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पहले दिन दशरथ के दरबार में विश्वामित्र जी का पहुँचना दिखाया जायगा | राम ,लक्ष्मण को लेकर विश्वामित्र अपने आश्रम की ओर चलेंगें | उसके बाद कुछ भजन होंगें और पर्दा डाल दिया जायेगा | उसके अगले दिन विश्वामित्र जी श्री राम ,लक्ष्मण को राक्षसों के अत्याचार की कहानियां सुनायेंगें और ताड़का के आतंक का जिक्र करेंगें और फिर ताड़का वध होगा | इसके बाद भगवान् की स्तुति होगी और पर्दा डाल दिया जायेगा | तीसरे दिन फुलवारी का मन्चन  होगा श्री राम माँ सीता को देखेंगें और माँ सीता राम को देखेंगीं | पार्वती पूजन होगा और फिर पार्वती जी का माँ सीता को दिया गया आशीर्वाद ऊँचे स्वरों में सुनाया जायेगा | भजन ,स्तुति के बाद पर्दा डाल दिया जायेगा | चौथे दिन धनुष भंग होगा | सारे राजे ,महाराजे आयंगें | रावण ,बाणासुर आयेंगें ,फिर श्री राम जी विश्वामित्र की आज्ञां लेकर धनुष भंग करेंगें और फिर आयेंगें फरसा लेकर जमदग्नि पुत्र परशुराम | वाद -विवाद के बाद परशुराम श्री राम की शक्ति को पहचानेंगे और श्री राम की स्तुति करेंगें और फिर पर्दा डाल दिया जायेगा | चार दिन की तैय्यारी पूरी कर ली गयी थी पर आगे का प्रोग्राम पूरी तरह तैय्यार नहीं था  इसलिए मुनादी करवा दी गयी थी | इसी प्रकार राम लीला की अन्य घटनायें मन्चित की जाती रहेंगीं | परशुरामी करनें के लिए पड़ोस के गाँव से ठाकुर शिव कुमार सिंह की सहमति मिल चुकी थी उनका शरीर भी अच्छा था और उनका संवाद बोलने का ढंग भी लोगों को भा जाता था |
                         पाठक शायद यह जानना चाहेंगें कि सूत जी कौन थे और कैसे मेरे यहां कहानी सुनाने के लिए पहुंचे | मैं बता दूँ कि सूत जी का पूरा नाम सूरत जी है और अब वे जिस शहर में मैं बैंक मैनेजर हूँ उसी शहर में रहने लगे हैं | उनके मकान के नीचे राधा कृष्ण का मन्दिर है और ऊपर उनके भक्त ,सेवक भजनू के रहने के कमरे हैं | इस वर्ष की दशहरा को गृहणियां और बच्चे शहर में मेला देखने चले गये थे | मेरे पास -पड़ोस के चार पांच घरों के वृद्ध सज्जन मेरे यहां इकठ्ठे हो गये थे | चपरासी राम गुलाम बातचीत के बीच चाय के प्याले ले आता था | सूरत जी को भी बुला लिया गया था ताकि वे रामायण सम्बन्धी एकाध घटनाओं से हम लोगों को परिचित करायें और मनोविनोद के साथ हमें कुछ धार्मिक शिक्षा भी मिले | सूरत जी को मैं सूत जी कहता था क्योंकि उनके किस्से कहानियां बहुत दिलचस्प होते थे | लोग जानते थे कि मैं सूत जी का प्रशंसक हूँ और इसलिये सूत जी की सिफारिश लेकर मेरे पास बैंक में काम कराने आते थे | धीरे धीरे सूत जी पूजा पाठ के बाद मेरे यहां हर शाम एक कप चाय पीने मेरे घर आने लगे थे | हम लोगों ने बात  को आगे बढ़ाने के लिये सूत जी से आग्रह किया कि कुंजरपुर की राम लीला किस प्रकार सफलता की मंजिलें छू सकी इस पर थोड़ा सा प्रकाश और डालें | (क्रमशः )

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