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Changing Environment By Prof. V. N. Awasthi . ( हिन्दी रूपान्तरण - बदलते परिवेश )

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(Changing Environmen. By Prof. V. N . Awasthi ) ( हिन्दी रूपान्तरण - बदलते  परिवेश )
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                                      लगभग 40 वर्ष हुये होंगें -एकाध कम ज्यादा | मैं उस समय कालेज के एन ० सी ० सी ० आफीसर का कार्यभार भी संम्भाल रहा था | पिछले वर्ष जून में पूना के पास स्थित पुरुन्दर की एन ० सी ० सी ० एकेडमी में मैं दूसरा रिफ्रेशर कोर्स कर आया था | पुरुन्दर की एक पहाड़ी पर दो गोल गुम्बदनुमा उभार दिखायी पड़ते थे | और कुछ मनचले आफीसर उनकी तुलना उन दिनों की चटक मटक वाली सिने अभिनेत्री बेगम पारा के पुष्ट उरोजों से किया करते थे | कड़ी ट्रेनिंग और हास -परिहास के उस माहौल में लगभग सौ आफीसरों के उस ग्रुप में मैनें शायद प्रथम पांच सात में स्थान पाया होगा | प्रशंसा भरी रिपोर्ट के साथ मुझे कप्तान के तीन सितारे लगा लेने का आदेश बटालियन हेड क्वार्टर से आ गया था | एन ० सी ० सी ० की परेड में तीन सितारों से भरे अपनें कन्धे मुझे निराली शक्ति से भर देते थे | उमर की उस दौर में आदर्शों की ओर झुकाव होनें के कारण अर्थ का पूरा महत्व मेरी समझ में नहीं आ सका था | खैर- वह शायद फरवरी का दूसरा सप्ताह था  और शाम के समय हल्की ठंड हो जाती थी | मैं सुबेदार प्रताप सिंह द्वारा करायी जानें वाली परेड को देखकर काफी खुशी महसूस कर रहा था | क्विक मार्च ,थम ,क्विक मार्च फिर थम देखकर मैं हर्षित था और आश्वस्त होता जा रहा था कि वीर भूमि हरियाणा की तरुणायी राष्ट्र की रक्षा में सर्वथा समर्थ है तभी मैनें देखा कि साइकिल पर एक सत्ताइस अठ्ठाइस वर्ष का नवयुवक कालेज के पोर्च के सामनें आकर रुका उसनें चपरासी से कुछ पूछा और रामदिया मेरे पास चलकर आ गया और बताया कि राजकीय महाविद्यालय से आने वाले एक प्रोफ़ेसर साहब आपसे मिलना चाहते हैं | मैं परेड से थोड़ा दूर हटकर कालेज के लान में एक  कोनें में बनी बेंच के सामनें जा खड़ा हुआ रामदिया को यह बताकर कि उन्हें मेरे पास भेज दे | संकोची स्वभाव का वह नवयुवक प्रोफ़ेसर मेरे पास आया और नमस्कार के बजाय उसनें मेरे पाँव छूने की कोशिश की और मैनें उसकी पीठ थपथपाकर उसे ऐसा करने से रोक दिया और उसको बेंच पर बैठने को कहा | बेन्च पर बैठते हुये मैनें उसे बताया कि मैं ही अवस्थी हूँ जिनसे आप मिलना चाहते हैं |
                         'जी  'मेरा नाम दुलीचन्द्र है | मैं राजकीय महाविद्वालय में हिन्दी का प्रवक्ता हूँ | 'बहुत खुशी हुयी आप से मिलकर ,वत्स तो नहीं कहूंगा पर अनुज को वत्स कहना भी शायद गलत न हो | आप हिन्दी के प्रोफ़ेसर हैं अधिक ठीक समझते होंगें | 'मुझे प्रो ० डा ० रामबचन नें आपके पास भेजा है | मैं उनके निर्देशन में हिन्दी में शोध कार्य कर रहा हूँ | 'पर भाई मैं तो अंग्रेजी का प्रोफ़ेसर हूँ | मेरे पास आदरणीय डा ० साहब नें आपको कैसे भेजा | 'जी  'आपसे शायद वे कभी मिले हैं | आपकी हिन्दी की कवितायें उन्होंने पढ़ी हैं | साहित्य पर भी कुछ चर्चा हुयी है | वे आपसे काफी प्रभावित हैं |
