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     कुन्जरपुर की रामलीला

                         सूत जी आगे बोले , "मन्दिर पुनुरुद्धार के काम में मैं एक छोटे से गाँव कुन्जरपुर में जा पहुंचा | गाँव के एक कोनें में एक छोटा पानी का भराव था | बरसात में यह भराव लम्बा -चौड़ा हो जाता था पर गर्मी में एक तलैय्या जैसा दिखाई देता था | कुंजरपुर के लोग इसे गुरू तालाब के नाम से जानते थे | इस तालाब के एक कोने पर टूटा -फूटा श्री राम और सीता का मन्दिर था | मैं वहीं टिक गया | धीरे -धीरे मन्दिर का सुधार होने लगा | पास के बड़े गाँव में चला जाता | कभी -कभी शहरों में भी घूम आता | कुछ दानी और धर्म प्रेमी चन्दा देने लगे | दो वर्ष के भीतर -भीतर मन्दिर का पुनुरुद्धार हो गया | छोटा होने पर भी मन्दिर देखने में सुन्दर लगता था | गाँव के लोगों से कह सुन कर मैनें तालाब के किनारों को और बढ़ाना और गहरा करवाना शुरू करवाया | पिछले साल खूब बरसात हुयी थी | तालाब लबालब भर गया था अब उसके चारो ओर सीढिया बनाने की बात सोची | गंगाधाम के महन्त सांवल दास के पास पहुंचा उनसे प्रार्थना की उन्होंने अपने एक भक्त करोड़ीमल से कह दिया और इसप्रकार तालाब के चारो ओर सीढ़ियां बन गयीं | कुंजरपुर के लोग एक -एक करके अपने घर से एक दिन का भोजन ले आते थे | शाम को मैं केवल दूध ही लेता था | गाँव के लोग सीधे -सच्चे और निःश्च्छल हृदय के होते हैं | शाम के समय मन्दिर में आ बैठते | जीवन मरण की चर्चा होती रहती | अब गाँव के हर जन्म और मृत्यु में मेरा होना अनिवार्य बन गया | उत्सव और शादी व्याह में भी मुझे सम्मान मिलने लगा | मुझे जो भी मिलता सब मन्दिर की साज -सजावट में लग जाता | नये आले बनवाये और नयी मूर्तियां मगवायीं पर पुरानी श्री राम और माँ सीता की मूर्ति ही गर्भ गृह में स्थापित की गयी | मन्दिर की मान्यता बढ़ने लगी | कुंजरपुर ग्राम के कुछ लोग नये बीज और रासायनिक खाद का इस्तेमाल कर अच्छी फसल लेने लगे | कुछ लड़के पढ़ लिख कर प्राईमरी मास्टर बन गये | एक पोस्टमैन भी बन गया | और कुछ नवयुवकों ने शहर में जाकर कालेज में पढ़ना शुरू किया | कालेज में उन दिनों दशहरे से लेकर दीवाली तक लम्बी छुट्टियां होती थीं | अबकी बार रमाकांत और सज्जन सिंह जब छुट्टी में घर आये तो मन्दिर में मेरे पास आकर बैठ गये बोले ,"महात्मा जी इस तालाब के आस -पास काफी मैदान पड़ा है हम लोग क्यों न यहां दशहरे में राम लीला का आयोजन करें | श्री राम और माँ सीता का मन्दिर तो यहां है ही | आपको आस -पास के गाँवों के लोग जानते हैं मेला चल निकलेगा | दुकानें आने लगेंगी | उनसे थोड़ा बहुत किराया ले लिया जाया करेगा | खर्चा निकलने लगेगा | शुरू में हम लोग खाते -पीते घरों से चन्दा इकठ्ठा कर लेंगें |
