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Article 14

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                                                कुछ इधर की कुछ उधर की

                       सिलिकॉन वैली (अमेरिका )के तकनीशियनों के एक सम्मलेन को सम्बोधित करते  हुये संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति बैरक ओबामा नें कहा कि मानव जाति का भविष्य आपके हाथ में है । विश्व की  सबसे बड़ी आर्थिक व्यवस्था अमरीका इस बात को जानता है कि तकनीकी क्रान्ति के बिना निरन्तर  बढ़ती मानव प्रजाति अपनें आधुनिक जीवन शैली के प्रति मानव को सुरक्षित नहीं कर पायेगी । ऊर्जा की खपत इतनें भयावह रूप में बढ़ती जा रही है कि उसकी पूर्ति धरती पर उपलब्ध खनिज साधनों,जल स्रोतों ,आदि से असम्भव दीख पड़ती है । साथ ही साथ ऊर्जा की आधुनिक उपज विनिर्माण और वितरण प्रणाली प्रदूषण की उस चेतावनी को साकार करती दिखायी पड़ती है जिसमें कहा गया है मानव प्रजाति इस शताब्दी के अंत तक युद्ध से नहीं वरन अपनी जीवन शैली के अत्याधुनिक अप्राकृतिक संसाधनों के कारण विनिष्ट होने की कगार पर है । आधुनिक भारत तकनीशियनों की फ़ौज खड़ी कर रहा है उनमें से  अधिकाँश  तो कचरा मात्र हैं पर कुछ प्रतिशत वैज्ञानिक प्रतिभा के धनी हैं और तकनीक की नयी दिशाएँ तलाश रहे हैं । इस समय हमारे सामनें दो मार्ग हैं ।  एक मार्ग जो चिर परिचित है वह है पश्चिमी सभ्यता के विकास  का मार्ग, विकास का यही क्रम चीन में राज्यसत्ता पर काबिज साम्यवादी पार्टी के द्वारा स्वीकार किया गया है । वहाँ डिमोक्रेसी नहीं है पर विकास की मंजिलें वही है जो पश्चिमी दुनिया नें अपनी प्रगति यात्रा में निर्धारित की हैं । एक दूसरा मार्ग जो अभी तक शंकाओं से घिरा हुआ है वह है भारत की चिरंजीवी सांस्कृतिक परम्परा को साथ लेकर नयी तकनीक के साथ जोड़ना और ऊर्जा  के प्राकृतिक साधनों का प्रकृति को विनम्र प्रणाम करते हुए उचित दोहन करना । ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की समस्या अपनें भयानक जबड़े खोल कर प्रदूषित   वायु और संक्रमित भोजन के द्वारा मानव जाति को    निगलनें को खड़ी है । ऐसे में ऊर्जा के अक्षय श्रोत हमें तलाशनें होंगें । जीवन का सारा खेल ऋतु रथ पर सवार सूर्य देव की कृपा पर निर्भर है । हमें अपनी आधुनिक जीवन शैली के लिए भी उन्हीं की शरण जाना पड़ेगा । पवन देव कभी अपनें  कल्याणकारी और कभी अपनें रौद्र रूप में भारत की सांस्कृतिक जीवन शैली से अभिन्न रूप से जुड़े रहे हैं । हमें पवन और पवनपुत्र से अपनें गहरे सम्बन्धों के बल पर ऊर्जा प्राप्त करनी होगी । लद्दाख,नेफा पूर्वोत्तर राज्यों ,केरला ,पश्चिमी घाट और विंध्य की पहाड़ियों में कुछ ऐसे प्राकृतिक वनस्पति जगत के अजूबे हैं जिनका रसीकरण ,परिमार्जन और परिशोधन हमें ऊर्जा क्षेत्रों की तरफ नये रास्तों को खोल सकता है । विशाल हिन्द महासागर और उसके साथ जुड़े अन्य अक्षय जल श्रोत की तरंगें साधना पूर्वक नियन्त्रित करके ऊर्जा की नयी राहें सम्भावित कर सकती है ।