                        भाई दुलीचन्द्र यह ठीक है कि जब डा ० हजारी प्रसाद द्विवेदी को उपकुलपति ए ० सी ० जोशी स्वयं शान्ति निकेतन जाकर पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष के रूप में आमन्त्रित कर ले आये तो मैनें सोचा क्यों न हिन्दी में भी एम ० ए ० कर डालूं | अधिक कुछ पढ़ा लिखा तो नहीं पर प्रतिशत अच्छा खासा पा गया और शायद यही कारण है कि विश्वविद्यालय के हिन्दी प्राध्यापक भी मुझे साहित्य चर्चा के योग्य समझ बैठे | वैसे ,बाई द वे , आप के शोध का विषय क्या है जी ,  'विषय है गान्धी विषयक महाकाव्यों का काव्यात्मक मूल्यांकन | ''आप इस दिशा में मुझे बहुत बड़ी मदद दे सकते हैं | मैं आपका सदैव आभारी रहूँगा | '
                          अच्छा भाई , 'आप अगले रविवार को घर पर आ जाईयेगा प्रातः दस बजे के आस -पास | उस समय मैं अखबार आदि पढ़कर कुछ फुरसत में हूँगा | तब चर्चा करूँगां | जो  कुछ लिखा हो लेते आना | वैसे रोहतक में आपका मकान तो होगा ही | '
                         जी , 'कहाँ मैं तो रोहत गाँव का हूँ | आर्य नगर में दो कमरे का एक मकान किराये पर ले रखा है |
                       अरे, 'दुली भाई तू भी मेरी ही तरह है | मैं बड़े बाजार में किराये के एक मकान में रह रहा हूँ |
                       जी , बड़े बाजार में किस जगह ?
                       मशहूर रेवड़ी की दुकान के बारे में जानते हो ?
                       हाँ हाँ ,वही गुलाब रेवड़ी वाले लाला शिवनाथ की दुकान |                        
                       ठीक उसी के सामनें आर्या स्कूल है | गेट से घुसते ही दांयीं ओर सीढ़ियां हैं | ऊपर चढ़कर आ जाना |
                     दुलीचन्द्र नें मेरे पैर छुये और लान से बाहर निकलकर साइकिल पर बैठकर चला गया |
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                                               रविवार का दिन आया | ठीक दस बजकर पांच मिनट पर सीढ़ियों पर पदचाप की आवाज सुनायी पडी |
                                             जान गया कि दुलीचन्द्र ही है , कहा आओ बैठो | बड़े कमरे में लकड़ी का पार्टीशन लगाकर बैठका बना रखा था | बेंत से बुना  लकड़ी का एक सोफा   दो तीन कुर्सियां और एक मेज पडी थी | दुलीचन्द्र एक कुर्सी पर बैठ गया और मैनें उसके बगल वाली कुर्सी संभ्भाली | उसके हाँथ में एक फ़ाइल थी जिसमें बहुत सारे पन्नें शोध सामिग्री को समेटे संजोये हुये थे | मैनें खोलकर प्रारम्भिक पेजों पर निगाह डाली | मोती जैसे अक्षर ,हस्तलिपि नें मुझपर गहरा असर डाला | मुझे अपनी हस्तलिपि का भोंडापन भीतरी चोंट पहुंचानें लगा | काश : मेरे भी अक्षर इतने सुन्दर बन पाते | प्रारम्भिक प्रस्तावना में गांधी जी के महत्व और उनके ऊपर होने वाले काव्य श्रष्टि की चर्चा थी | फिर उसमें महाकाव्य की हिन्दी साहित्य में स्वीकृति अवधारणाओं का उल्लेख था | यदा -कदा कुछ अंग्रेजी के शब्द और एक आध सम्बन्धित वाक्य भी दिया गया था | मुझे उनमें एकाध त्रुटि दिखायी पड़ी | जान गया अनुज दुलीचन्द्र का अंग्रेजी ज्ञान आधिकारिक नहीं है | साथ ही लगा कि यूनानी (ग्रीस ) ,लैटिन (रोम ),और अंग्रेजी साहित्य के महाकाव्यों का पर्याप्त उल्लेख नहीं हुआ है | मैनें कुछ सुझाव दिये | कुछ पंक्तियाँ लिखायीं और कुछ रिफ्रेंसेज नोट करवाये | अनुज दुलीचन्द्र नें और अधिक समय की मांग की | मैनेँ अपनें पढ़ने, लिखनें और महाविद्यालय की उलट -पलट में फंसे रहनें की बात कही पर दुली पैरों पर हाँथ रखकर बैठ गया | क्या करता इतनी निश्च्छल गुरुभक्ति के आगे झुकना ही पड़ा | मैनें कहा शाम को आ सकोगे |
                  जी ,जब कहें ,जिस समय बुलायें ,आ जाऊंगाँ |
                  अरे भाई ,परिवार में कौन कौन है ?