                                  मुझे उनकी बात अच्छी लगी | उनकी बात में दम था | धर्म भावना के साथ साथ व्यापारिक सूझ बूझ भी थी | वे दोनों ही बी ० काम ० के छात्र थे पर मैनें सोचा कि राम लीला के लिए अभिनय करने वाले छोटे बड़े कलाकार कहाँ से इकठ्ठे किये जायेंगें | रमा और सज्जन ने कहा कि शुरुआत तो  छोटे पैमाने पर ही होगी | गाँव के 10 -12 -13 वर्ष के बच्चों को राम ,सीता ,लक्ष्मण आदि बना दिया जाएगा | हनुमान का पार्ट हम दोनों में से कोई एक कर लेगा | रावण के पार्ट के लिए ऊदल पहलवान को ले लिया जायेगा आदि आदि | उन्होंने कहा पहले एक दो तख़्त डाल कर और एक दो दरियाँ बिछाकर काम किया जायेगा | उन्होंने कहा कि एक दो कनाते और एक तम्बू अपने क्लास रूम के साथी लाला छोटू मल के बेटे के घर से ले आयेंगें |
                                       मैं जानता था कि हर बड़े काम की शुरुवात छोटी होती है | माँ के पेट से आने वाला शिशु कितना नन्हा और असहाय होता है पर वही आगे चलकर भीम ,अर्जुन और आल्हा -ऊदल बनते हैं | पीपल ,बरगद और नीम के पेड़ों को ही देखो कितनी छोटी शुरुवात और कितना विशाल आकार ?एक दिन कुंजरपुर की रामलीला भी आस -पास दस कोशी में मशहूर हो जायेगी | मेरी सहमति होने पर रमाकान्त और सज्जन सिंह ने कोशिश करके कुंजरपुर के 15 -20  खाते पीते मन्दिर में बुलाकर और उनसे राय  -मशविरा कर रामलीला की एक योजना बना डाली | गाँव के एक कोनें में पासियों के कुछ घर थे | मैनें कहा कि उन पासी घरों में से भी किसी एक को बुला लाओ | रमाकांत ने कहा उनमें से ज्यादातर नशीलची हैं और घसीटवा तो ताड़ी पीने शहर तक जाता है | मैनें देखा था कि छः फुटा घसीटा शहर जाते समय मन्दिर में माथा टेकता हुआ जाता था | मैनें कहा अरे बेटो घसीटो को ही बुला लो | घसीटे ने सभी शारीरिक काम करने की हामी भरी और कहा खुदाई ,भरायी तखत बिछानें या पर्दा लगाने आदि किसी भी काम को वह खुशी खुशी करेगा और कोई मजदूरी नहीं लेगा | अब क्या था राम लीला चल निकली|  तय हुआ कि प्रारम्भ में राम लीला की कुछ छवियाँ ही बिछे तख्तों पर परदे लगाकर अभिनीत की जांय | एकाध गैस का हंडा लगा दिया जायेगा और सामने दरियों पर बैठकर लोग रामलीला के द्रश्य देख सकेंगें | एक ढोलकिया से कहकर आस -पास के गाँव में भी मुनादी करवा दी गयी |
प हले पहले दिन दशरथ के दरबार में विश्वामित्र जी का पहुँचना दिखाया जायगा | राम ,लक्ष्मण को लेकर विश्वामित्र अपने आश्रम की ओर चलेंगें | उसके बाद कुछ भजन होंगें और पर्दा डाल दिया जायेगा | उसके अगले दिन विश्वामित्र जी श्री राम ,लक्ष्मण को राक्षसों के अत्याचार की कहानियां सुनायेंगें और ताड़का के आतंक का जिक्र करेंगें औ प र फिर ताड़का वध होगा | इसके बाद भगवान् की स्तुति होगी और पर्दा डाल दिया जायेगा | तीसरे दिन फुलवारी का मन्चन  होगा श्री राम माँ सीता को देखेंगें और माँ सीता राम को देखेंगीं | पार्वती पूजन होगा और फिर पार्वती जी का माँ सीता को दिया गया