,ज्ञान और त्याग का कोई अर्थ रह गया है । अब तो ऐसा लगनें लगा है कि दुष्ट ,दुराचारी ,आततायी और आतँकी हुए बिना राजनीति में सफलता पायी ही नहीं जा सकती । ग्राम पंचायत से लेकर राज्य की विधान सभाओं और केन्द्रीय संसद में भी जघन्य अपराधों के षड्यंत्रकारी और विधाता बैठे दिखाई पड़ते हैं । तब क्या किया जाय । एक मार्ग तो यह है कि हम मानव जन्मों की अनवरत श्रंखला में विश्वाश करें । हम मान लें कि हमारे अच्छे कर्मों का फल इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में या फिर उससे अगले जन्म में मिलेगा । भारतीय चिन्तन का मूल स्वर आस्तिकता का रहा है हम मानते हैं कि श्रष्टा का न्याय सम्पूर्ण और ब्रम्हांडीय विवेक पर आधारित है । हम मानते हैं कि अन्याय से पोषित वृत्तासुर ,दशानन और कंस निश्चय ही एक दिन राख के ढेर बनकर वायु में उड़ जायेंगें । सदाचारी रह कर भी ,सद्पथ पर चल कर भी ,मूल्य आधारित जीवन जीकर भी ,प्रतिभा पुत्र होकर भी जब हमें आज की सामाजिक ,राजनीतिक व्यवस्था में सम्माननीय स्थान नहेीं मिल पाता तो हमारा चिन्तन माओ ,चे गवेरा ,Fidel Castro,और प्रचण्ड की ओर देखने लगता है । पर हमें अंग्रेजी की इस कहावत में पूरा विश्वाश करना होगा कि " Wheels of Justice grind slowly but grind surely."बापू तभी तो कहा करते थे "It is only through pure means that ideal results can be attained ."और अब कहीं -कहीं दिखाई तो पड़नें लगा है कि कुछ मन्त्री ,आई. ए. एस.और आई. पी. एस.अधिकारी ,कुछ सर्विस सेलेक्शन बोर्ड्स के सदस्य ,और कुछ सांसद और विधायक जेल की सलाखों के पीछे खड़े हैं । ऊषा की कुछ किरणें ही आने वाले प्रभात का आभाष देती हैं । हमें भारतीय आस्तिक दर्शन के अनुगामियों और चिन्तकों को ईश्वरीय न्याय की अटलता और सर्वोच्चता में विश्वाश रखना ही होगा । इस मार्ग पर चलनें में हमें जो भी मिले सफलता -असफलता ,सुख -दुःख ,राग -विराग ,जीवन -मृत्यु उसे हमें हँस -हँस कर वरण करना होगा । यह वरण ही समाधिस्थ योगी की प्रसन्नता हमें दे पायेगा ।
ऐसा उसनें इस लिए कहा क्योंकि कितनें ही सांसद चुनाव हार जाने के बाद भी सरकारी बंगले और निवास स्थान नहीं छोड़ते और क़ानून उन्हें ऐसा करने में अपने को लचर पाता है । जिस जनतन्त्र में सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश भी व्यवहारिक रूप न ले सके जन -तन्त्र की गौरव गाथा को मात्र शब्द आडम्बर ही कहा जायेगा तो सोचिये क्या आत्म पवित्रता का भारत की आज की राजनीति में कोई अर्थ रह गया है ?"हम्माम में हम सब नंगे हैं " यह कहकर राजनीतिक पार्टियां सच्चायी से दूर भागनें की कोशिश कर रहीं है । पर काल का अहेरी अपनी कमान पर तीर चढ़ाये ठीक समय का इन्तजार कर रहा है शर विद्ध पक्षी की भाँति अपनी काल्पनिक ऊँचाई में उड़ते हुए अधिकाँश भ्रष्ट और भ्रमित जन -प्रतिनिधि लुंज -पुंज होकर माटी में लोटते दिखाई पड़ेगें ।
गहन चिन्तन करनें के बाद हम यह पाते हैं कि आज के भारत में सदाचार ,ज्ञान और त्याग का कोई अर्थ रह गया है । अब तो ऐसा लगनें लगा है कि दुष्ट ,दुराचारी ,आततायी और आतँकी हुए बिना राजनीति में सफलता पायी ही नहीं जा सकती । ग्राम पंचायत से लेकर राज्य की विधान सभाओं और केन्द्रीय संसद में भी जघन्य अपराधों के षड्यंत्रकारी और विधाता बैठे दिखाई पड़ते हैं । तब क्या किया जाय । एक मार्ग तो यह है कि हम मानव जन्मों की अनवरत श्रंखला में विश्वाश करें । हम मान लें कि हमारे अच्छे कर्मों का फल इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में या फिर उससे अगले जन्म में मिलेगा । भारतीय चिन्तन का मूल स्वर आस्तिकता का रहा है हम मानते हैं कि श्रष्टा का न्याय सम्पूर्ण और ब्रम्हांडीय विवेक पर आधारित है । हम मानते हैं कि अन्याय से पोषित वृत्तासुर ,दशानन और कंस निश्चय ही एक दिन राख के ढेर बनकर वायु में उड़ जायेंगें । सदाचारी रह कर भी ,सद्पथ पर चल कर भी ,मूल्य आधारित जीवन जीकर भी ,प्रतिभा पुत्र होकर भी जब हमें आज की सामाजिक ,राजनीतिक व्यवस्था में सम्माननीय स्थान नहेीं मिल पाता तो हमारा चिन्तन माओ ,चे गवेरा ,Fidel Castro,और प्रचण्ड की ओर देखने लगता है । पर हमें अंग्रेजी की इस कहावत में पूरा विश्वाश करना होगा कि " Wheels of Justice grind slowly but grind surely."बापू तभी तो कहा करते थे "It is only through pure means that ideal results can be attained ."और अब कहीं -कहीं दिखाई तो पड़नें लगा है कि कुछ मन्त्री ,आई. ए. एस.और आई. पी. एस.अधिकारी ,कुछ सर्विस सेलेक्शन बोर्ड्स के सदस्य ,और कुछ सांसद और विधायक जेल की सलाखों के पीछे खड़े हैं । ऊषा की कुछ किरणें ही आने वाले प्रभात का आभाष देती हैं । हमें भारतीय आस्तिक दर्शन के अनुगामियों और चिन्तकों को ईश्वरीय न्याय की अटलता और सर्वोच्चता में विश्वाश रखना ही होगा । इस मार्ग पर चलनें में हमें जो भी मिले सफलता -असफलता ,सुख -दुःख ,राग -विराग ,जीवन -मृत्यु उसे हमें हँस -हँस कर वरण करना होगा । यह वरण ही समाधिस्थ योगी की प्रसन्नता हमें दे पायेगा ।