                  जी , मेरे चार लड़कियां हैं |
                  कोई लड़का है कि नहीं |
                  जी , नहीं |
                   पत्नी कितनी पढ़ी लिखी है ?
                  जी ,आठवीं पास है |
                                                            उसका भाई तो एन ० टी ० पी  सी ० में है और बाप भी फ़ौज में सूबेदार था पर वह और उसकी दोनों बहिनें आठवीं तक ही पढ़ पायीं ,फिर शादी कर दी गयी | मैं भी मैट्रिक पास करते ही शादी में बाँध दिया गया था | दो लडकियां एम ० ए ० करनें तक हो चुकी थीं | दो नौकरी लगनें के बाद हुयीं | क्या शुरू में ही लेक्चरर की नौकरी मिल गयी थी |
                       नहीं पहले प्रेप साइंस करके टेलीफोन डिपार्टमेंट में लगा था | फिर धीरे धीरे प्राइवेट तौर पर एम ० ए ० किया | प्रतिशत अच्छा रहा | रिजर्वेशन का फायदा मिला और मैं हरियाणा एजूकेशन सर्विस में सेलेक्ट कर लिया गया |
                               'अच्छा तो नहीं लगता पर क्या बतायेंगें आप किस बिरादरी से हैं ?
                               'जी मैं नाई ठाकुर हूँ | 'लोग मेरी जाति का यह कहकर मजाक उड़ाते हैं 'सब पच्छिन में कौवा ,सब जातिन में नौवा | '
                                 मैनें कहा , 'दुली यह तो तेरी जाति की तारीफ़ हुयी | इसमें मजाक कहाँ | दुली हंसा  बोला , "इसमें होशियारी नहीं बल्कि चालाकी और काइंयेपन की ओर इशारा है |
                                     सिर्फ दुलीचन्द्र लिखते हो या कोई सर नेम भी लगाते हो |
                                     'जी ,पहले तो सिर्फ दुलीचन्द्र ही लिखता था पर अब दुलीचन्द्र ठाकुर लिखनें लगा हूँ | न जानें क्यों  मन को अच्छा लगता है | मैनें कहा अरे भाई , 'सोना तो सोना ही रहता है ,उस पर कोई भी ठप्पा लगा दो |
                              वह हंस पड़ा निर्मल व छल रहित हंसी |
                              हम दोनों -एक प्रौढ़ और एक तरुण -गांधी जी के ऊपर विरचित काव्य आस्वादन के सहभागी बन गये | दुलीचन्द्र नें मेरे द्वारा दिये गये सुझावों और  त्रुटि परिमार्जन की लाल लकीरों से डा ० राम बचन को परिचय कराया और उन्होनें आश्वस्त होकर कहा कि अब शोध का कार्य स्तरीय ढंग का होगा | वही तेरे सच्चे निर्देशक हैं | मुझे तो एक औपचारिकता ही निभानी है | लगभग दो वर्ष ठाकुर दुलीचन्द्र मेरे पास आते रहे | शायद ही किसी दिन नागा हुआ हो | इतवार और छुट्टी के दिन घण्टों की बैठक होती | उनके साथ साइकिल पर कभी बड़ी बच्ची कभी मझली कभी तीसरी  और कभी नीकी भी आ जाती | मेरे दो छोटे बच्चों के साथ जो उससे कुछ वर्ष बड़े थे | वे खेला करतीं | कभी -कभी एक साथ दो तीन बच्चियों को बिठा लाता | एक दिन साइकिल के कैरियर पर गोद में छोटी बच्ची को लिये उसकी पत्नी भी मेरी गृहणीं से मिलनें आ गयी | यहां मैं यह बात बता दूँ कि मैं भी मैट्रिक के बाद ही ब्याह दिया गया था | यद्यपि