यूरेनियम टू हमारी धरती पर विशिष्टता : भारत में विपुल मात्रा में नहीं है पर हमारे देश में थोरियम का चमत्कृत करने वाला भण्डार है । भारत के तकनीशियनों को अणु ऊर्जा की एक ऐसी शान्तिमयी विकास प्रणाली विकसित करनी है जो रेडियो धर्मिता से मुक्त होकर सहज रूप में हर ग्राम और ग्रामांचल में पहुँचायी जा सके अब इस सबके लिये हमें शिक्षा के नये प्रतिमानों की तलाश करनी होगी । कला ,विज्ञान ,वाणिज्य ,तकनीक ,प्रबन्धन ,अभियन्त्रकीय और वाणिज्यिक विभागों को बिल्कुल अलग -थलग रखकर हम शिक्षा के समग्र रूप को अंग  -भंग कर रहे हैं । हमें इंडिसीप्लिन और इंट्राडिसप्लिन पाठ्य क्रमों का समावेश करना होगा । हमारा इतिहास और हमारी संस्कृति इस प्रकार की शिक्षा में बाधा न बनकर एक शक्तिशाली उत्तेजक का काम कर सकती है । आधुनिक शिक्षा विशेषकर तकनीकी क्षेत्र में तकनीक का ज्ञान तो देती है पर सांस्कृतिक रूप से वह अधिकाँश तकनीकी विद्यार्थियों को अपंग बना देती है अभी एलोपैथी में M.D.करने वाले एक विद्यार्थी नें अपने संस्था के निदेशक के साथ जो कि एक मुस्लिम हैं -अजमेर शरीफ में जाकर एक चादर चढ़ाई  उनकी क्या मन्नत थी मैं नहीं जानता पर वे मुझे जब वहां से कुछ पाया हुआ मिष्ठान लेकर मुझ से मिलनें आये तो मैनें उनसे पूछा कि अजमेर शरीफ का भारत की किस महान शक्सियत और दार्शनिक विचारधारा से सम्बन्ध है तो उन्होंने कहा कि वे यह सब नहीं जानते हैं । उन्हें तो यह मालूम है कि  उनके निदेशक नें उनसे मन्नत पूरी करनें के लिये चादर चढाने की बात की और उन्होंनें उनके आदेश का पालन किया । मैं यह सब लिखकर केवल यह बताना चाहता हूँ कि एक डाक्टर या इन्जीनियर यह सब करकर  यह नहीं जानता कि अजमेर शरीफ या वाराणसी या चित्रकूट या रामेश्वरम का भारत की सांस्कृतिक परम्परा में क्या स्थान है । और क्यों उसे यह स्थान मिला है तो मैं उस डाक्टर या इन्जीनियर की उसकी सारी कुशलता के बावजूद आदर्श शिक्षा से वंचित रहनें का ही दोषी पाऊँगा । शायद दोष  उनका नहीं है वरन हमारी शिक्षा प्रणाली का है  कहा जा रहा है कि वर्तमान शिक्षा मन्त्री   जी इस दिशा में विशेषज्ञों की राय लेकर कुछ ठोस कदम उठा रहीं हैं । एकाध वर्ष और इन्तजार करती हुयी इस दिशा में कोई सन्तुलित विवेचना की जा सकती है । काफी जोर -शोर से यह प्रचारित हो रहा है कि आने वाले कुछ वर्षों में भारतवर्ष में सौ के आस -पास स्मार्ट सिटी विकसित किये जायेंगें ।  वाराणसी से साँसद बनने वाले प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी को जापान के क्योटो शहर जैसा बना  देने का संकल्प ठाने हैं । मैं न तो जापान गया हूँ न चीन । केवटो ,शंघाई ,या बेजिंग की सुंन्दरता और बनावट का मुझे कोई प्रत्यक्ष अनुभव नहीं है । मैं योरोप और अमरीका भी नहीं गया हूँ और  इसलिये लन्दन ,न्यूयार्क ,शिकागो या वाशिंगटन की चमत्कृत कर  देने वाली निर्माण शैली ,साज -सज्जा ,और सुविधा संसाधनों का मुझे कोई प्रत्यक्ष अनुभव नहीं है पर मैं समझता हूँ कि भारत  लगभग 98 -99  प्रतिशत नर -नारी मेरी ही तरह से इन महानगरों की परी कहानियों से प्रत्यक्ष रूप से परिचित नहीं होंगें । पर चूँकि मैंने बम्बई ,दिल्ली, कलकत्ता, मद्रासऔर   हैदराबाद को देख रखा है इसलिये मैं जानता हूँ कि इन सभी महानगरों की एक काली छाया भी है जो नरक का आभाष कराती है । कुछ भाग ऐश्वर्य के उजाले में चमक रहे हैं तो काफी कुछ भाग जीवन की दुखदायी यंत्रणाओं से विंधे पड़े हैं । अब जो 100 स्मार्ट शहर विकसित होने जा रहे हैं उन्हें किस मॉडल पर विकसित किया जायेगा यह मैं नहीं जानता पर मैं इतना जानता हूँ जो कुछ मैंने पढ़ा है उसमें सिन्ध नदी घाटी सभ्यता या सरस्वती नदी घाटी सभ्यता में