आशीर्वाद ऊँचे स्वरों में सुनाया जायेगा | भजन ,स्तुति के बाद पर्दा डाल दिया जायेगा | चौथे दिन धनुष भंग होगा | सारे राजे ,महाराजे आयंगें | रावण ,बाणासुर आयेंगें ,फिर श्री राम जी विश्वामित्र की आज्ञां लेकर धनुष भंग करेंगें और फिर आयेंगें फरसा लेकर जमदग्नि पुत्र परशुराम | वाद -विवाद के बाद परशुराम श्री राम की शक्ति को पहचानेंगे और श्री राम की स्तुति करेंगें और फिर पर्दा डाल दिया जायेगा | चार दिन की तैय्यारी पूरी कर ली गयी थी पर आगे का प्रोग्राम पूरी तरह तैय्यार नहीं था  इसलिए मुनादी करवा दी गयी थी | इसी प्रकार राम लीला की अन्य घटनायें मन्चित की जाती रहेंगीं | परशुरामी करनें के लिए पड़ोस के गाँव से ठाकुर शिव कुमार सिंह की सहमति मिल चुकी थी उनका शरीर भी अच्छा था और उनका संवाद बोलने का ढंग भी लोगों को भा जाता था |
                         पाठक शायद यह जानना चाहेंगें कि सूत जी कौन थे और कैसे मेरे यहां कहानी सुनाने के लिए पहुंचे | मैं बता दूँ कि सूत जी का पूरा नाम सूरत जी है और अब वे जिस शहर में मैं बैंक मैनेजर हूँ उसी शहर में रहने लगे हैं | उनके मकान के नीचे राधा कृष्ण का मन्दिर है और ऊपर उनके भक्त ,सेवक भजनू के रहने के कमरे हैं | इस वर्ष की दशहरा को गृहणियां और बच्चे शहर में मेला देखने चले गये थे | मेरे पास -पड़ोस के चार पांच घरों के वृद्ध सज्जन मेरे यहां इकठ्ठे हो गये थे | चपरासी राम गुलाम बातचीत के बीच चाय के प्याले ले आता था | सूरत जी को भी बुला लिया गया था ताकि वे रामायण सम्बन्धी एकाध घटनाओं से हम लोगों को परिचित करायें और मनोविनोद के साथ हमें कुछ धार्मिक शिक्षा भी मिले | सूरत जी को मैं सूत जी कहता था क्योंकि उनके किस्से कहानियां बहुत दिलचस्प होते थे | लोग जानते थे कि मैं सूत जी का प्रशंसक हूँ और इसलिये सूत जी की सिफारिश लेकर मेरे पास बैंक में काम कराने आते थे | धीरे धीरे सूत जी पूजा पाठ के बाद मेरे यहां हर शाम एक कप चाय पीने मेरे घर आने लगे थे | हम लोगों ने बात  को आगे बढ़ाने के लिये सूत जी से आग्रह किया कि कुंजरपुर की राम लीला किस प्रकार सफलता की मंजिलें छू सकी इस पर थोड़ा सा प्रकाश और डालें
सूत जी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले ,"पहले दिन की रामलीला अच्छे ढंग से अभिनीत हुयी | दशरथ के आश्रम पर सज्जन सिंह जी के पिता सन के सफ़ेद बाल लगाकर बैठे | मुझे विश्वामित्र के रूप में पेश किया गया | रमाकान्त के पिता गुरु वशिष्ठ के रूप में उपस्थित हुये | पीले कपड़ों का कुर्ता और सन के सफ़ेद बाल आसानी से उपलब्ध थे ही | सज्जन के पिता ने दशरथ का  बहुत अच्छा अभिनय किया |  राम लक्ष्मण को अपने से अलग होने की बात सुनते ही उनकी आँखों में आंसू आ गये | गाँव के सभी नर -नारी प्रभावित हुये | भक्ति का सीधा असर भोले -भाले ग्रामीणों के हृदय पर पड़ता है | मातायें ,बहनें तो