मेरी पहली सन्तान महाविद्यालय में प्रवक्ता लगनें के बाद ही जन्मी थी | हमारा मेल जोल इतना बढ़ा कि हम यह भूल गये कि हमारे जातीय विशेषण भिन्न -भिन्न हैं | वह मेरे लिये दुली था और उसकी पत्नी सीमा की मां मेरी अनुज बधू | हमारे सर नेम अवस्थी और ठाकुर गड्ड -बड्ड हो गये | महाविद्यालय में मेरे एक अन्य मित्र थे प्रो ० श्याम लाल वशिष्ठ | वे राजनीति शास्त्र के अधिकारी विद्वान थे | विश्वविद्यालय में वे प्रथम आ रहे थे पर किसी बड़े  नेता के दबाव में उनके कुछ नम्बर कम करवाकर उन्हें सेकेण्ड पोज़ीशन दे दी गयी थी  | उन्होंने केन्द्र सरकार के शिक्षा मन्त्री तक दौड़ -धूप की और आखिरकार उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन हुआ | प्रो ० वशिष्ठ ग्रांड टोटल में बीस नम्बरों से आगे रहे और यूनिवर्सिटी को अपनी मैरिट लिस्ट बदलकर उन्हें प्रथम स्थान देना पड़ा | वशिष्ठ हँसते हँसते कहता था कि अवस्थी और ठाकुर मिलकर 'वशठाकु 'बन जाते हैं तुम दोनों अपनें को वशिष्ठ लिखा करो | एक वशिष्ठ ही सबकी नाक में दम किये है | हम तीन हो जायेंगें | त्रिलोक में हमारा डंका बज उठेगा | दुली की थिसिस परीक्षकों की प्रशंसा भरी संस्तुति के साथ विश्वविद्यालय आ गयी और एक भव्य समारोह में उसे कुछ और सफल शोधार्थियों के साथ डाक्ट्रेट प्रदान कर दी गयी | लिखायी -पढ़ायी सम्बन्धी हमारी मुलाकातें अब आवश्यक नहीं रहीं | पर दिन पर दिन बच्चे बड़े हो रहे थे | अपनी सीमित आमदनी से किराया भरना हमें अखरनें लगा | फिर बढ़ते बच्चों के लिये अधिक स्थान की आवश्यकता भी थी | अब हमारा सम्बन्ध जीवन के और गहरे मसलों से जुड़ने लगा | मैनें कहा , 'दुली तेरे अपनें गाँव में अपना मकान तो है ही ,खेत भी होंगें | '
                           उसनें कहा , 'नहीं गुरूजी खेत तो हैं ही नहीं मकान भी गिरने लगा है फिर बड़े भाई के तीन लड़के व दो लडकियां हैं और वे फ़ौज से रिटायर होकर पेन्शन पर आ गए हैं |गाँव में ही रहते हैं | मैनें कहा फिर मकान बनानें के लिये जगह की तलाश कर | दुली जगह की तलाश में जुट गया | दिन बीतते रहे सर्दी के बाद गर्मी और फिर छोटी मोटी बरसात मुझे ऐसा लगा कि हर वर्ष हरियाणा में बरसात की ऋतु छोटी होती जा रही है | जब मैं शुरू में कालेज में आया था तो कई -कई दिन की झड़ियां लगती थीं पर अब तो सिर्फ रिमझिम और अधिक से अधिक कुछ घण्टों की रिमझिम के बाद बादलों का नितान्त पलायन | नहरी सिंचाई का क्षेत्र बढ़ा तो लगता है प्रकृति नाराज हो रही है | शायद बहुत तेजी से बढ़ते हुये औद्योगकीयकरण के कारण  आनें वाले वर्षों में न केवल हरियाणा या भारत बल्कि सारे विश्व के आगे क्लाइमेट चेन्ज की समस्या मुंह बाकर खड़ी हो जायेगी |
