................... संसार का रहस्य ही कुछ ऐसा है जिसे पूरी तरह सुलझाया नहीं जा सकता । उदाहरण के लिये हम सब जानते है कि हम एक परम पिता की संतान हैं पर फिर भी हम अपनी अपार विभिन्नताओं को और अधिक बढ़ाने में लगे हुये हैं । बराक ओबामा गाँधी दर्शन की श्रेष्ठता की बात कहते हैं पर मिलेट्री बजट को निरन्तर बढानें की योजनायें बनाते रहते हैं । भारत वर्ष में कोई भी ऐसी पार्टी नहीं है जो राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी को नकारती हो । भारतीय जनता पार्टी के मंचों पर भी गांधी कीर्तन होता है और वामपंथी दल भी उन्हें एक महान पुरुष माननें लगे हैं पर गांधी जीवन दर्शन कहीं देखने को नहीं मिलता पर इतना अवश्य है कि गांधी जी की व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता ,अहिंसा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और पीड़ित मानवता के प्रति उनकी निःस्पृह समर्पण भावना हमारे हृदयों को आज भी झकझोर देती है । हम जब कभी और जितनी बार एटेनबरो द्वारा बनायी हुयी महात्मा गांधी फिल्म देखते हैं तो हमारे आँसू रोके नहीं रुकते फिल्म की प्रभावशीलता हमारे लिये इसलिये नहीं है कि उसे ढेर सारे आस्कर अवार्ड मिले थे बल्कि इसलिये है कि उसमें हमारे राष्ट्रपिता को सच्चे अर्थों में मानव मूल्यों के आदर्शतम प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है । अब तो कुछ मल्टीनेशनल घरानें गांधी जी की स्थिर प्रशान्त मुद्रा वाली छवियों को अपनें व्यापार प्रसार के लिये भी एक कारगर हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं । आर्थिक और सामाजिक रूप से उभरते हुये भारत को गांधी दर्शन को नये प्रतीकों से व्याख्यायित करना होगा । हम खादी पहनें, न पहनें कुछ भी पहनें पर हमारे पहनावे में शालीनता और मर्यादा झलकनी चाहिये । हमारा पहनावा गरीब और उपेक्षित वर्ग के लिये हीनता का बोधक नहीं बनना चाहिये । इसी प्रकार हम फ़कीर पर सन्यासी का जीवन आज की युगीय मान्यताओं के सन्दर्भ में आदर्श के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकते । पर त्याग और उत्सर्ग के आधार पर ही हमारी बहु राष्ट्रव्यापी व्यापार योजनायें चलनी चाहिये । यहाँ हम त्याग और उत्सर्ग को उन अर्थों में प्रयोग कर रहे हैं कि हमारी योजनायें कुछेक घरानों के लाभ के लिये नहीं बल्कि व्यापक जन समुदाय के लिये हो और उसमें सुविधा वंचित वर्ग का एक बहुत बड़ा भाग हो । इसी प्रकार हम यह नहीं चाहते कि सरकारी कर्मचारी ,अधिकारी या मन्त्री अच्छे वेतन न पायें या उन्हें अच्छी सुविधाओं का हक़ हासिल न हो यह सब तो उन्हें मिलना ही चाहिये पर उन्हें गांधी दर्शन से यह सीखना है कि इन सब बातों के मिलनें के बाद वे अपनें को भ्रष्टाचार से सर्वथा मुक्त रखें । सभी राजनैतिक पार्टियां जाति -पाति ,वर्ग -वर्ण ,क्षेत्र -प्रदेश से ऊपर उठकर कम से कम सम्पूर्ण राष्ट्रीय परिवेश में अपनी नीतियों का निर्धारण करे वैसे तो गांधी दर्शन में नीतियों का निर्धारण सम्पूर्ण विश्व मानवता को द्रष्टि में रखकर करना उचित होता है । हम जानते हैं कि गर्त और धुन्ध भरी आधुनिक मानव चेतना गाँधी दर्शन के प्रकाश से पूरी तरह उज्वल और निर्मल नहीं हो सकती पर हम यह भी जानते हैं कि ऐसा होना ही मानव जाति का अन्तिम लक्ष्य होना चाहिये । यही गाँधी जी की सच्ची विरासत है उनकी पादुकायें स्मृति संग्रहालयों में हम देखकर प्रणाम कर लेते हैं पर हम उन पादुकाओं पर चरण धर सकने वाले बन सके हैं या नहीं यह भी हमें सोचना होगा कि विजय माल्या के माध्यम से गांधी जी द्वारा व्यवहार करने वाली चारो वस्तुओं को भारत में वापस लाकर भारतीय जनमानस को आश्वस्त करनें का प्रयत्न किया है पर भारत के कोटि -कोटि प्राँगणों में बापू का मुस्कान भरा आशीर्वाद अभी पहुँचना बाकी है । उनके द्वारा गीता ,बाइबिल और कुरान से निकाले गये समन्वित मानव मूल्य अभी तक भारत की धरती पर साकार नहीं हुये हैं । उनका सम्पूर्ण रूप से स्वीकार होना देवावतारी पुरुषों की मांग करता है पर भारतीय समाज का प्रबुद्ध वर्ग यदि आंशिक रूप से भी उन्हें अपनें जीवन में उतार सके तो 'माटी 'धन्य होगी। गांधी पादुकाओं को 'माटी 'अपनें शतकोटि प्रणाम अर्पित करती है और चाहती है कि 'माटी 'के पाठक इस जीवन दर्शन के आग्रहशील प्रचारक बनें । बस अभी इतना ही ।
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