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गतांक से आगे -

                                             अब हुआ ऐसा कि मैं न केवल अध्यापन की द्रष्टि से बल्कि लम्बे समय तक कालेज प्रवक्ता संघ का प्रधान होनें के कारण अपना एक विशिष्ट स्थान बना चुका था | उन दिनों एन. सी. सी. का कप्तान होना भी मुझे औरों से कुछ अलग करता था | एकाध वर्ष के बाद कालेज के समर्थ प्रबन्धक मण्डल नें महिला विभाग को एक स्वतन्त्र महिला कालेज के रूप में परिवर्तित करनें की योजना बनायी | योजना का प्रारूप तैय्यार किया गया | विशाल परिसर था ही | नगर के खाते -पीते घरों की लड़कियों के लिये शहर के मध्य एक सुरक्षित परिसर में अच्छे प्रबन्धक मण्डल की अगुवाई में गर्ल्स कालेज का खुलना रुचिकर लगा | विश्वविद्यालय नें इंस्पेक्शन के बाद महिला विंग को एक स्वतन्त्र कालेज के रूप में स्वीकृति दे दी | अब कालेज में महिला प्राचार्य की आवश्यकता आ पड़ी | संघ का प्रधान होनें के नाते पहले सभी महिला प्रवक्तायें मेरे लिये छोटी बहनें बन चुकी थीं अब उन्हीं में से कइयों नें प्राचार्य पद पर बैठनें के लिये प्रयास शुरू किये | चयन कमेटी में अन्य लोगों के अतिरिक्त कालेज के प्रधान की भी अहम भूमिका होती है और न जानें क्यों उस समय के कालेज के प्रधान शिक्षा संम्बन्धी हर विषय में मेरी राय लिया करते थे | सभी यह मानते थे कि मैं जिसके लिये कह दूंगा प्रधान जी उसी के पक्ष में अपना वजन डाल देंगें | हालांकि सच यह नहीं था | सच यह था कि एक निष्पक्ष और निःस्वार्थ संस्था वफादारी के कारण सारी प्रबन्धकारणीं मुझे आदर की द्रष्टि से देखती थी | प्रधान जी यदि किसी में इंट्रेस्टेड होते थे तो मेरे माध्यम से उसका नाम निकलवाकर अन्य सदस्यों पर अपनी निष्पच्छता जाहिर करते थे और इस प्रकार संस्था की गुणवत्ता के प्रति उनकी शाख बनी हुयी थी | बाहर से आयी एप्लीकेशन्स के अतिरिक्त चार अप्लीकेशन कालेज स्टाफ से भी थीं जिनमें से एक अप्लीकेशन थी डा ० सौदामिनी राकेश की | आगे क्या घटा इस बात को यहीं छोड़कर मात्र इतना ही कह देना काफी होगा कि सौदामिनी जी प्राचार्य का पद नहीं पा सकीं और अंग्रेजी विभाग की डा ० रजनी कपिल को यह मौक़ा मिल गया | संघ के प्रधान होने के नाते मैनें अपनें को इतना तटस्थ कर रखा था कि राकेश जी भी इससे सन्तुष्ट रहे और अब वे मुझसे प्रभात भ्रमण के समय अक्सर मिलकर अपनी घरेलू उलझनों पर भी राय मांगने लगे | इधर कुछ ऐसा हुआ कि प्रधान जी सौदामिनी जी के रवैये से कुछ नाराज हो गये | इसी समय उन्हें एक मौक़ा मिल गया | पंजाब यूनिवर्सिटी नें एक दूसरा सर्कुलर भेजकर स्पष्ट किया कि अंग्रेजी के थर्ड क्लास एम, ए. डिग्री क्लासेज को तभी पढ़ा सकेंगें जबकि उन्हें कम से कम दस वर्ष का अध्यापन अनुभव हो जाय | या वे दुबारा परास्नातक की परीक्षा  देकर 55 प्रतिशत अंक प्राप्त करें या वे एम. फिल. या पी. एच. डी. हों | ग्यारहवीं बारहवीं की क्लासेज कालेज से हटायी जा रहीं थीं | आनर्स और एम. ए. के कोर्सेज शुरू किये जा रहे थे | संघ के प्रधान होनें के नाते प्रबन्धकारणीं के प्रधान एडवोकेट कमल नयन नें मुझे बुलवा भेजा और कहा कि अंग्रेजी डिपार्टमेन्ट से प्रो ० राकेश को हटाना होगा  क्योंकि अभी तक उनका अनुभव केवल आठ वर्ष का ही हुआ है | उन्होंने मुझसे कहा कि मैं राकेश जी को यह बात बता दूँ और अध्यापक संघ को भी विश्विद्यालय से आये हुये नये सर्कुलर के नियमों  व शर्तों से परिचित करा दूँ | राकेश जी को मेरे कहनें से  पहले ही इस सबकी जानकारी हो चुकी थी | क्योंकि उनका  और उनकी पत्नी का मैनेजमेन्ट के एक वर्ग पर काफी प्रभाव था | एक दिन राकेश जी अपनी पत्नी के साथ मेरे घर पर आये | उन्होंने अभी तक अपना मकान नहीं बनवाया था पर जिस मुहल्ले में मैं किराये के मकान