                          भारत का राजनीतिक परिद्रश्य बड़ी तेजी से बदल रहा था | इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जजमेन्ट ने इन्दिरा गांधी के लोक सभा चुनाव की बैधता पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया | इन्दिरा जी के छोटे पुत्र संजय गान्धी इस समय अपनी शक्ति के शिखर पर थे | महाविद्यालय के अध्यापक कक्ष में खाली घण्टियों में बैठे प्राध्यापक बन्धु आपस में नोंक -झोंक करते रहते और लगभग सभी यह स्वीकार कर रहे थे कि संजय गांधी संवैधानिक अधिकार न होनें पर भी देश की सत्ता के शीर्ष संचालक हैं और उनकी माँ उनके गलत -सही उनके सभी फैसलों का साथ दे रही हैं | और फिर एक दिन इमरजेन्सी ( आपातकाल ) की घोषणां कर दी गयी | विरोध करने वाले सभी बड़े नेता सलाखों के पीछे डाल दिये गये | परिवार नियोजन ,अवैध निर्माणों का तहस -नहस , प्रेस की आजादी का हनन और  तानाशाही ढंग से सत्ता संचालन का दौर शुरू हुआ | यों परिवार नियोजन ,हम सभी जानते हैं राष्ट्रीय हित वाला बहुत अच्छा कदम है पर पशुओं की तरह घेरकर परिवार नियोजन केन्द्रों पर अनिच्छुक पुरुषों और महिलाओं को बलि का बकरा बनाया जाना तो सर्वथा अनुचित ही कहा जायेगा | अनुशासन अपनें में सराहनीय है पर अनुशासन के नाम पर डर और डण्डे का राज्य तो बिल्कुल ही अनुचित है | मुझे याद  है कि मैं महाविद्यालय से किराये के घर की ओर आता तो रास्ते में पड़ने वाले दुर्गा मन्दिर से हिसार रोड को जाने वाली सड़क के दोनों किनारों पर हजारों लोग पंक्तिवद्ध खड़े होते थे और उनके आगे लाठियां या बन्दूक लिये पुलिस कर्मी टहलते | ऐसा इसलिये किया जाता था कि शासक गण यह समझें कि जनता उनके स्वागत में खड़ी है जबकि असलियत यह थी कि लोग उनका मुंह भी नहीं देखना चाहते थे पर उन्हें सड़क पार करके घर जानें ही नहीं दिया जाता था जब तक वहां से शासकों और चाटुकारों का काफिला गुजर न जाये | शायद आदरणीयां इन्दिरा जी को इन बातों का पता ही नहीं था | उनके आस -पास के लोग उन्हें सच्चायी से अवगत नहीं करा रहे थे और वे समझती थीं कि आजाद भारत के पहले प्रधानमन्त्री प ० जवाहर लाल नेहरू का जादुई करिश्मा उनकी हर नीति को सफल बना देगा | उनका यह भ्रम तब टूटा जब आपातकाल समाप्ति के बाद कांग्रेस आम चुनाव में सत्ता खो बैठी | वे स्वयं भी रायबरेली संसदीय चुनाव  क्षेत्र से राजनारायण सिंह से चुनाव हार गयीं | यदि इमरजेन्सी लागू न की गयी होती तो इस पराजय की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी | यह दूसरी बात है कि बाद में इन्दिरा जी नें भारत की जनता से माफी माँगी और की गयी गल्तियों पर अफसोस जाहिर किया | नेहरू परिवार के प्रति अपार श्रद्धा रखने वाली भारतीय जनता नें उन्हें न केवल क्षमा कर दिया बल्कि कांग्रेस पार्टी को पुनः सत्ता में वापस भेजा | अग्नि परीक्षा से और भी निखर इन्दिरा जी सबसे सशक्त प्रधान मन्त्री के रूप में निखर कर आयीं | इधर इमरजेन्सी से हम बहुतों को प्रकारान्तर में काफी कुछ फायदा भी हुआ | आपातकाल की पायी हुयी शक्तियों के आधार पर हरियाणा सरकार नें रोहतक नगर के इम्प्रूवमेन्ट ट्रस्ट को शहर की आस -पास की भूमि का अधिग्रहण अधिकार