हितोपदेश की इस कहानी से भारत के सभी शिक्षित -अशिक्षित परिचित ही होंगें क्योंकि यह कहानी बूढ़ी दादियों ,नानियों और संस्कृत के पंडितों के मुंह से न जाने कितनी बार भारत के घर -घर में दोहरायी जा चुकी है । कहानी में एक सर्व सीधा ब्राम्हण जो अपनी पीठ पर एक बकरी को लादे लिये जा रहा था तीन धूर्तों द्वारा एक सुनिश्चित मक्कारी भरी चाल के द्वारा ठग लिया जाता है । ब्राम्हण के रास्ते में यह तीनों धूर्त थोड़ी -थोड़ी दूरी का अन्तर देकर खड़े हो जाते हैं । रास्ते से जब सरल ब्राम्हण बकरी को पीठ पर लादे हुये गुजरता है तो किनारे पर खड़ा पहला ठग उसे सम्बोधित करते हुये कहता है ,"पंडितराज आप अपनी पीठ पर कुत्ते को लादे क्यों लिये जा रहे हैं । "पंडित भोले राम आश्चर्य से अपना मुँह मोड़कर पीठ पर लदी बकरी के मुँह की ओर देखते हैं , आश्वस्त हो जाते हैं कि वे कुत्ते को नहीं वरन बकरी को ही पीठ पर लादे हैं । नाराज होकर ठग से कहते हैं ,"तुझे ठीक से नहीं दीखता । अपनी आँखों का इलाज करवा ले । तुझे बकरी कुत्ता दिखायी पड़ती है । "ठग मुस्करा कर कहता है ,पंडितजी आँखे आपकी खराब हैं ।उमर बढ़ रही है । मुझे क्या ?आप कुत्ते को पीठ पर लाद कर जहाँ चाहे ले जाइये । "पंडित भोले राम लगभग 50 गज आगे बढ़ते हैं । पीठ का बोझा उन्हें कुछ थकाने लगा है । अब रास्ते के किनारे खड़ा दूसरा धूर्त ठग उन्हें राम राम करता है और कहता है ,"अरे पंडित जी आप अपनी पीठ पर कुत्ते को लादे हुये कहाँ ले जा रहे हैं । पंडित जी फिर अपना मुँह मोड़ कर पीठ की ओर देखते हैं उन्हें बकरी का ही मुँह दिखायी पड़ता है । दूसरे ठग से कहते हैं ,"तेरा दिमाग खराब हो गया है । तुझे बकरी कुत्ता दिखायी पड़ती है ।"पंडित जी और आगे बढ़ जाते हैं पचास गज के बाद तीसरा धूर्त रास्ते के किनारे खड़ा मिलता है । उसने पंडित भोले राम से कहा ,"कमाल है पंडित जी आप कितनी दूर से अपनी पीठ पर कुत्ता लाद कर लाये हैं । हो सकता है इसने आपकी पीठ पर थोड़ा बहुत जल छिड़क दिया हो । "पंडित जी आगबबूला हो गये । फिर मुड़कर पीठ की ओर देखा । काफी देर तक लदे लदे बकरी का मुँह उन्हें कुछ बदला सा लगा । उन्हें लगा कि बकरी ने में में के बजाय क्याऊँ क्याऊँ किया । उन्हें लगा कि तीन भले चंगे आदमियों ने जो बात कही है उसमें सच्चायी अवश्य होगी । शायद वे ही गलती पर हैं । उन्हें लगा कि उनकी पीठ पर कुछ नमी सी है । धत् तेरे की , "साला पीठ पर लदे लदे टाँग उठा रहा है । दस कदम आगे चलकर पंडित जी ने बकरी को अपनी पीठ से उठाकर झाडी में फेंक दिया और अपनी राह चले गये । सोचते गये छी- छी घर जाकर तुरन्त नहाना पडेगा । कितनी गल्ती हो गयी आँखें भी कितना धोखा दे देती हैं, पीठ पर लदे -लदे शक्तिहीन बकरी झाडी में गिरकर उठने की तैयारी कर रही थी । पंडित जी कुछ दूर आगे निकल गये थे । अब क्या था तीनों ठगों ने मिलकर बकरी हड़प कर ली । हितोपदेश की यह कहानी मुस्लिम आक्रमण के पहले ही घुमन्तू विद्वानों के द्वारा अरब देशों में पहुँच चुकी थी और वहाँ से थोड़ा बहुत फेर बदल के साथ यह कहानी योरोप के लगभग सभी देशों में अपने बदले रूपों में देखने को मिलती है ।
हितोपदेश की कहानी का मूल आधार अभी तक भारत के सामान्य जन व्यवहार में स्वीकृत किया जा रहा है । तीन बार कही हुयी बात अब भी प्रामाणिक मानी जाती है । यदि कोई तिरबाचुक शपथ उठा लेता है तो ऐसा माना जाता है कि शपथ तोड़ने पर अदृश्य नैतिक शक्तियाँ उसके लिये दण्ड विधान की योजना बना लेती हैं ।
