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                             'माटी 'के एक सुधी पाठक ज्ञान रंजन वशिष्ठ द्वारा प्रेषित एक पत्र अपनें में कुछ विचारणीय सुझाव समेटे हुये है | पत्र को अपनी सम्पूर्णतः में नीचे उदधृत कर हम उसमें दिये गये सुझावों के मष्तिष्क के वैचारिक तन्त्र जाल में उपजी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा करेंगें | अपनी समग्रता और बहु विविधता के परिप्रेक्ष्य में निरखी ,पारखी इन प्रतिक्रियाओं से हम 'माटी  'में प्रकाशित होनें वाली रचनाओं  की चयन प्रक्रिया को और अधिक सारगर्भित करनें का प्रयास   करेंगें |
                              आदरणीय संपादक महोदय ,मेरा नमन स्वीकार करें | 'माटी  'पत्रिका के स्थायी स्तम्भ मन को छूते ,कुरेदते उत्साहित और उद्वेलित करनें में प्रभावशाली ढंग से समर्थ हैं | अन्य लेख और प्रकाशित कवितायें भी विचारोत्तेजक होनें के साथ -साथ भाव प्रमाण भी हैं | सब मिलाकर 'माटी  'एक निश्चित ऊर्ध्वगामी जीवन दर्शन की पत्रिका कही जानें का गौरव प्राप्त करनें की अधिकारिणीं है | पर मैं यह चाहूंगा कि आप अपनी पत्रिका में एक स्तंम्भ फिल्म जगत की श्रेष्ठ , उद्बोधक और मौलिक उदभावना वाले चलचित्रों की विवेचना के लिये भी सुनिश्चित करें | इसके साथ ही दो तीन छोटे छोटे कालम में बंटा हुआ एक स्तंम्भ क्रीड़ा जगत के लिये भी सुनिश्चित करें | सिनें जगत के कुछ अच्छे फनकारों और क्रीड़ा जगत के कुछ अच्छे महारथियों पर भी थोड़ा बहुत प्रकाश डालकर 'माटी  'के पाठकों को एक विवेकपूर्ण चयन द्रष्टि से संस्कारित होनें का सुअवसर प्रदान करें | तरुण पीढ़ी इन दोनों क्षेत्रों में गहरी दिलचस्पी रखती है और हमारा आज का भारत 70  प्रतिशत तरुणों का ऊर्जावान गगन मुखी भारत है | आप स्वयं ही नीर -क्षीर बुद्धि से सम्पन्न हैं | आप द्वारा चयनित ,विवेचित स्फूर्तिपूर्ण कला और क्रीड़ा की स्मरणीय घटनायें निश्चय ही नयी पीढ़ी के लिये सोच की एक नयी दिशा दे सकेंगीं |
                                 आदर के साथ
                              आप का अपना 'माटी  'का एक सामान्य पाठक |

                                                                    ज्ञान रंजन वशिष्ठ के इस पत्र में निहित उनके सुझावों में मुझे तरुण पीढ़ी के मनोवैज्ञानिक जगत में झांकनें का एक सुअवसर मिला है | 'माटी  'अभी तक फिल्म और खेल चर्चा से इसलिये बचती रही है क्योंकि यह दोनों क्षेत्र न केवल काले धन के निवेश स्थल बन गये हैं बल्कि उनमें एक आध अपवादों को छोड़कर अधिकतर मानव मन की ऊर्ध्वगामी प्रवृत्तियों का समुचित समावेश देखनें को नहीं मिलता पर इसमें कोई शक नहीं कि फिल्म जगत की कुछ श्रष्टियाँ कुछ गहरा प्रभाव दर्शक के मन पर छोड़ती हैं और खेलों का उल्लास भी सामान्य जन जीवन की विषमताओं को कुछ अंश में कम करनें में सक्षम दिखायी पड़ता है | 'माटी  'प्रयास करेगी कि फिल्म और क्रीड़ा जगत की उल्लेखनीय उपलब्धियों पर सार्थक चर्चा की जाय | अगले अंको में अपनें पाठकों से प्रोत्साहन पाकर हम इस दिशा में कुछ नये स्तंभ्भ  प्रकाशित कर सकेंगें |
                       दिसम्बर 2017 का 'माटी  'का यह अंक 10 वर्ष तक निरन्तरता के साथ अपनें प्रकाशन की प्रतिबद्धता को समर्पित है |  "माटी  "के रचनाकारों नें हमें जो सहयोग  दिया है वह अमूल्य है और हम आदर के साथ उनका आभार स्वीकार करते हैं | हम इस दिशा में भी प्रयत्न कर रहे हैं कि 'माटी  'का अपना एक स्वतन्त्र केन्द्रीय समागम स्थल हो जहां प्रत्येक मास किसी सुनिश्चित दिवस पर 'माटी 'परवार का सौहार्दपूर्ण संवाद , संम्भाषण परिचय और प्रीती मिलन आयोजित किया जा सके | हम जानते हैं कि शब्द शिल्पियों के लिये ठोस धरती पर आकृतियां खड़ा करना एक दुश्कर कार्य होता है | पर जब मार्ग लक्षित दिशा की ओर सुनिश्चित हो जाता है तो उपलब्धि की अनिवार्यता भी समाज की संरचना ही सुनिश्चित करती है | विश्व की सभी संस्कृतियों में उनकी संख्या को एक जादुयी आयाम दिया गया है | दौर की तो शुरुआत ही एक और दो के बाद तीन कहते ही होती है | भारतीय संस्कृति मेँ तो तीन बार प्रतिबद्धित होनें पर किसी संकल्प से बच निकलनें का मार्ग ही नहीं रहता | श्रष्टि , सम्भरण और विनाश का मूल रहस्य भी  तो त्रिमूर्ति के सांकेतिक दैवी छवियों द्वारा ही व्यंजित किया जाता है | तो आइये हम कामना करें कि अपनें दसवें वर्ष में अबाध उत्कर्ष की अपराजेय प्रेरणा ही 'माटी 'की प्रतिबद्धता बनें | 'माटी  'का संपादक ,संपादकीय परिवार इस संकल्प की पावनता के प्रति मुक्त भाव से समर्पित है | हाँ हमारे प्रबुद्ध पाठक भी सम्पादकीय परिवार का ही एक अभिन्न अंग हैं | क्योंकि उन्हीं की की हुयी तराश से हम अभिव्यंजना की गहरी काट करनें वाली चर्चित , उपचर्चित विधाओं को रूपायित करनें में समर्थ होते हैं |


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