भावुक होती ही हैं पुत्र वियोग के डर  से उमड़ते आंसुओं ने उनकी आँखों में भी आंसू ला दिये | पर मुझे   विश्वामित्र के रूप में द्रढ़ तो रहना  ही था | मुझे न तो राज्य चाहिये था न हाथी ,घोड़े न मणि माणिक क्योंकि मैं जान गया था कि निश्चरों का विनाश श्री राम ही कर सकते हैं | और अनुज श्री लक्ष्मण के साथ होने पर उनके गौरव में वृद्धि होगी और उनके दैवी कार्य में समयोचित सहायता मिलेगी | गोसाईं जी की इस पंक्ति को मैं बराबर अपने ध्यान में रखे हुये था ,"गाधि तनै मन चिन्ता व्यापी ,हरि बिनु मिटै न निशिचर पापी |"मेरे अभिनय में भावुकता का अभाव था इसलिये शायद वह अधिक प्रभावी न बन सका | वशिष्ठ जी के कहने पर चक्रवर्ती सम्राट दशरथ को मेरी मांग स्वीकार करनी पडी | गुरु वशिष्ठ ने भी अपना रोल बहुत अच्छी तरह निभाया | रमाकान्त के पिता रामायण का अच्छा ज्ञान रखते थे उन्होंने अयोध्या नरेश को समझाया कि जगत के कल्याण के लिये अपने सुख का बलिदान कर देना चाहिये | आंसू बहाते हुये महाराज ने आखिर राम ,लक्ष्मण को अपने पास बुलाया | परदे के पीछे से माताओं के आंसू भीगी पुकार सुनायी पडी हाय न जानें कहाँ  हमारे हृदय के टुकड़ों को भेजा जा रहा है | कुंजरपुर की कुछ स्त्रियों को यह वाक्य सिखा दिया गया था | पर परदे के पीछे से बारह वर्षीय सन्तू और लगभग उतनी ही उम्र का चिन्टू ,राम और लक्ष्मण बनकर विश्वामित्र जी के पास उपस्थित हुये  तुलसीदास जी की रामायण में शायद इसकी चर्चा नहीं की गयी है पर रमाकान्त और सज्जन सिंह ने एक नया दृश्य जोड़ा था | जब सन्तू और चिन्टू परदे के पीछे से बाहर निकल कर आये तो उनके गले में मोती की माला और बाँहों पर रत्नों के बाजूबन्द लगे थे उनके कपडे भी राजसी ठाठ के थे | उनके बालों की सज्जा भी अलंकृत ढंग से की गयी थी | | यह बनावटी मूंगे और बाजूबन्द तथा कपडे रमा और सज्जन ने कैसे इकठ्ठे किये ये तो वही जानते होंगें पर मुझे अत्यन्त खुशी हुयी कि कुंजरपुर में भी नयी प्रतिभाएं उभर रही हैं जो समय के साथ महाकाव्यीय गाथाओं को नया रूप देती जा रही हैं | मैं तो विश्वामित्र के रूप में इस द्रश्य के लिए पहले से ही प्रस्तुत था | राम और लक्ष्मण ने गुरु वशिष्ठ को प्रणाम करने के बाद मुझे प्रणाम किया और फिर उसके बाद दशरथ जी को | अयोध्या नरेश दशरथ जी ने अपने तखत से उतर कर जिस तख़्त के के एक स्टूल पर मैं बैठा था उसके पास आये और राम और लक्ष्मण का हाँथ दायें और बायें हाँथ में पकड़वा दिया और कहा हे मुनि श्रेष्ठ ,हे वीर श्रेष्ठ, हे विश्व विजयी ,हे विश्वामित्र मैं अपने इन दोनों पुत्रों को आपकी शरण में देता हूँ | हे मुनि श्रेष्ठ ,इन्हें महामानव बनाने का उत्तरदायित्व अब तुम्हारा है | इसके बाद महाराज दशरथ मुझे प्रणाम कर अपने तख़्त पर चले गए | कहना न होगा कि तख़्त पर एक चादर बिछाकर और धान के पयाल का एक टीला सा बनाकर एक सिंहासन का रूप