में रहता था उसके पास एक दूसरे मुहल्ले में ही उन्होंने एक नया मकान किराये पर ले रखा था | सौदामिनी मुझे बड़े भाई जैसा सम्मान देती थीं | उन्होंने कहा कि प्रधान जी मेरे से अपनी नाराजगी निकाल रहे हैं और  इसी के कारण आपके मित्र राकेश को हटानें की बात कह रहे हैं | मैनें कहा , "बहन दामिनि फिर क्या किया जाय ? सौदामिनी नें कहा कि उन्होंने अपनें भाई से बात चीत की है | भाई कहते हैं कि उनके एक मित्र डा. रमापति त्रिपाठी केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के डायरेक्टर ( निदेशक ) हैं | डा. त्रिपाठी कहते हैं कि वे राकेश जी को एक वर्ष में पी.एच.डी. की डिग्री दिलवा देंगें | उन्होनें बताया कि राकेश जी हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में एम. ए. हैं  और इसलिये वे तुलनात्मक साहित्य पर शोध कर सकते हैं | मैनें सौदामिनी जी से कहा कि रजिस्ट्रेशन के बाद तीन वर्ष का समय तो थीसिस सबमिट करनें के लिये आवश्यक होता है तब सौदामिनी ने कहा कि डा. त्रिपाठी नें आश्वस्त किया है कि वे यह प्रमाणपत्र देंगें कि राकेश जी उनकी देख रेख में कई वर्षों से तुलनात्मक शोध का कार्य कर रहे हैं | सौदामिनी नें कहा कि राकेश जी कहते हैं कि आप दोनों भाषाओं के अधिकारी विद्वान हैं | यदि आप चाहें तो यह काम पूरा हो सकता है | उन्होनें फिर आदरपूर्ण आवाज में कहा , "बड़े भाई अब निर्णय आपके हाँथ में है | "मैनें राकेश जी की ओर देखकर कहा बोलो कौन सा टापिक लेना चाहोगे ? साहित्य की किस विधा में आपकी रूचि है ? वे बोले आप मेरे से उम्र में भले ही छोटे हों पर ज्ञान में और सीनियारिटी में  बड़े हैं | मैं ठहरा पुलिस का आदमी इधर -उधर करके एम. ए. कर लिया | जो लिखाओगे लिख लूंगा | जो पुस्तकें मगाओगे उन्हें दिल्ली या चण्डीगढ़ से विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों से ला दूंगा | मैं आपके यहाँ सुबह शाम और हर छुट्टी जब चाहें तब बुलायें आता रहूँगा | विधा और टापिक सब आपको ही चुनना है | मैनें सौदामिनी की ओर देखकर कहा , "आप बताइये बहन आपका शोध प्रबन्ध किस विषय पर था ? उन्होंने कहा भैय्या नें हिन्दी के समस्या नाटकों पर काम करवाया था | थोड़ी देर सोचनें के बाद मैनें कहा अच्छा तो राकेश जी आप के लिये यह टापिक कैसा रहेगा , " A Comparative study of Engilish and Hindi problem  plays. "उन्होंने कहा ठीक है | मैनें उन्हें पांच छै पुस्तकों के नाम लिखाये और उनसे कहा कि वे इन पुस्तकों को लाकर मेरे से अगले रविवार को सुबह नौ बजे मिलें | Synopsis तैयार हो जायेगी और उसे लेकर वे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निदेशन डा. रमापति त्रिपाठी से मिल लें | यदि त्रिपाठी इस Synopsis को एप्रूब कर देते हैं तो तीन महीनें के भीतर ही थीसिस तैयार हो जायेगी और अगले सेशन के प्रारंम्भ होनें से पहले ही आपको डॉक्टरेट मिल जायेगी | राकेश जी नें मुझे नमस्ते करके कहा अवस्थी जी मैं जीवन भर आपका आभारी रहूंगां और आर्थिक रूप से आप जो भी मांगेगें मुझे सहर्ष स्वीकार होगा | मैनें कहा सौदामिनी नें मुझे बड़ा भाई कहकर पुकारा है और सदैव बड़े भाई का सम्मान दिया है आप दोनों की यह आदर भावना मेरे प्रति बनी रहे डा. राकेश और डा. सौदामिनी दोनों ही आज से मेरे बृहत परिवार के सदस्य के रूप में स्वीकारे जायेंगें | आगे की घटना को फिर कहीं उचित सन्दर्भ में उल्लखित करनें का सुअवसर मिला तो करूँगां | फिलहाल इतना कहना चाहूँगां कि उस दिन मोबाइल पर जो भी बात -चीत हुयी उसका डाक्टरेट से कोई संम्बन्ध नहीं था | डा. हो जानें के कई वर्ष बाद की यह घटना है और इसका संम्बन्ध राकेश की पन्द्रह वर्षीया पुत्री प्रिया बंसल से जुड़ा है |
( क्रमशः )

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