दे दिया | कोर्ट कचहरी तो हो ही नहीं सकती थी इसलिये मुआवजे के रूप में एक सीमित राशि ही दी गयी | रोहतक की राजनीति में सफल पारी खेलने वाले और कई बार मन्त्री पद की ऊंचाईयां छूने वाले लाला श्री कृष्ण उन दिनों इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के चेयरमैन थे | उन्होंने गोकरण तीर्थ व सरोवर के आस -पास राय हरनन्द राय की तीस एकड़ जमीन अधिग्रहित कर ली | यह भूमि उनके निवास स्थान बावरा मुहल्ला के नजदीक ही थी और इसे वे एक कालोनी के रूप में विकसित करना चाह रहे थे | पास ही में वे इन्दिरा कलोनी पहले ही बसा चुके थे | अब बारी थी नेहरू कालोनी बसानें की | उन्होंने प्लाट काट दिये और मध्यम वर्ग को ध्यान में रखते हुये कम कीमती दरों पर प्लाटों का आवंटन शुरू किया | अधिकतर प्लाट उनके चहेतों को ही मिलनें थे | उनके चहेतों में कांग्रेस पार्टी के सदस्य तो थे ही उनकी अपनी जाति के नजदीक लोग भी थे | यह एक चान्स की ही बात है कि लाला श्री कृष्ण उन दिनों उसी कालेज मैनेजमेन्ट के प्रधान थे जिसमें मैं अब अंग्रेजी का वरिष्ठ प्रवक्ता था | एक दिन दुली की साइकिल फिर मेरे स्कूल के बगल वाले गलियारे में खड़ी हुयी | वह ऊपर आया और पैर छूकर बोला गुरू जी मौक़ा हाँथ से मत जानें दीजिये | लालजी नें गोकरण के पास प्लाट काटे हैं | कालेज में आपको कौन नहीं जानता | मैनेजमेन्ट पर आपका प्रभाव है | आप चाहें तो हम दोनों को साथ साथ प्लाट मिल सकते हैं | मैनें कहा, 'दुली ठाकुर यह पैसे का मामला है | लोगों नें अब तक सारे प्लाट बुक करा लिये होंगें | पर तुम कहते हो तो मैं कल तुम्हारे साथ इम्प्रूवमेन्ट ट्रस्ट के दफ्तर में चलूँगा | आज तो अब समय नहीं रहा | '
                         'तो मैं कल सुबह दस बजे आ जाऊँ | '
                            हाँ ,'मैं कल छुट्टी की दरख्वास्त दे दूंगा | '
हमारे बच्चे अब बड़े हो रहे थे | सीमा अब चौदह की हो गयी थी और पिंकी लगभग बारह की | मेरे दो लड़के भी किशोर हो चुके थे | इन सबको अब नर -नारी के सामाजिक और शारीरिक भिन्नताओं का अहसास होने लगा था | इधर दुली के घर में निरन्तर संघर्ष हो रहा था क्योंकि उसके कोई बेटा नहीं था | उसके बड़े भाई और उसके बहनोई उसे तंग कर रहे थे कि वह एक सन्तान को और जन्म दे | उसकी पत्नी भी एकाध वर्ष में उस उम्र से गुजरने वाली थी जब सन्तान का होना नामुमकिन सा हो जाता है | मैनें कहा दुली क्या सोच रहा है तू | वह बोला , 'मैं क्या करूँ ? मैं तो यही कहता हूँ कि कहीं फिर लड़की हो गयी तो | मैनें पूछा फिर  तुम्हारे बहनोई ,बड़े भाई और रिश्तेदार क्या कहते हैं ? दुली बोला , 'जीजा जी बहुत गुणीं आदमी हैं | वे कहते हैं कि वे अपने गुरू चटाईनाथ  जी को बुलायेंगें | वे हमारे घर तीन दिन तक रहकर जप करेंगें ताकि  गुरु गोरखनाथ की कृपा से मेरे घर बेटे का जन्म हो | मैं तो शायद फिर भी इन्कार करता पर सीमा की मां टूट रही है | अब बताओ मैं क्या कारु ?