दिया गया था | मैनें अब राम और लक्ष्मण से कहा वत्स जाओ अपनी माताओं का चरण स्पर्श कर उनसे विदा मांगों और कहो कि मुनि विश्वामित्र उन्हें यह बचन देते हैं कि दोनों राजकुमार अपार यश कमाकर उनके पास सकुशल वापस आयेंगें | साथ ही अपने इन राजसी वस्त्रों और आभूषणों का परित्याग करो ,अलंकृत बालों को ऊपर की तरफ संवार कर वीर भेषी जूड़ा बांधों फिर हाँथ में धनुष -बाण लेकर मेरे पास आओ | यथा समय मैं तुम्हें दिव्य अस्त्र -शस्त्रों से सुसज्जित कर दूंगा | राम और लक्ष्मण परदे के पीछे चले गए | वशिष्ठ जी उठकर विश्वामित्र के पास आये और दोनों ने एक दूसरे को प्रणाम किया | विश्वामित्र जी ने विदा देने को कहा | पर्दा डाल दिया गया और भजन स्तुति के साथ पहले दिन का राम लीला मन्चन समाप्त हुआ |  आस -पास के गावों में कुछेक घण्टों के बाद यह खबर फ़ैल गयी कि कुंजरपुर की रामलीला तो एक निराली रामलीला है और वैसी रामलीला तो बड़े -बड़े शहरों में भी नहीं होती | अगले दिन ताड़का वध होना था | अब एक समस्या आ खड़ी हुयी | हमनें अन्य पात्रों का चयन तो कर लिया था पर उस समय यह ख्याल ही नहीं किया था कि ताड़का का अभिनय कौन करेगा | दिमाग में शायद यह बात इसलिए न आयी हो कि ताड़का का पार्ट महत्वपूर्ण न लगा हो और सोचा गया होगा कि किसी को भी इसके लिए काले कपडे पहना कर खड़ा कर दिया जायेगा पर अब सवाल यह था कि दूसरे दिन की राम लीला को कम से कम दो घण्टे तक तो चलाया ही जाय | इसके लिए विश्वामित्र के साथ श्री राम ,लक्ष्मण का भीषण वन के बीच से गुजरना और राक्षसों के भीषण अत्याचार की कहानी बताना तो था ही पर इसका प्रमुख आकर्षण ताड़का वध था | अब यदि ताड़का वध बिना किसी संवाद के करा दिया जाता तो उसका अपेक्षित प्रभाव दर्शकों के हृदयों पर नहीं पड़ता | इसलिए ताड़का द्वारा कुछ संवाद बोले जानें थे जिनमें से अधिकाँश का उत्तर लक्ष्मण जी को देना था और सर छोड़ने से पहले एकाध बात राम जी को भी कहनी थी | रमाकांत और सज्जन सिंह ने मुझसे परामर्श कर कुछ डायलॉग बना तो लिए थे पर वे डायलॉग ताड़का का पार्ट अदा करने वाला गाँव का अपढ़ पासी घसीटा याद भी कर पायेगा या नहीं इस पर सन्देह था | ताड़ी पियक्कङ घसीटा को इसलिए चुनना पड़ा क्योंकि इस रोल के लिए और कोई तैय्यार नहीं था और फिर वह छः फुटा अधेड़ तो था ही जिसकी फटी हुयी भयानक आवाज नर -नारी का मिला जुला स्वर लगती थी | डायलॉग में एक वाक्य यह भी था ,"रबड़ के पुतलो ,हम तुम्हें कच्चा चबा जायेंगें ,हमनें न जानें कितने जूड़ा  धारियों का खून पिया है | "इसके उत्तर में लक्ष्मण जी कहते हैं ,"नीच राक्षसी तू औरत होकर भी महात्माओं का खून पीती है ,तू माँ भगवती से नहीं डरती |"इस वाक्य के उत्तर में ताड़का को कहना था कौन माँ भगवती ? मैं माँ भगवती को हर रोज मूसल से कूटती हूँ | और यह कहकर दनादन कई मूसल जमीन पर मारने थे | सज्जन सिंह ने एक मूसल अपने घर से लाकर घसीटे को दे दिया था जो वह अपने काले चोंगे में छिपाये था |