भी मकानों के अन्दर अच्छे स्नानागार थे और बाहर पानी निकासी का बिना किसी त्रुटि के सर्वोत्तम प्रबन्ध था । हमें भूलना नहीं चाहिए कि भारत की आबादी हर वर्ष करोडो का नया आंकड़ा अपनें में जोड़ लेती है और जो भी स्मार्ट सिटी विकसित किये जाँय उनमें कम से कम दो पीढ़ी आगे तक की विकास व्यवस्था समायोजित करनी पड़ेगी । कई बार मुझे लगता है कहीं मेरा चिन्तन प्रतिगामी तो नहीं हो रहा है क्योंकि मेरी मान्यता है यदि 10 गाँव के क्लस्टर को एक स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जाय तो कहीं अधिक सुचारू स्वास्थ्यवर्धक और सुविधा संपन्न योजना चरितार्थ की जा सकती है । भारत के कुछ छोटे शहरों में भी मेरा जाना हुआ है । एक मित्र की पुत्री की विवाह बेला में रायबरेली जाना हुआ तो मैंने पाया कि वहाँ घूमनें लायक कोई पार्क ही नहीं है सुनने में आया कोई इन्दिरा उद्यान है और वह भी उपेक्षित पड़ा है । इस शहर के हर मोहल्ले में पार्क है पर उनकी बंजर नँगी जमीन में कूड़े करकट के ढेर लगे हैं और टूटी -फूटी वदसूरत चहर दीवारी मन में घृणा का भाव जगा देती है ।
                                                   इन्टरनेट के अविष्कार  नें विश्व की राजनैतिक, भूगौलिक नैतिक और धार्मिक सभी मान्यताओं में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया है । शहरी घरों में शायद ही कोई ऐसा परिवार हो जो मोबाइल या स्मार्ट फोन न रख रहा हो । सोशल मीडिया के न जाने कितने साधन शिक्षित -अशिक्षित सभी नागरिकों के लिये मुहैय्या हैं और जहाँ नहीं हैं वहाँ मुहैय्या कराये जायेंगें । कहा यह जा रहा है कि भारत का हर घर ,हर पँचायत या सामूहिक मन्त्रणागृह इन्टरनेट से जोड़ दिया जायेगा । वैसे भी सोशल मीडिया के कितने ही माध्यम विश्वव्यापी सम्पर्क का सहज ,सुलभ मार्ग खोल चुके हैं । फेसबुक ,ट्वीटर ,यू  ट्यूब ,आदि आदि नयी पीढ़ी के लिये नशा बनकर मानसिक तनाव पैदा कर रहे हैं । हमें देखना होगा जो नयी योजनाएं फलीभूत होती हैं और जो नयी बस्तियाँ संगठित  होकर उजलेपन की ओर बढ़ती हैं उन्हें इन संसाधनों द्वारा और अधिक उजला ही बनाया जाय । इनका दुर्पयोग या कुत्सित अश्लील प्रसारण और नग्न देहावलोकन कहीं अन्तरात्मा में कैन्सर बनकर सम्पूर्ण विनाश की ओर न पहुँचा दे । माइथॉलॉजी और इतिहास नें तथा उत्खनन और पुरातत्व नें न जाने कितनें खण्डहरों और विनिष्ट सभ्यताओं को अतीत के अँधेरों से खोज निकाला ।न जाने कितने शक्तिशाली त्रिलोक विजयी मुण्ड विहीन धड़ रेत की शुष्मता में दबे पाये गये हैं । विकास का पश्चिमी मॉडल 'माटी 'की तराजू पर सर्वथा खरा नहीं उतरता उसकी कंचन चमक में कई जगह खोट के टाँके लगे हैं । समय आ गया है जब भारत सधे क़दमों से उस नये मार्ग की तलाश करे और उस दिशा में संचरण का प्रयास करे जो उसे विश्व के सर्वोत्कृष्ट सांस्कृतिक पायदान में पहुचाने में समर्थ हो । बीता हुआ कल हमारा था ,हमारा वर्तमान फिसलन भरा रहा है पर आने वाला कल शायद फिर से हमारा हो सके इसी दिशा में हमें अपनें सामूहिक प्रयासों को गति शील करना होगा । जय शंकर प्रसाद जी के शब्दों में :-
                                                            " अमृत्य आर्य पुत्र हो
                                                                 बढे चलो ,बढे चलो ।


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