चरण अलक्तक में झलकी कबीर की लाली
एक जिन्दगी मिली उसे तुमको दे दूँ तो
एक और घर को अन्धियारा तोड़ न जाये
बाँधू बाँह - युग्म में तेरा आतुर यौवन
किसी हीर को रांझा लेकिन छोड़ न जाये
सुन्दरि , तेरा साथ इन्द्र धनु की छाया है
पर कठोर धरती का आतप अधिक सुहाना
मिलन लालसा से भी मोहक होता रंगिणि
बंध्या धरती पर नवीन अंकुर उपजाना
आज न तुम तक पहुँच रुकेगी जीवन राहें
आज व्यथा के द्वार कर्म को रुकना होगा
आत्म - लयी जड़ प्रणय लालसा को करुणा के
मुक्त गगन में आज प्रिये झुकना ही होगा
अधर निमन्त्रण स्वीकारुँ पर और कहीं विष
रूप - सुधा में शोषण - उरग निचोड़ न जाये
एक जिन्दगी ---------------------
कच्ची तरुणाई नें हरदम मुझे सिखाया
प्रिया - प्यार ही जीवन का अन्तिम दर्शन है
अधर - मिलन ही प्रणय कल्पना की परिणिति है
निशा राग ही धरती का मुख्याकर्षण है
पर यौवन का ज्वार सिमट जब लगा किनारे
तब विवेक की तल - दर्शी शुचिता मुस्काई
प्यार मुक्ति है निजता के बन्धन से जाना
'मा निषाद 'की पंक्ति उभर कर मन में आयी
फिर अभाव का बधिक मिलन के विहग युगुल को
आतुर क्षण के बीच तड़पता छोड़ न जाये
एक जिन्दगी ------------------------------
शुभे तुम्हारा प्यार जगत का प्यार बन गया
हर मुख की मुस्कान तुम्हारी ही छाया है
राग तुम्हारा विलय हो गया मानवता में
विश्व वेदना में मैनें तुमको पाया है
चरण अलक्तक में झलकी कबीर की लाली
मांग लालिमा मानवता का क्षितिज बन गयी
दसन - दीप्ति में दीन हीन शिशुता की झाँकी
मधु कटाक्ष से सुमुखि गरल की होड़ ठन गयी
स्वर्ण जवानी किसी विवश बाला की असमय
विभव -अन्ध फिर कोई मद्यप तोड़ न जाये ----
सजनि देह का धर्म महत है मैनें माना
पूर्ण मिलन ही पूर्ण विसर्जन स्वत्व त्याग है
पर ऐसा संसार कभी क्या बन पायेगा
जहां कर्म है , श्रमिक धर्म है , क्षमा राग है ?
दो बाहें लग जायें वही मग निर्मित करनें
जिस पर चल कर कल जनयुग नें आना होगा
स्वस्थ प्यार की पौद न कीड़े खा पायेंगें
विपुला धरती को ही स्वर्ग बनाना होगा
ताकि किसी दमयन्ती को कोई छलिया नल
वन -पर्वत के बीच कहीं फिर छोड़ न जाये
एक जिन्दगी --------------------------------
एक और -------------------------------------
एक जिन्दगी मिली उसे तुमको दे दूँ तो
एक और घर को अन्धियारा तोड़ न जाये
बाँधू बाँह - युग्म में तेरा आतुर यौवन
किसी हीर को रांझा लेकिन छोड़ न जाये
सुन्दरि , तेरा साथ इन्द्र धनु की छाया है
पर कठोर धरती का आतप अधिक सुहाना
मिलन लालसा से भी मोहक होता रंगिणि
बंध्या धरती पर नवीन अंकुर उपजाना
आज न तुम तक पहुँच रुकेगी जीवन राहें
आज व्यथा के द्वार कर्म को रुकना होगा
आत्म - लयी जड़ प्रणय लालसा को करुणा के
मुक्त गगन में आज प्रिये झुकना ही होगा
अधर निमन्त्रण स्वीकारुँ पर और कहीं विष
रूप - सुधा में शोषण - उरग निचोड़ न जाये
एक जिन्दगी ---------------------
कच्ची तरुणाई नें हरदम मुझे सिखाया
प्रिया - प्यार ही जीवन का अन्तिम दर्शन है
अधर - मिलन ही प्रणय कल्पना की परिणिति है
निशा राग ही धरती का मुख्याकर्षण है
पर यौवन का ज्वार सिमट जब लगा किनारे
तब विवेक की तल - दर्शी शुचिता मुस्काई
प्यार मुक्ति है निजता के बन्धन से जाना
'मा निषाद 'की पंक्ति उभर कर मन में आयी
फिर अभाव का बधिक मिलन के विहग युगुल को
आतुर क्षण के बीच तड़पता छोड़ न जाये
एक जिन्दगी ------------------------------
शुभे तुम्हारा प्यार जगत का प्यार बन गया
हर मुख की मुस्कान तुम्हारी ही छाया है
राग तुम्हारा विलय हो गया मानवता में
विश्व वेदना में मैनें तुमको पाया है
चरण अलक्तक में झलकी कबीर की लाली
मांग लालिमा मानवता का क्षितिज बन गयी
दसन - दीप्ति में दीन हीन शिशुता की झाँकी
मधु कटाक्ष से सुमुखि गरल की होड़ ठन गयी
स्वर्ण जवानी किसी विवश बाला की असमय
विभव -अन्ध फिर कोई मद्यप तोड़ न जाये ----
सजनि देह का धर्म महत है मैनें माना
पूर्ण मिलन ही पूर्ण विसर्जन स्वत्व त्याग है
पर ऐसा संसार कभी क्या बन पायेगा
जहां कर्म है , श्रमिक धर्म है , क्षमा राग है ?
दो बाहें लग जायें वही मग निर्मित करनें
जिस पर चल कर कल जनयुग नें आना होगा
स्वस्थ प्यार की पौद न कीड़े खा पायेंगें
विपुला धरती को ही स्वर्ग बनाना होगा
ताकि किसी दमयन्ती को कोई छलिया नल
वन -पर्वत के बीच कहीं फिर छोड़ न जाये
एक जिन्दगी --------------------------------
एक और -------------------------------------