घसीटे ने डायलागों पर बहुत मेहनत की थी पर माँ भगवती का उच्चारण उसके मुंह से साफ़ नहीं निकल रहा था | दरअसल उसकी जहरीली पत्नी का नाम भगवन्ती था | वो भी एक लम्बी -चौड़ी औरत थी जो दूसरों के खेतों में मजदूरी करके अपना ,अपने पति और अपने तीन बच्चों का पेट पालती थी | जब खेतों ,खलिहानों से मजदूरी करके वह लौटती तो उसका शरीर इतना थका होता कि गाँव की राम लीला उसे अपनी ओर नहीं खींच पायी थी  पर दूसरे दिन की राम लीला में घसीटे ने जिसे रोल अदा करने के लिए कुछ पिलाने का लालच दिया गया था ,अपनी पत्नी के सामने शेखी मारी थी कि उसका आज का ताड़का का रोल गाँव के लोगों के लिए यादगार बन जाएगा उस दिन भगवन्ती ने रमाकान्त के पिता के खेतों में ज्वार के भुट्टे काटे थे | काटे गए भुट्टों में से १/१० हिस्सा उसको भी मिला था  घसीटे को तो पार्ट तैय्यार करने के लिए रमाकान्त ने काफी कुछ खिला दिया था पर घर पर बच्चे माँ को तंग कर रहे थे कि उसे कुछ पैसे दें ताकि मेले में लगी दुकानों से वे मोमफलियाँ खरीद सकें | भगवन्ती ने घर आकर मूसल से भुट्टे कूटे | निकली हुयी जुडरी को लेकर वह लाला मुसद्दी मल के यहाँ बेच आयी | मुसद्दी की छोटी सी दुकान गाँव में थी और सारे गरीब पासियों के घर उसी के सहारे उधार पर चलते थे | मुसद्दी ने उससे कहा था ,"अरे भगवंतिया ,आज तो तेरा शौहर अपना जौहर दिखायेगा जा के देख आना |"भगवन्ती पैसे पाकर खुश थी अब बच्चों के लिए मूँगफलियाँ खरीदनें का बल उसमें आ गया था और इसलिए वह अपने तीनों बच्चों को लेकर बिछी दरियों पर सबसे पीछे जाकर बैठ गयी | विश्वामित्र जी का और राम लक्ष्मण जी का जंगल से गुजरना ,जंगल के प्रमुख स्थानों का परिचय ,राक्षसों की अमानवीय रत  लीलाओं से परिचित कराना आदि होने के बाद विश्वामित्र उस आश्रम की ओर बढ़ते हैं | जहां ताड़का का आतंक हर पत्ते के हिलने से झंकृत होता था | उस वन खण्ड का प्रत्येक वृक्ष वायु के झोंकों से जब हिलता तो लगता जैसे ताड़का ताड़का की आवाज आ रही है | अब समय आ गया था जब परदे के पीछे से दौड़ती हुयी ताड़का दर्शकों के सामने आकर तखत पर खड़ी हो जाय | राम ,लक्ष्मण तखत के पार्श्व में खड़े थे ,बीच में गुरु विश्वामित्र के साथ इतने तख्तों का इंतजाम नहीं हो सका था कि विश्वामित्र के साथ खड़े हुए राम ,लक्ष्मण ऊपर ही रहते और ताड़का दौड़कर अपनी डींग हाँकती रहती इसलिए वे पार्श्व में खड़े थे | मैनेजमेंट ऐसा किया  गया था कि नीचे रहकर ही दर्शकों की ओर मुंह करके लक्ष्मण जी अपना संवाद बोले | हुआ यों कि जब काला चोंगा और काली लुंगी बांधे घसीटा बाहर निकलने के लिए फुर्ती से उठा तो उसका चोंगे में छिपा हुआ मूसल फिसल कर नीचे गिर पड़ा और उसे पता तक नहीं लगा | परदे से बाहर आते ही घसीटे को लगा कि उसका मूसल तो है ही नहीं ,अब वह धनुष -बाण से लड़ाई कैसे लड़ेगा | उसे तो अपने डायलागों के साथ मूसल दो चार हाँथ करने थे | डायलॉग के उस हिस्से पर जब वह पहुंचा जहां उसे कहना था कौन माँ भगवती ?