                         मैं असमंजस में पड़ गया | रूढ़ियों से अलग हटकर रिश्ते -नातेदारों की परम्पराओं को ललकार देने की ताकत मुझे दुली के भीतर दिखायी नहीं दी यद्यपि शायद मैं आग्रह करता तो वह एक बार हल्का सा प्रतिरोध कर लेता | कुछ सोचकर मैनें कहा , 'दुली ठाकुर आनें दो गुरु चटाईनाथ को मुझे भी उनके  दर्शन कराना | मैनें कहा , 'वे क्या भगवा वस्त्र पहनते हैं ? 'दुली बोला , 'नहीं गुरूजी वे सिलेटी रंग का एक सलूकानुमा कुर्ता पहने रहते हैं जिसमें न जानें कितने जेब हैं | किसी जेब में कोई जड़ी बूटी भरी है तो किसी में कोई | उनका कहना है कि वे इन्हें भिन्न -भिन्न पहाड़ी गुफाओं से इकठ्ठा कर के लाते हैं | मैनें कहा कि तेरे गुरू तो चमत्कारी पुरुष हैं | निश्चय ही तुझे पुत्र प्राप्त होगा | आखिर इतिहास हमें बताता है कि अकबर को भी पहली औलाद शेख सलीम चिस्ती की दुआ से मिली थी | इसीलिये वह सलीम को शेखू कहकर पुकारता था | योगी चटाईनाथ आये और तीन दिन दुली ठाकुर के घर रहकर जप तप और टोना टुटका करते रहे | बिरादरी के सभी लब्ध प्रतिष्ठ लोग उनकी सेवा में लगे रहे | तीसरे दिन उनके जानें के दो घण्टे पहले दुली मेरे पास आया और बोला गुरू जी रिक्शा नीचे खड़ा है चलिये आपको योगेश्वर से मिला दूँ | तैय्यार होकर मैं उसके साथ चल पड़ा | रिक्शे में उसनें कुछ मिठाई व कुछ फल इत्यादि पहले से ही खरीदकर रख रखे थे | बोला आपकी तरफ से मैं यह भेंट दूंगा | आप प्रणाम कर लीजियेगा | मैनें कहा , 'दुली ठाकुर अरे मैं खुद ही जो कहते खरीद लेता | मेरा कहकर यह सब उनको भेंट देना मुझे उचित नहीं लगता | बता कितनें पैसे लगे | उसनें बहुत आना -कानी की पर जब मैनें कहा कि यदि वह पैसे नहीं लेता तो मैं रिक्शा घर की ओर उल्टा कर दूंगा | मजबूर होकर उसनें पैसे ले लिये |
                           चटाई नाथ 60 वर्ष के रहे होंगें | पर वे अभी काफी स्वस्थ्य और जीवट भरे योगी दिखायी पड़ते थे | उनका सिलेटी रंग का पैरों तक झूलता कुर्ता पहाड़ की खोहों की तरह न जानें कितनी जेबें अपनें में छिपाये था | दुली द्वारा भेंट दिये जानें और मेरे प्रणाम किये जानें पर उन्होंने मेरे सिर की तरफ हाँथ बढ़ाकर कोई मन्त्र पढ़ा | उसके शब्द मेरी समझ में नहीं आये | हाँ उसमें पिरोया हुआ गुरु गोरखनाथ का नाम अवश्य कई बार मेरे कानों में पड़ा |
                          समय पंख लगाकर उड़ता चला गया | नौ महीनों  से कुछ ऊपर हुये होंगें जब एक शाम दुली फिर मेरे पास शाम को आ पहुंचा | उसके हाँथ में कई डिब्बे थे जिनमें निश्चय ही मिठाइयाँ या ड्राई फ़ूड रहे होंगें | उसनें उन्हें अन्दर जाकर मेरी पत्नी के चरण छूकर भेंट किये | मेरी पत्नी की खुशी का ठिकाना न रहा जब दुली नें उसे बताया कि सीमा के भाई हुआ है | जब वह अन्दर से लौट कर मेरे पास बैठके में आया तो मैनें कहा , 'दुली ठाकुर ,अब तुम्हारे जीवन की एक बहुत बड़ी कमी अब पूरी हो गयी | अब दो सड़कों वाले उन दो प्लाटों को बनानें की बात सोचो