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शिव धनुष

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कहते हैं तन  बूढ़ा होता ,मन भला कहीं बूढ़ा होता
पर मेरा मन बुझ चुका देह में अब भी लपट लपकती है
मत कहीं समझ लेना मैं युग से कटा हुआ
स्खलित -वृन्त पीताभ पत्र एकाकी हूँ
या पिछले दो दशकों में पनपी पीढ़ी में
मैं ही मरियल मन वाला केवल बाकी हूँ
सच तो यह है हर शहर, गाँव, घर ,कूचे में
मरे जैसे लाखों घुट -घुट कर जीते हैं
 गति हीन राष्ट्र के दमघोटू गलियारे में
बेकार कहा कर घूँट जहर का पीते हैं
कुछ बड़ी बड़ी बातें कुछ लक्ष्य महान बता
भारत की प्रगति कहानी गायी जाती है
गणतन्त्र दिवस पर स्वर्ण छत्र का साज सजा
लाखों भूखों की भीड़ बुलायी जाती है
कुछ पदासीन टोपी वाले जब पान चबा कर हँसते हैं
जाने क्यों मेरी आँखों से लहू की बूँद टपकती है
कहते हैं तन ...............
हम युवा -वृद्ध शिक्षित बेकारों की टोली
उपदेशों का पानी पी पी कर पलती है
मंचों से जब जब छीटें डाली जाती हैं
 विद्रोह अग्नि तब  और भभक कर जलती है
दस पाँच माँह में अपनी बेकारी तजकर
उड़कर भाषण देने नेताजी आते हैं
दो चार लाख की कीमत पर अधिकारी गण
कर भाग दौड़ लाखों की भीड़ जुटाते है
मंचों पर बैठे क्रीत दास सर हिला हिला
तालियां बजाकर हर वाक्य सराहा करते हैं
नक्सली कहे जाने के डर  से हम चुप हो
सह कर दंशों पर नमक कराहा करते हैं
अब विधि आयोग आत्म ह्त्या को पाप नहीं ठहराता है
इसलिये जहर खाकर मरने पर किसकी आँख झपकती है
कहते हैं तन बूढ़ा होता ................
भूखे मरनें वालों की संख्या को लेकर
संसद के नेता काफी शोर मचाते हैं ।
कितने कंकाल कहाँ पर पाये गये बता
यम -वाहन सी गर्दन हो दुःखी लचाते हैं
पर बनकर अतिथि प्रतिष्ठा देते शादी को
जो सत्रह बैण्डों की धुनियों पर सजती है
भूखे भारत के कानों से टकरा टकरा
जो महाराष्ट्र से उठ हिमगिरि तक बजती है
हा !आज समूचे भारत में कोई न  वीर
इस महादेश पर का पुरुषों का शासन है
बेकारी का शिव -धनुष अनछुआ पड़ा हुआ
हा !रिक्त अभी तक लखन लाल सिँहासन है
यश श्री क्वाँरी ही रहीं न कोई व्याह सका
विगत्यित यौवन नेताओं के भी मुँह से लार टपकती है
कहते हैं तन बूढ़ा ........................ 






































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