कहाँ है माँ भगवती ? माँ भगवती को हर रोज मैं मूसल से कूटती हूँ | "तब जोश में होने के कारण वह डायलॉग के कुछ शब्द भूल गया | उन शब्दों की जगह जो शब्द उसकी जबान पर सहज रूप से आ गए वही मुंह से निकलने लगे | रमाकांत जी  जानते थे कि आगे क्या होना है | इसलिए वे पीछे गिरे हुए मूसल को उठाकर घसीटे को देने आ गए | छह फुटा घसीटा लम्बे काले कुर्ते ,काली तहमद ,काली ओढ़नी और सन से रँगे काले बालों में बहुत भयानक लग रहा था | वैसे भी वह मर्द था उसके मन में आया औरत कितनी भी बहादुर हो औरत ही तो है मैं ताड़का न होकर ताड़कासुर बनूँगां | तख़्त पर से वह चिल्लाया कहाँ है भगवन्ती ? कौन है भगवन्ती ? मैं हर रोज भगवन्ती को मूसल से कूटता हूँ | रमाकांत ने पीछे से इशारा कर उससे मूसल लेने को कहा ताकि वह जमीन पर चार छह बार मूसल मार कर इस डायलॉग को फिर दोहरावे | कुंजरपुर के सभी उपस्थित दर्शक जिनमें स्त्रियां ही अधिक थीं घसीटे का भयानक रूप देखकर भयभीत हो उठीं पर इसी बीच एक घटना घट गयी | भगवंतिया नीचे से उठकर बड़ी तेजी के साथ औरतों के बीच से भगती हुयी स्टेज पर चढ़ गयी ,उसके पीछे तीनों बच्चे मूंगफलियों के दानें मुंह में डालते और छिलके फैलाते स्टेज के पास आ गए | मूसल हाँथ में लेकर घसीटे ने फिर दोहराया ,"कौन है भगवंतिया? भगवंतियाँ ने झपट कर उसका मूसल छीन लिया बोली दहिजार  मैं हूँ भगवंतिया ,तेरे बच्चों की माँ | तू मुझे ही मूसल से मारेगा जरूरत पडी तो मैं दो एक मूसल तेरी पीठ पर मारकर तेरी अकड़ निकाल दूंगीं | कामचोर बच्चों को खिला नहीं सकता ,ताड़ी पीकर पड़ा रहता है | ताड़का बनने चला है | फिर उसने मुनि विश्वामित्र और श्री राम और लक्ष्मण को प्रणाम किया और कहा महाराज आप और बड़े राक्षसों का वध करिये कुंजरपुर की इस ताड़का के लिए भगवंतिया ही काफी है | अपनी पियक्कड़ी में माँ भगवती को भगवंतिया कहकर पुकारता है | मैं अपना अपमान बर्दाश्त कर लूंगीं पर माँ भगवती का अपमान कतई बर्दाश्त नहीं करूँगीं | फिर उसने घसीटे को हाँथ से पकड़कर परदे के पीछे ले जाने के लिए खींचा और कहा चल दफा हो ताड़का मर गयी | अब मर्द बनना सीख इतना कहकर सूत जी बोले अरे बेटा कुछ झपकी सी आ रही है रामगुलमवा से बोल कि एक ठो प्याली गहरी चाय की बना लावै ,कल शाम को कथा का सूत्र आगे बढ़ाऊंगा | और एक -एक प्याला चाय पीकर मेरे घर की वो गप्प गोष्ठी समाप्त हुयी | | तभी बाहर से गाड़ी रुकने की आवाज आयी और मैं जान गया कि गृहणियां लीला देखकर अपने घर आ पहुँची हैं | श्री राम जी से मन ही मन प्रार्थना की कि वे मुझे रात्रि शयन में ताड़का दर्शन से बचावें| 

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