जो हमें और तुम्हें लालजी की कृपा से एलाट हो गये थे | दुली बोला गुरूजी मुझे याद है मेरे प्लाट के आधे पैसे तो आपनें ही दिये थे जिन्हें मैं अब तक चुका नहीं पाया हूँ क्योंकि इधर प्रसव में और सयानी होती हुयी लड़कियों की पढ़ाई लिखाई में कुछ जोड़ नहीं पाया हूँ | पर अब मैं कुछ अतिरिक्त काम करके गृह निर्माण के इन्तजाम करूंगा | गुरूजी सीमा अब लगभग सोलह की हो रही है और उसे अकेले पढनें के लिये भेजनें में अब मुझे संकोच होनें लगा है | आप कृपा करें तो अपने प्लाट पर मकान बनवा दें | मैं वहां रहकर कुछ दिन बाद अपना घर बनानें का जुगाड़ कर लूंगा | आप तो अभी शिफ्ट करना ही नहीं चाहेंगें | आप तो शहर के बीच एक अच्छे बड़े मकान में रह रहे हैं | मैनें कहा , 'अरे दुली दरअसल यह मकान एक धर्मादा ट्रस्ट में लगा है | इस ट्रस्ट के चेयरमैन का लड़का मेरा विद्यार्थी था और उसी के आदर भाव नें मुझे ऊपर नीचे सारे मकान में रहनें का अधिकार उचित किराये में दिया है | पर खाली तो एक दिन करना ही है चलो तुम कहते हो तो मैं इस बारे में कुछ सोचूंगा | | दुली बोला , 'गुरूजी मैं छठी बड़ी धूम -धाम से मनाना चाहूंगा | आप मेरे बड़े भाई ही नहीं पिता के  तुल्य हैं क्या माताजी व बच्चों के साथ खानें पर आ सकेंगें ? मैनें कहा अरे तू तो परायों की सी बात करता है | हम सब ईश्वर की दी हुयी इस महान खुशी में शरीक होंगें |दुली बोला , 'गुरूजी बेटे का नाम क्या रखूँ | 'मैनें कहा यार तू हिन्दी का प्रोफेसर है | वेदों से लेकर कामायनी तक आने वाले सारे नाम तेरी जवान पर हैं | मैं क्या बताऊँ ? वह बोला , 'नहीं गुरूजी नाम तो मैं वही रखूंगा जो आप बतायेंगें | आप सोच विचार कर कोई ऐसा नाम बतायें जो हमारी औलाद के लिये हमेशा प्रेरणा देता रहे | हाँ और मेरी दोनों बेटियां सीमा और पिंकी अंग्रेजी में उतनें नम्बर नहीं ले पा रही हैं जितनें अन्य विषयों में , मैं उन्हें आप के पास भेजना चाहूंगा | मैनें कहा बच्चे को महीनें दो महीनें का हो जानें दीजिये फिर पूरे परिवार के साथ आना | मिल बैठकर पढ़ाई लिखाई की और बच्चों के भविष्य की योजनायें बनायेगें | फिलहाल मुझे नाम के बारे में सोचने दो -हेमेन्द्र , क्षेमेन्द्र  , सहजेन्द्र , इन्द्रवेंद्र।......
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                                 अभी नीचे मेरे बेटे राकेश के साथ हँसती खिलखिलाती एक लड़की सीढ़ियों पर आती दिखायी पड़ी | बैठके के दरवाजे से भीतर न आकर वे दोनों बगल के दरवाजे से भीतर के कमरे में माँ के पास चले गये | एक झलक में ही लड़की के सौन्दर्य और पहनावे नें मुझे और दुली को चमत्कृत कर दिया था | मुझे लगा कि शायद इस लड़की को मैनें पहले भी कहीं देखा है | क्या यह सदावृक्ष सारंगा नाटक में सारंगा का रोल तो अदा नहीं कर रही थी और उसमें सदा वृक्ष कौन था | तो क्या ............................
(क्रमशः )
              

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