आइये अब जर्मन में प्रचलित एक लोक कथा पर भी निगाह डाल लें । कहानी का कलेवर बदला हुआ है और उसमें भी तीन की संख्या पर अधिक बल दिया गया है । तीन सयाने चोर या ठग जिन्होनें बिना हिँसा किये अपनी धूर्तता से बहुतों को ठगा -लूटा था अपने आस -पास के क्षेत्र में अपने काइंयापन के लिये चर्चित हो रहे थे । जिन दिनों की बात है उस समय गाँव के आस -पास घनी मात्रा में जंगल ,झाड़ियाँ ,त्रण ,गुल्म ,लतायें और विटप आच्छादन हुआ करते थे । चौर्य कार्य में उस्ताद माने जाने वाली इस तिकड़ी में बीस वर्षीय एक नवयुवक शामिल होने की प्रार्थना लेकर आया । तिकड़ी बोली कि उसे तभी शामिल किया जायेगा जब वह अपनी उस्तादी साबित कर दे और दिखा दे कि वह तिकड़ी में शामिल होने योग्य है । पास ही के गाँव से एक किसान जिसे धन की कुछ जरूरत आ पडी थी अपना एक बैल लेकर बाजार बेचने जा रहा था । धूर्तों की तिकड़ी ने चुनौती दी कि अगर वह नवयुवक इस बैल को हिंसा के बिना किसान से हथिया ले तो वह पहली परीक्षा में पास जायेगा । किसान के पास तीन बैल हैं । एक बैल खोकर वह दूसरा बैल बेचने के लिये जायेगा और यदि दूसरा भी खो गया तो मजबूर होकर तीसरा बैल भी बाजार में बेचना चाहेगा । यदि ऐसा होता है तो आगे वे दोनों बैल भी बिना हिंसा किये हथियाने पड़ेगें । यदि वह नवयुवक ऐसा कर लेता है तो वह तिकड़ी में तो शामिल होगा ही साथ ही उसे सबका सरदार मान लिया जायेगा । कठिन चुनौती थी पर धूर्त राज बनने के लिये श्रेष्ठ बुद्धि का नकारात्मक प्रयोग करना एक अनिवार्यता बन गयी थी ।
(क्रमशः )
हितोपदेश की कहानी का मूल आधार अभी तक भारत के सामान्य जन व्यवहार में स्वीकृत किया जा रहा है । तीन बार कही हुयी बात अब भी प्रामाणिक मानी जाती है । यदि कोई तिरबाचुक शपथ उठा लेता है तो ऐसा माना जाता है कि शपथ तोड़ने पर अदृश्य नैतिक शक्तियाँ उसके लिये दण्ड विधान की योजना बना लेती हैं ।
आइये अब जर्मन में प्रचलित एक लोक कथा पर भी निगाह डाल लें । कहानी का कलेवर बदला हुआ है और उसमें भी तीन की संख्या पर अधिक बल दिया गया है । तीन सयाने चोर या ठग जिन्होनें बिना हिँसा किये अपनी धूर्तता से बहुतों को ठगा -लूटा था अपने आस -पास के क्षेत्र में अपने काइंयापन के लिये चर्चित हो रहे थे । जिन दिनों की बात है उस समय गाँव के आस -पास घनी मात्रा में जंगल ,झाड़ियाँ ,त्रण ,गुल्म ,लतायें और विटप आच्छादन हुआ करते थे । चौर्य कार्य में उस्ताद माने जाने वाली इस तिकड़ी में बीस वर्षीय एक नवयुवक शामिल होने की प्रार्थना लेकर आया । तिकड़ी बोली कि उसे तभी शामिल किया जायेगा जब वह अपनी उस्तादी साबित कर दे और दिखा दे कि वह तिकड़ी में शामिल होने योग्य है । पास ही के गाँव से एक किसान जिसे धन की कुछ जरूरत आ पडी थी अपना एक बैल लेकर बाजार बेचने जा रहा था । धूर्तों की तिकड़ी ने चुनौती दी कि अगर वह नवयुवक इस बैल को हिंसा के बिना किसान से हथिया ले तो वह पहली परीक्षा में पास जायेगा । किसान के पास तीन बैल हैं । एक बैल खोकर वह दूसरा बैल बेचने के लिये जायेगा और यदि दूसरा भी खो गया तो मजबूर होकर तीसरा बैल भी बाजार में बेचना चाहेगा । यदि ऐसा होता है तो आगे वे दोनों बैल भी बिना हिंसा किये हथियाने पड़ेगें । यदि वह नवयुवक ऐसा कर लेता है तो वह तिकड़ी में तो शामिल होगा ही साथ ही उसे सबका सरदार मान लिया जायेगा । कठिन चुनौती थी पर धूर्त राज बनने के लिये श्रेष्ठ बुद्धि का नकारात्मक प्रयोग करना एक अनिवार्यता बन गयी थी ।
(क्रमशः )